सांसदों को गुंडा कहा जाना गैर ज़िम्मेदाराना वक्तव्य, हो तत्काल कार्रवाई, नहीं हो सदन में इसे लेकर वाद-विवाद
संदर्भ: लोकसभा में 17 मार्च 1991 को श्री चंद्रशेखर
अध्यक्ष जी, माननीय सदस्य ने जिस मुद्दे को उठाया है, वह बहुत ही गम्भीर है। आपको इस पर अपनी टिप्पणी तो देनी ही चाहिए क्योंकि यदि कोई भी संसद के सदस्यों को गुंडा कहता है और कोई भी समाचार-पत्र चाहे वह कितना भी प्रख्यात क्यों न हो, इस बात को प्रकाशित करता है तो क्या इस पर आपकी टिप्पणी अपेक्षित नहीं है?
अध्यक्ष जी, किसी भी सदस्य द्वारा किसी भी समाचार-पत्र में दिया गया यह एक गैर-ज़िम्मेदाराना वक्तव्य है और यदि यह प्रथा जारी रही तो मैं नही जानता कि इस सदन की मर्यादा को किस तरह से कायम रखा जा सकता है। यह कोई इस तरह का मामला नहीं है कि जिसका केवल उल्लेख कर दिया जाए। आप यह मामला तत्काल ही विशेषाधिकार समिति को भेज दें अथवा लेखक की निंदा करें, समाचार-पत्र की भत्र्सना करें। कुछ-न-कुछ तो किया ही जाना चाहिए। इस बात की प्रतीक्षा नहीं की जा सकती कि समय आएगा और इस मामलों पर विचार किया जाएगा।
मैं माननीय सदस्यों से सहमत हूं कि इस पर रक्षा मंत्री वक्तव्य दें। लेकिन मैं अपने मित्र श्री जसवंत सिंह से भी सहमत हूं कि रक्षा मंत्री के वक्तव्य के बाद इस मामले को न बढ़ाया जाए क्योंकि रक्षामंत्री का यह दायित्व है कि नागरिक प्राधिकार की सर्वोच्चता बनाई रखी जाए। मैं इस अधिकारी को जानता हूं, मैं अपने कर्क्राव्य मैं विफल रहूंगा यदि मैं यह नहीं कहूं कि वह एक बहुत ही योग्य और कर्क्राव्यनिष्ठ आधिकारी हैं। मैं नहीं जानता कि उन्होंने किन परिस्थितियों में यह वक्तव्य दिया है। मेरा यही अनुरोध है कि संसद में इस प्रकार के संवेदनशील मामलों पर वाद-विवाद नहीं होना चाहिए अन्यथा इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ेगा।
मैं अपने मित्र श्री सोमनाथ चटर्जी से सहमत हूं कि रक्षामंत्री उनसे बात करें, यहां एक वक्तव्य दें और वक्तव्य के बाद मामला समाप्त समझा जाए।