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राष्ट्रीय शोक का अवसर, जसवंत सिंह उत्तर प्रदेश सरकार को समझाएं कि वह भी कुछ कर

संदर्भ: फिरोजाबाद रेल दुर्घटना पर 21 अगस्त 1995 को लोकसभा में श्री चंद्रशेखर


उपाध्यक्ष जी, फिरोजाबाद के सदस्य ने जो भावना व्यक्त की ह,ै मैं उससे अपने को जोड़ता हूं। यह राष्ट्रीय शोक का अवसर है। उन्होंने जिस पीड़ा का इज़हार किया है और जिन शब्दों में इस दुर्घटना का वर्णन किया है, वे सबका दिल दहला देने वाले हैं। मैं सरकार से एक ही निवेदन करूंगा कि उनके एक-एक शब्द क्रियान्वित करने के लिए तुरंत कदम उठाए जाने चाहिए। मैं जानता हूँ कि कठिनाइयां हैं लेकिन उन कठिनाइयों के बावजूद भारत सरकार के पास ऐसे साधन हैं कि जो लोग मर गए हैं, उनकी लाश को सुरक्षित रखा जा सके। दुर्घटना में जो घायल हुए हैं उनका सही उपचार किया जा सके। अगर 24 या 36 घण्टे के बाद भी यह काम नहीं हुआ तो यह अत्यंत दुःखद बात है। मैं समझता हूं कि यदि प्रधानमंत्री जी सदन में आएंगे, मंत्रिमंडल का कोई सदस्य यहां वक्तव्य देने आएगा तो उससे पहले जो शब्द माननीय सदस्य ने कहे हैं, उनके एक-एक शब्द को क्रियान्वित करने के लिए कदम उठाकर ही यहां वक्तव्य देने के लिए आएं, यह मेरा पहला सुझाव है।

महोदय, मेरा दूसरा सुझाव यह है कि माननीय सोमनाथ चटर्जी जी ने कुछ बातें कही हैं। यह सही है कि आज हमारे पास साधनों की कमी है। लेकिन साधनों की इतनी कमी तो नहीं है कि आज हम आधुनिक साधनों का उपयोग न कर सकें। उन्होंने 3-4 कमेटियों की रिपोर्ट का उह्रण किया है। मैं समझता हूं कि वित्तमंत्री जी उनकी बात सुन रहे थे और उस समिति के वह सदस्य थे जिस समिति ने रिपोर्ट दी है। मेरा कहना यह है कि दुर्घटना बचाने के लिए जो भी जरूरतें हंै, उनमें कोई बहुत बड़ा पैसा नहीं लगने वाला है। आज सरकार कम से कम यह घोषणा करे कि इस रेलवे को ये साधन दिए जाएंगे और यदि खर्चा नहीं करते हैं तो कहा जाए और इसके लिए चाहे 5-6 महीने लगें, उसके लिए जरूरत पड़े तो रेलवे की जो कमेटी है उसकी एक समिति हो, उपसमिति हो जो इस बात को देखे कि रेलवे इनको क्रियान्वित कर रही है या नहीं कर रही है।

ये दो काम करने इस वक्त बहुत जरूरी हैं। किसकी जम्मेदारी है, इसकी जांच हो, यह ठीक है, लेकिन मैं समझता हूं कि सोमनाथ जी उस समिति के सदस्य रह चुके हैं, और भी जो लोग सदस्य रहे हों, उन दो-तीन लोगों की एक समिति बनाई जानी चाहिए। कहीं पर, किसी सवाल पर तो कम-से-कम हम एकमत होकर कुछ कदम उठाने के लिए तैयार हों। आज देश में क्या हो रहा है, 300 या 500 लोग मर गए, आज भी हम केवल बहस ही करते रहें और अंत में सरकार की ओर से जवाब आ जाए और उसके बाद यह बहस समाप्त हो जाए, तो यह संसद के लिए मर्यादा की बात नहीं होगी। उपाध्यक्ष महोदय, इससे अधिक मैं और कुछ नहीं कहना चाहता। शोक-संवेदना हमने प्रकट की है, लेकिन कुछ अमली कदम उठाने के लिए सरकार को निर्णय करके इस सदन के सामने आना चाहिए और कम-से-कम जो माननीय सदस्य फिरोज़ाबाद ने सवाल रखे हैं, उनका जवाब सरकार के पास होना चाहिए। उत्तर प्रदेश सरकार अगर कुछ नहीं कर रही है तो अटल जी तो यहां पर नहीं हैं, मैं जसवंत सिंह जी से कहूंगा कि उनको भी कुछ समझाइए कि वे कुछ करें। अगर उत्तर प्रदेश सरकार नहीं करती तो भारत सरकार को स्वयं उस काम को करना चाहिए। यदि मेरी आवाज़ यहां से उन तक पहुंच सके तो मैं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री से निवेदन करूंगा कि कोई अधिकारी अगर दोषी है, तो अवश्य देखें। क्योंकि वे माननीय सदस्य किसी राजनीतिक लाभ के लिए नहीं बोल रहे थे, जब बोल रहे थे तो अपनी अंतरात्मा की आवाज़ बोल रहे थे और उसी से प्रेरित होकर मैं दो शब्द कहने के लिए खड़ा हुआ हूं।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।