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केवल आरोप-प्रत्यारोप से हालात बिगड़ेंगे, मामला अत्यंत चिंताजनक, राज्य व देश के गृहमंत्री एक रिपोर्ट द

संदर्भ: राजस्थान में नरबलि के मामले पर 8 जुलाई 1992 को लोकसभा में श्री चंद्रशेखर


अध्यक्ष महोदय, यह बहस आधे घंटे से चल रही है। कुछ बातें राम विलास जी ने और कुछ बातें जसवंत सिंह जी ने कहीं। मामला अत्यंत चिंताजनक है। यह बात है कि जो हत्या हुई, वह नृशंस हत्या हुई लेकिन, दुःख इस बात का है कि दोनों तरफ से आरोप-प्रत्यारोप लगाए जा रहे हैं, इससे हालत और बिगडे़गी। मैं नहीं जानता हूं कि इस तरह की बहस से क्या लाभ होने वाला है।

मैं, किसी की मंशा के ऊपर शंका नहीं करना चाहता। मुझे आश्चर्य इस बात पर है कि राज्य के गृहमंत्री वहां गए। सी.बी.आई. को दिए हुए यह मामला एक महीना हो गया। जो सी.बी.आई. का काम करने का तरीका है, वह कोई न कोई प्रारम्भिक रिपोर्ट सरकार को दी होगी। हर राज्य में इस तरह की घटनाएं होती हैं तो इंटेलिजेंस ब्यूरो के लोग इस तरह की घटना की रिपोर्ट 24 घण्टे के अंदर देते हैं। इस मामले में कोई राज्य सरकार पर आरोप लगाता है। कोई पुलिस पर जाति के नाम पर बांटने का आरोप लगाता है। कोई सदस्य यह कहता है कि एक सरकारी अफसर को 23 महीने से निलंबित किया गया है। दूसरी तरफ से कहा जाता है कि उन पर रेप का आरोप है। मैं नहीं जानता कि इस तरह से हम लोग इन हत्याओं को रोकने में समर्थ हो सकेंगे। इसलिए मैं समझता हूं कि जो सवाल बूटा सिंह जी ने, वासनिक जी ने उठाया है कि राज्य गृहमंत्री और केन्द्रीय गृहमंत्री को कोई एक रिपोर्ट देनी चाहिए कि उनकी जानकारी क्या है। यह बहुत दुःखद बात कही गयी है कि वहां कोई नरबलि दी गयी। जसवंत सिंह जी कहते हैं कि यह बात सही नहीं है। इस बात पर भारत सरकार कोई राय नहीं देगी तो इसका क्या असर सारे देश पर नहीं पड़ेगा। हमारे भाषण जगह-जगह हत्या होने से रोक नहीं सकते। हम जितने भाषण यहां पर देते हैं, हत्याओं का जोर उतना बढ़ता है।

अध्यक्ष महोदय, मैं आपसे करबह् निवेदन करूंगा कि दोनों पक्षों के लोगों को सद्बुह् टिदी जाए और खास तौर से इस सरकार को कहिए कि कुछ ज़िम्मेदारियां इनकी हैं। केवल राज्य सरकारों की अवमानना, उनकी बेइज़्ज़ती, उनकी आलोचना सुनते रहना और चुपचाप बैठे रहने से देश की समस्याएं और जटिल होंगी। इसलिए आप समय निश्चित कर दें और राज्य के गृहमंत्री इस मामले में दो-तीन बातों पर ध्यान दें। खासतौर से नरबलि हुई कि नहीं और राज्य सरकार का उसमें हाथ था या नहीं था। यह भी सवाल उठाया गया कि जान की कीमत लगे। हम कहते हैं कि कोई मर गया तो उसको कंपनसेशन दीजिए। आप यह भी कहते हैं कि जो थोड़ी मदद दी जा रही है, वह रोक दी जाए। क्या केवल भाषण देने से काम चल जाएगा। जो मन में आता है वह भाषण हम देते हैं।

अध्यक्ष महोदय, आप इन भाषणों को रोकिए। इससे यह संसद इन घावों पर मरहम नहीं लगाएगी बल्कि आग में घी डालने का काम करेगी। मैं, प्रधानमंत्र जी से करबह् निवेदन करूंगा कि प्रारम्भिक रिपोर्ट आप दीजिए ताकि बहस एक दायरे के अंदर हो। स्थिति को बचाने और सुधारने के लिए कुछ हो सके, यही मेरा निवेदन है। इस सत्र के दौरान भी गृहमंत्री तथा मुख्यमंत्री के बीच एक-दूसरे पर आरोप लगाते हुए पत्राचार हुए। कभी गृहमंत्री ने सरकार को धमकी दी। अब संसद का सत्र चल रहा है तो गृहमंत्री मौन हैं।

मैं आदर के साथ कहना चाहूंगा कि मुझे इसमे कोई रुचि नहीं है। लेकिन मामला अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसे लेकर सरकार और गृहमंत्रालय के बीच पिछले एक वर्ष से पत्राचार चल रहा है और कुछ भी नहीं हुआ। हर बार स्थिति और बिगड़ रही है। श्री शहाबुद्दीन जैसे मेरे मित्र खिन्न हो जाते हैं और हमें उनकी संवेदनशीलता को समझना चाहिए।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।