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सरकार राष्ट्र के सामने स्पष्ट करे कि दलबदल या विभाजन के लिए दबाव डाला गया या नही

संदर्भ: जनता दल (अ) के विभाजन के सवाल पर 3 अगस्त 1993 को लोकसभा में श्री चंद्रशेखर


अध्यक्ष महोदय, मैं इस विवाद में नहीं पडूंगा कि क्या यह एक विभाजन है या दल-बदल है। मुख्य बात यह है कि यह काम उस समय हुआ जबकि सभा का सत्रकाल चल रहा है। मैं यह जानना चाहता हूं कि क्या यह बात औपचारिक नहीं है कि अध्यक्ष महोदय को यह घोषणा करनी चाहिए कि एक नई पार्टी गठित की गई है, सदस्यों को उनके नये स्थान आवंटित कर दिये गये हैं या इसको एक दल-बदल या विभाजन माना गया है? जो भी बात सामने आई है, वह अध्यक्ष पीठ के माध्यम से आनी चाहिए थी। अध्यक्ष पीठ से ऐसा निर्णय आने से पहले सत्ताधारी दल को सार्वजनिक वक्तव्य देने की क्या जरूरत थी?

अध्यक्ष महोदय, केवल इतना ही नहीं इससे अधिक आपत्तिजनक बात तो यह है कि मुझे मालूम नहीं है कि वह प्रवक्ता कौन है-ऐसा लगता है कि कांग्रेस पार्टी का प्रवक्ता है, प्रवक्ता ने कहा कि इन औपचारिकताओं को पूरा किया जाएगा। वे लोग यह नहीं कह सकते हैं कि यह बात अध्यक्ष महोदय को स्वीकार्य है। यह बात समाचार पत्रों में छप चुकी है। आपने इस बात को भी एक परम्परा के रूप में लिया है क्योंकि अध् यक्ष पीठ द्वारा कोई वक्तव्य दिये बिना आपने इन मित्रों का कांग्रेसी खेमे में आने का स्वागत करने का निर्णय ले लिया।

अध्यक्ष महोदय, यह घोषणा करना या सभा को यह बताना आप पर निर्भर करता है कि क्या यह दल-बदल है या विभाजन है और क्या इन सदस्यों को नये स्थान आवंटित कर दिये गये हैं। एक स्वतंत्र गुट के रूप में इन सदस्यों को नये स्थान आवंटित करने के पश्चात् ही कांग्रेस पार्टी इन सदस्यों को अपने दल में शामिल कर सकती थी। मैं नियमों के बारे में नहीं जानता हूं। सभी चीजें नियम से नहीं होती हैं। सभा और अध्यक्ष के पद की मर्यादा को बचाने की कोशिश की जानी चाहिए। यदि आप नियमों के अनुसार भी चलें, तो भी मुझे यह मालूम नहीं है कि क्या नियम अध्यक्ष द्वारा सभा में लिये जाने वाले निर्णय के बारे में सभा से बाहर इस तरह के स्वागत की अनुमति देते हैं या नहीं। यह बात बहुत आपत्तिजनक है। कांग्रेस पार्टी यह काम कर रही है या खुद को बचाने के लिए वे लोग इसमें शामिल हो रहे हैं, इससे लोगों के दिमाग में शंका पैदा हो सकती है। जैसा कि श्री अजीत सिंह ने आरोप लगाया है कि उनके ग्रुप में कुछ सदस्यों पर दल-बदल या विभाजन के लिए दबाव डाला गया है। वे लोग स्वेच्छा से नहीं गए हैं। इसीलिए सरकार की ओर से यह जल्दबाजी का काम किया गया है। इस सरकार को यह बात राष्ट्र के सामने स्पष्ट करनी होगी। अध्यक्ष, महोदय, उन लोगों को नये स्थान आवंटित करने के आपके निर्णय के बिना क्या उन लोगों को अपने खेमे में सम्मिलित करना वांछनीय है क्या? आपको इस प्रश्न पर विचार करना होगा।

अध्यक्ष महोदय, मैं इस विवाद में नहीं पडूंगा कि क्या यह एक विभाजन है या दल-बदल है। मुख्य बात यह है कि यह काम उस समय हुआ जबकि सभा का सत्रकाल चल रहा है। मैं यह जानना चाहता हूं कि क्या यह बात औपचारिक नहीं है कि अध्यक्ष महोदय को यह घोषणा करनी चाहिए कि एक नई पार्टी गठित की गई है, सदस्यों को उनके नये स्थान आवंटित कर दिये गये हैं या इसको एक दल-बदल या विभाजन माना गया है? जो भी बात सामने आई है, वह अध्यक्ष पीठ के माध्यम से आनी चाहिए थी। अध्यक्ष पीठ से ऐसा निर्णय आने से पहले सत्ताधारी दल को सार्वजनिक वक्तव्य देने की क्या जरूरत थी?

अध्यक्ष महोदय, केवल इतना ही नहीं इससे अधिक आपत्तिजनक बात तो यह है कि मुझे मालूम नहीं है कि वह प्रवक्ता कौन है-ऐसा लगता है कि कांग्रेस पार्टी का प्रवक्ता है, प्रवक्ता ने कहा कि इन औपचारिकताओं को पूरा किया जाएगा। वे लोग यह नहीं कह सकते हैं कि यह बात अध्यक्ष महोदय को स्वीकार्य है। यह बात समाचार पत्रों में छप चुकी है। आपने इस बात को भी एक परम्परा के रूप में लिया है क्योंकि अध् यक्ष पीठ द्वारा कोई वक्तव्य दिये बिना आपने इन मित्रों का कांग्रेसी खेमे में आने का स्वागत करने का निर्णय ले लिया।

अध्यक्ष महोदय, यह घोषणा करना या सभा को यह बताना आप पर निर्भर करता है कि क्या यह दल-बदल है या विभाजन है और क्या इन सदस्यों को नये स्थान आवंटित कर दिये गये हैं। एक स्वतंत्र गुट के रूप में इन सदस्यों को नये स्थान आवंटित करने के पश्चात् ही कांग्रेस पार्टी इन सदस्यों को अपने दल में शामिल कर सकती थी। मैं नियमों के बारे में नहीं जानता हूं। सभी चीजें नियम से नहीं होती हैं। सभा और अध्यक्ष के पद की मर्यादा को बचाने की कोशिश की जानी चाहिए। यदि आप नियमों के अनुसार भी चलें, तो भी मुझे यह मालूम नहीं है कि क्या नियम अध्यक्ष द्वारा सभा में लिये जाने वाले निर्णय के बारे में सभा से बाहर इस तरह के स्वागत की अनुमति देते हैं या नहीं। यह बात बहुत आपत्तिजनक है। कांग्रेस पार्टी यह काम कर रही है या खुद को बचाने के लिए वे लोग इसमें शामिल हो रहे हैं, इससे लोगों के दिमाग में शंका पैदा हो सकती है। जैसा कि श्री अजीत सिंह ने आरोप लगाया है कि उनके ग्रुप में कुछ सदस्यों पर दल-बदल या विभाजन के लिए दबाव डाला गया है। वे लोग स्वेच्छा से नहीं गए हैं। इसीलिए सरकार की ओर से यह जल्दबाजी का काम किया गया है। इस सरकार को यह बात राष्ट्र के सामने स्पष्ट करनी होगी। अध्यक्ष, महोदय, उन लोगों को नये स्थान आवंटित करने के आपके निर्णय के बिना क्या उन लोगों को अपने खेमे में सम्मिलित करना वांछनीय है क्या? आपको इस प्रश्न पर विचार करना होगा।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।