वकंग जर्नलिस्ट गड़बड़ व्यवस्था से जूझ रहे अखबारों को चलाएं तो सरकार करेगी हर सम्भव मदद
संदर्भ: मध्यम और लघु समाचार पत्रों के मामले पर 25 फरवरी 1991 को लोकसभा में श्री चंद्रशेखर
अध्यक्ष महोदय, इस मामले में इसमें अंतरिम रिपोर्ट देना संभव नहीं है। माननीय सदस्य जानने हैं कि अधिकतर सुझाव आर्थिक सवालों से जुडे़ हुए हैं, छोटे अखबारों की संख्या पर कोई रोक नहीं है, निरंतर इनकी संख्या बढ़ती जा रही है। इसलिए सरकार कोई ऐसा निर्णय नहीं लेगी जिसको पूरा न किया जा सके। इसलिए पूरी तफसील में जाए बगैर कोई अंतरिम सहायता या अंतरिम रिपोर्ट नहीं दी जा सकती। हम प्रेस की स्वतंत्रता में विश्वास करते हैं। माननीय सदस्यों ने कहा है कि प्रेस को और स्वतंत्रता दी जानी चाहिए। इसलिए मैं नहीं समझता कि यह सभी समाचार पत्र अपने हाथ में लेने का कोई प्रस्ताव है।
जैसा कि मैंने पहले बताया है कि इस समय कोई निर्णय लेना हमारे लिए सम्भव नहीं है, क्योंकि कोई निश्चित नीति नहीं है। हर रोज ऐसे नए विचार आते रहते हैं। आप यह पक्की तौर पर नहीं कह सकते हैं कि इस विशेष दिन के बाद कोई नया विचार नहीं आएगा। हम समाचार-पत्रों को बंद नहीं कर सकते हैं। यह समस्या काफी पेचीदी है। हम पूर्ण विस्तार में जाए बिना तथा देश की अर्थव्यवस्था पर उसके परिणामिक प्रभावों की जांच किए बिना इस मामले में कोई निर्णय नहीं लेंगे।
अध्यक्ष महोदय, माननीय सदस्य ने जो विचार व्यक्त किए हैं मैं उनसे सहमत हूं कि जब आर्थिक शक्ति का बढ़ावा होता है और आर्थिक जगत में जो लोग प्रभावकारी हैं, वे समाचार-पत्रों पर अधिकार करते हैं तो उससे अनेक प्रकार की विक्रतियां पैदा होती हैं। हमारी कठिनाई यह निर्णय करना है कि कौन-सा अखबार सही है और कौन-सा गलत। जहां तक वकंग जर्नलिस्ट यदि नया अखबार चलाना चाहें, किसी अखबार की व्यवस्था गड़बड़ हो और वकंग जर्नलिस्ट उनको चलाने की ज़िम्मेदारी ले तो सरकार वकंग जर्नलिस्ट को, जो पत्रकार बन्धु हैं, उनको हर सम्भव सहायता देगी। मैं मानता हूं कि यदि उनके ज़रिये अखबार चलाया जाए तो ज्यादा सही मायने में हम देश की छवि को और समाज की समस्याओं को प्रकट कर सकेंगे।
अध्यक्ष महोदय, इसके लिए हमने समिति गठित की है और वह हर पहलू पर विचार कर रही है। हम निश्चित समय नहीं बता सकते कि कितने दिन में निर्णय होगा। लेकिन जल्दी ही निर्णय कराने की कोशिश करेंगे। एक अन्य माननीय सदस्य ने सुझाव दिया है कि हमें एक तिथि निर्धारित कर देनी चाहिए और उस तिथि से पहले से प्रकाशित समाचार पत्रों को सुविधाएं देनी चाहिए। वैसे छोटे तथा मध्यम दर्जे के समाचार पत्रों की समस्या विशेष डाक दर की नहीं है। मुख्य समस्या विज्ञापनों के बारे में है, क्योंकि इसके कुछ निश्चित मानदंड हैं। हमें मानदंडों में संशोधन करना है। केवल डाक दर में राहत देने से उन्हें कुछ लाभ नहीं होगा जब तक कि हम उन्हें विज्ञापन तथा अन्य सुविधाएं नहीं देंगे।