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अपने जीवन को दो दिन और चलाने के लिए संसदीय परम्पराओं की दुहाई देना राजनीतिक अपराध

संदर्भ: जनता दल के विभाजन के मामले पर लोकसभा में 18 अगस्त, 1992 को श्री चंद्रशेखर


अध्यक्ष महोदय, मैं इस विषय के औचित्य के बारे में एक शब्द भी नहीं कहूंगा। माननीय नेता विरोधी दल ने परम्पराओं की चर्चा की और उन्हीं परम्पराओं की याद मैं नेता विरोधी दल को दिलाना चाहूंगा। इनकी एक बात की शिकायत है कि सदस्यों को सूचना नहीं दी गयी। पहले के बारे में, पूर्व के अध्यक्ष ने जब 62 सदस्यों को अनअटैच किया था, तो माननीय विरोधी दल के नेता को मैं स्मरण दिलाने के लिए कह रहा था कि उन्होंने किसी को सूचना नहीं दी। उस समय हमारे जैसे बहुत से लोग उस रूलिंग से सहमत नहीं थे। लेकिन माननीय नेता विरोधी दल के जो सदस्य थे और हमारे इस पक्ष के सारे मित्रों ने कहा कि जो कुछ हो, इस डिफेक्शन लॉ के सवाल पर अध्यक्ष महोदय का निर्णय ही अंतिम निर्णय है। परम्परा यह भी रही है। मेरे जो भी ऐतराज रहे हों, मैंने एक शब्द भी इस सदन में, यद्यपि मैं उस कुर्सी पर बैठा हुआ था, अध्यक्ष की रूलिंग के बारे में नहीं कहा था और इस तरफ बैठे हुए सारे लोगों ने एक स्वर से यह कहा था कि अध्यक्ष का निर्णय सर्वमान्य होना चाहिए।

मैं नहीं समझता था कि प्रगतिशीलता की सीमा कहां तक जाएगी। 18 महीने पहले अध्यक्ष सर्वोपरि थे और 18 महीने बाद अध्यक्ष इस परम्परा में आ गये जिसकी एक बात भी सुनी नहीं जा सकी। अध्यक्ष के खिलाफ़ लोगों को एतराज हो सकता है। जैसा आडवाणी जी ने कहा कि अध्यक्ष के विरुह् अविश्वास प्रस्ताव लाये बिना अध्यक्ष की अवमानना करना, उस पद की गरिमा को नीचे गिराना, तो मैं मानता हूं कि पूर्व अध्यक्षों ने जो निर्णय लिये थे, मैं उससे तब सहमत नहीं था और आज भी सहमत नहीं हूं। लेकिन अध्यक्ष के निर्णय को और संसद के अध्यक्ष की गरिमा को कायम रखना हर सदस्य का कर्तव्य होता है। इसलिए उस समय इन लोगों की सलाह को मैंने माना था। नैतिकता की दुहाई देने वाले, सदन की परम्परा की दुहाई देने वाले अपने अतीत को झांककर देख लें।

जिस समय असुविधा होने लगे, नेतृत्व खतरे में पड़ जाये तो चार सदस्यों को बाहर निकाल दो। राजनीतिक मान्यता, राजनीतिक नैतिकता यह नहीं हैं। मान्यता और नैतिकता यह है कि अगर सदस्य आपके दल में नहीं रहना चाहता हो तो उसको ग्रेसफुली स्वीकार करो, अलग हो गए हो।

अपने जीवन के दो दिन और चलाने के लिए संसदीय परम्पराओं की मान्यताओं की दुहाई देना एक जघन्य राजनीतिक अपराध है और इस अपराध से संसद को बचाना है।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।