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देश का रक्षा मंत्री रातोरात किसी प्रदेश का मुख्यमंत्री बन जाता है और सदन को खबर नहीं, दुखद

संदर्भ: रक्षा मंत्री शरद पवार को महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाने जाने के मामले पर 4 मार्च 1993 को लोकसभा में श्री चंद्रशेखर


सभापति महोदय, जो अटल जी ने सवाल उठाया,यह काफी गम्भीर है। हम देखते हैं कि एक परम्परा बनती जा रही है, क्षमा कीजिएगा सभापति महोदय सब तरफ से ऐसा लगता है कि सदन को एक मजाक की जगह बनाया जा रहा है। इसमें सब लोगों को थोड़ा-बहुत कॉन्ट्रिब्यूशन है। यदि मैं कहूं कि अध्यक्ष के पद से भी वह काम नहीं हो रहा है जो सदन की गरिमा को बनाए रखने के लिए आवश्यक है तो गलत नहीं होगा। क्योंकि यह सवाल व्यक्तियों का नही है। हमारे मित्र रवि राय जी परेशान हैं कि अमेरिका के लोग हमारे बारे में क्या कह रहे हैं। देश का रक्षा मंत्री रात के अंधेरे में किसी प्रदेश का मुख्यमंत्री बन गया और सदन को खबर नहीं, सदन को कोई सूचना नहीं, प्रधानमंत्री का कोई वक्तव्य नहीं, उनकी जगह कोई दूसरा रक्षा मंत्री नहीं। मुझे दुःख है कि श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी और श्री सोमनाथ चटर्जी जी जैसा व्यक्ति कहता है कि वह उनका आंतरिक मामला है। उनका आंतरिक मामला तब तक है, जब तक वह सदन में किसी काम के लिए ज़िम्मेदार नहीं है। यदि वे रक्षा मंत्री है तो यह कांगे्रस का आंतरिक मामला नहीं है। यह देश का मामला है। इसे लेकर जिस तरह के छोटेपन की ज़हनियत को दिखाया जा रहा है, उस ज़हनियत से देश नहीं चलने वाला है।

सभापति महोदय, यहां पर सदन चल रहा है तो किसी को आकर कहना चाहिए था कि डिफेंस मिनिस्टर का त्यागपत्र मंज़ूर कर लिया गया है। यह शरद पवार की इज़्ज़त का सवाल नहीं है, यह देश की प्रतिष्ठा का सवाल है, यह सदन की गरिमा का सवाल है। यह संसदीय परम्परा को चलाने के ढंग का सवाल है। ऐसा नहीं हो सकता कि कोई भी प्रधानमंत्री, मैंने देखा है कि जब यहां प्रधानमंत्री पर कोई सवाल उठा तो सारे रूल्स-रेगुलेशन्स कोट किए जाते हैं। कोई मंत्री इस्तीफा दे देता है तो कोई उठकर कह देता है कि फला मंत्री इस्तीफा देकर चला गया। कोई आदमी या बडे़ से बड़ा अधिकारी हो तो उसको जेल भेज दिया जाता है। एक बयान दे दिया जाता है।

सभापति महोदय, कोई न कोई कहीं पर कदम उठाइए, जहां पर ये सारी बातें रुक सकें, नहीं तो केवल खतरा बाहर से नहीं होता है। सबसे बड़ा खतरा संसदीय जनतंत्र को तब होता है जब जानबूझकर परम्पराएं तोड़ी जाती हैं। मैं नहीं समझता कि ये परम्पराएं निकम्मेपन की वजह से टूट रही हैं या किसी षडयंत्र के कारण टूट रही है। लेकिन टूट रहीं हैं जो संसदीय जनतंत्र के खिलाफ भयंकर षडयंत्र है, जिसको हम चुपचाप सहन नहीं कर सकते।

सभापति महोदय, जो अटल जी ने सवाल उठाया,यह काफी गम्भीर है। हम देखते हैं कि एक परम्परा बनती जा रही है, क्षमा कीजिएगा सभापति महोदय सब तरफ से ऐसा लगता है कि सदन को एक मजाक की जगह बनाया जा रहा है। इसमें सब लोगों को थोड़ा-बहुत कॉन्ट्रिब्यूशन है। यदि मैं कहूं कि अध्यक्ष के पद से भी वह काम नहीं हो रहा है जो सदन की गरिमा को बनाए रखने के लिए आवश्यक है तो गलत नहीं होगा। क्योंकि यह सवाल व्यक्तियों का नही है। हमारे मित्र रवि राय जी परेशान हैं कि अमेरिका के लोग हमारे बारे में क्या कह रहे हैं। देश का रक्षा मंत्री रात के अंधेरे में किसी प्रदेश का मुख्यमंत्री बन गया और सदन को खबर नहीं, सदन को कोई सूचना नहीं, प्रधानमंत्री का कोई वक्तव्य नहीं, उनकी जगह कोई दूसरा रक्षा मंत्री नहीं। मुझे दुःख है कि श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी और श्री सोमनाथ चटर्जी जी जैसा व्यक्ति कहता है कि वह उनका आंतरिक मामला है। उनका आंतरिक मामला तब तक है, जब तक वह सदन में किसी काम के लिए ज़िम्मेदार नहीं है। यदि वे रक्षा मंत्री है तो यह कांगे्रस का आंतरिक मामला नहीं है। यह देश का मामला है। इसे लेकर जिस तरह के छोटेपन की ज़हनियत को दिखाया जा रहा है, उस ज़हनियत से देश नहीं चलने वाला है।

सभापति महोदय, यहां पर सदन चल रहा है तो किसी को आकर कहना चाहिए था कि डिफेंस मिनिस्टर का त्यागपत्र मंज़ूर कर लिया गया है। यह शरद पवार की इज़्ज़त का सवाल नहीं है, यह देश की प्रतिष्ठा का सवाल है, यह सदन की गरिमा का सवाल है। यह संसदीय परम्परा को चलाने के ढंग का सवाल है। ऐसा नहीं हो सकता कि कोई भी प्रधानमंत्री, मैंने देखा है कि जब यहां प्रधानमंत्री पर कोई सवाल उठा तो सारे रूल्स-रेगुलेशन्स कोट किए जाते हैं। कोई मंत्री इस्तीफा दे देता है तो कोई उठकर कह देता है कि फला मंत्री इस्तीफा देकर चला गया। कोई आदमी या बडे़ से बड़ा अधिकारी हो तो उसको जेल भेज दिया जाता है। एक बयान दे दिया जाता है।

सभापति महोदय, कोई न कोई कहीं पर कदम उठाइए, जहां पर ये सारी बातें रुक सकें, नहीं तो केवल खतरा बाहर से नहीं होता है। सबसे बड़ा खतरा संसदीय जनतंत्र को तब होता है जब जानबूझकर परम्पराएं तोड़ी जाती हैं। मैं नहीं समझता कि ये परम्पराएं निकम्मेपन की वजह से टूट रही हैं या किसी षडयंत्र के कारण टूट रही है। लेकिन टूट रहीं हैं जो संसदीय जनतंत्र के खिलाफ भयंकर षडयंत्र है, जिसको हम चुपचाप सहन नहीं कर सकते।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।