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सार्क अब व्यापार, उद्योग, ऊर्जा, और पर्यावरण जैसे क्षेत्र में अग्रसर होने को तत्पर ह

संदर्भ: पांचवें सार्क शिखर सम्मेलन पर 7 जनवरी 1991 को लोकसभा में श्री चंद्रशेखर का वक्तव्य


अध्यक्ष महोदय, 21 से 23 नवम्बर, 1990 के बीच आयोजित पांचवें सार्क शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए मैं मालदीव गया था। इस शिखर सम्मेलन के परिणाम माले घोषणा में तथा इस शिखर सम्मेलन के अंत में जारी संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति में निहित है। इन दस्तावेजों की प्रतियां सदन की मेज पर रख दी गई हैं।

मालदीव के अपने प्रवास के दौरान मैंने बंगलादेश के भूतपूर्व राष्ट्रपति इरशाद से, मालदीव के राष्ट्रपति गयूम से, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से तथा श्रीलंका के प्रधानमंत्री विजयतुंग से अलग-अलग बातचीत की। माले में मुझे भूटान के महामहिम नरेश तथा नेपाल के प्रधानमंत्री भट्टराई से भी भेंट करने का सुअवसर मिला लेकिन इन दोनों नेताओं के साथ विस्तृत बातचीत नई दिल्ली में की जहां वे इस शिखर सम्मेलन के तुरन्त बाद पहुंच रहे थे।

इस शिखर सम्मेलन और शिखर सम्मेलन से पूर्व होने वाली बैठकों में भारत की कई पहल-कदमियों को स्वीकार किया गया। इन्हें माले घोषणा तथा संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति में स्थान दिया गया।

हमारे सुझाव पर सार्क के अंतर्गत क्षेत्रीय सहयोग का विस्तार जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी किया गया है। सम्मेलन में हमारा यह प्रस्ताव भी स्वीकार हुआ कि क्षेत्रीय परियोजनाएं तय करने और उनके विकास के लिए एक कोष की स्थापना की जाए जिसके लिए वित्त की व्यवस्था सदस्य देशों के राष्ट्रीय विकास बैंक करें। हम इन बैंकों के प्रतिनिधियों को एक बैठक में बुलाएंगे जिसमें इस कोष के संचालन के ठीक-ठाक तरीके तय किये जाएंगे।

भारत अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक मसलों पर मंत्रीस्तर की दूसरी बैठक की भी मेजबानी करेगा जिसमें उरुग्वे व्यापार वार्ता के निष्कर्षों की समीक्षा की जाएगी और पर्यावरण एवं विकास के बारे में संयुक्त राष्ट्र के आगामी सम्मेलन में सदस्य देश की नीतियों में समन्वय स्थापित किया जाएगा। इस बात पर सहमति हुई कि मंत्रीस्तर की यही बैठक क्षेत्रीय संसाधन जुटाने के लिए एक कार्य नीति तैयार करेगी जिससे इस क्षेत्र में व्यक्तिगत और समष्गित आत्मनिर्भरता को प्रोत्साहन मिलेगा और वह सुदृढ़ होगी। हमने यह सुझाव भी दिया और इस पर निर्णय भी हो गया कि कुटीर उद्योग और हस्तशिल्प के क्षेत्र में संयुक्त उद्यमों की स्थापना के लिए तत्काल कदम उठाए जाने चाहिए ताकि इस क्षेत्र में सामूहिक आत्म-निर्भरता बढ़ाने के लिए एक मंच तैयार हो। इस शिखर सम्मेलन में एक महत्वपूर्ण निर्णय यह लिया गया कि तीन अतिरिक्त क्षेत्रीय केन्द्र स्थापित किए जाएं अर्थात् पाकिस्तान में मानव संसाधन विकास केन्द्र, भारत में सार्क प्रलेखन केन्द्र और नेपाल में सार्क क्षय रोग केन्द्र। हम भारत में सार्क प्रलेखन केन्द्र की स्थापना की दिशा में आवश्यक कदम शीघ्रतापूर्वक उठा रहे हैं। इस सार्क शिखर सम्मेलन की कई अन्य महत्वपूर्ण उपलब्धियां भी रहीं। हम इस क्षेत्र में पर्यटन बढ़ाने पर सहमत हुए। हमने अपने समाचार पत्र संघों के बीच और अधिक सम्पर्कों को सुविधाजनक बनाने का फैसला किया। हमने 1990 के दशक को बालिका दशक घोषित किया। हमने सार्क यात्रा दस्तावेज लागू किया जिससे कुछ वर्गों के लोग वीजा के बिना यात्रा कर सकेंगे। हमारे विदेशमंत्रियों ने स्वापक औषधि और मनःप्रभावी पदार्थों के सम्बंध में एक महत्वपूर्ण क्षेत्रीय अभिसमय पर हस्ताक्षर किये। राष्ट्रपति गयूम के साथ मेरी बहुत सौहार्दपूर्ण और मित्रतापूर्ण बातचीत हुई। चूंकि हमारे बीच कोई द्विपक्षीय समस्या नहीं है, इसलिए हमने आपसी सहयोग की कुछ प्रमुख परियोजनाओं पर विचार विमर्श किया जिनके बारे में हम पूरी तरह एकमत थे। राष्ट्रपति गयूम ने भारत-यात्रा का मेरा निमंत्रण क्रपा पूर्वक स्वीकार किया। वे बहुत शीघ्र हमारे देश की यात्रा पर आएंगे।

प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के साथ अपनी द्विपक्षीय बातचीत में मैं उनके रचनात्मक रवैये से प्रभावित हुआ। उनके साथ बातचीत से यह प्रकट हुआ कि वे इस बात को भली-भांति जानते हैं कि दोनों देशों के बीच सम्बंधो की विषमता कितनी महंगी पड़ सकती है और सहयोगपूर्ण सम्बंध लाभकारी हो सकते हैं।

मैंने उनकी भावनाओं की पूरी र्की करते हुए ऐसे ही विचार व्यक्त किए और अपने दोनों देशों के बीच विश्वास और भरोसा पुनः कायम करने में उनका सहयोग मांगा। मैंने पंजाब तथा जम्मू और कश्मीर राज्यों में आतंकवाद को सीमा पार से लगातार मिल रहे समर्थन के बारे में अपनी चिंता ज़ाहिर की। मैंने बलपूर्वक यह बात कही कि हमारे सम्बंधो में यह एक गम्भीर अड़चन है। हम इस बात पर सहमत हुए कि भारत और पाकिस्तान के बीच के सभी मतभेदों को शांतिपूर्वक और बातचीत के ज़रिये सुलझाया जाना चाहिए और इन विभिन्न अनसुलझे मसलों पर बातचीत की प्रक्रिया पुनः शुरू होनी चाहिए।

हमारी इस बैठक के परिणामस्वरूप भारत और पाकिस्तान के विदेश सचिवों की बैठक हुई है तथा हमारे संबंधो के बीच के तनाव को कम करने के लिए परस्पर विश्वास बढ़ाने की दिशा में कई उपायों पर उनमें सहमति की दिशा में प्रगति हुई है। उन्होंने सर क्रीक में भू-सीमा को अंकित करने, तुलबुल नौवहन परियोजना जैसे मसलों पर बातचीत पुनः शुरू करने के लिए बैठकें बुलाने का निर्णय लिया है।

प्रधामंत्री विजयतुंग के साथ अपनी मुलाकात में मैंने श्रीलंका में जातीय संघर्ष निरन्तर चलने पर अपनी चिंता व्यक्त की। इसमें दोनों ओर से बड़ी संख्या में लोग हताहत हो रहे हैं। इनमें असैनिक लोग भी शामिल हैं। हमने व्यापार और आर्थिक क्षेत्र में अपना सहयोग बढ़ाने की सम्भावनाओं पर भी विचार-विमर्श किया।

अपनी बात खत्म करने से पहले मैं एक बार फिर यह कहना चाहूँगा कि भारत सार्क के अंतर्गत दक्षिण एशियाई सहयोग के लिए प्रतिबह् है। यह हमारे आर्थिक विकास की गति को तेज करने के लिए व्यक्तिगत और समष्गित आत्मनिर्भरता के निर्माण के लिए और बहुपक्षीय वार्ताओं में अपनी बात मनवाने की शक्ति बढ़ाने के लिए बहुत जरूरी है। संसार में आर्थिक एकीकरण की वर्तमान प्रवृत्ति के संदर्भ में इस प्रकार का सहयोग आज और भी आवश्यक हो गया है। माले शिखर सम्मेलन की अपनी ठोस उपलब्धियां हैं। सार्क अब व्यापार, उद्योग, ऊर्जा, मुद्रा, वित्त और पर्यावरण जैसे ठोस आर्थिक क्षेत्रों में सहयोग के मार्ग पर अग्रसर होने के लिए तत्पर है। जरूरत इस बात की है कि हममें इन क्षेत्रों में विश्वास के साथ राजनैतिक इच्छाशक्ति के साथ आगे बढ़ने की क्षमता हो। अपने आकार, अपने संसाधन और विकास के अपने स्तर के अनुरूप भारत निरन्तर ज़िम्मेदारी निभाता रहेगा और जहां जरूरी होगा वहां त्याग भी करेगा ताकि सार्क क्षेत्रीय सहयोग का एक प्रभावकारी और सम्पूर्ण उद्यम बन सके।

23 नवम्बर, 1990 को जारी माले घोषणा

1- बंगलादेश जन गणराज्य के राष्ट्रपति महामान्य श्री हुसैन मोहम्मद इरशाद, भूटान नरेश महामहिम नरेश जिग्मे सिग्ये वांगचुक, भारत गणराज्य के प्रधानमंत्री महामान्य श्री चंद्रशेखर, मालदीव गणराज्य के राष्ट्रपति महामान्य मोमून अब्दुल गयूम, नेपाल के प्रधानमंत्री परम सम्माननीय क्रष्ण प्रसाद भट्टराई, पाकिस्तान इस्लामिक गणराज्य के प्रधानमंत्री महामान्य श्री मोहम्मद नवाज़ शरीफ़ और लोकतांत्रिक समाजवादी गणराज्य श्रीलंका के प्रधानमंत्री श्री दीनगिरी बंदा विजयतुंग 21 से 23 नवम्बर, 1990 तक माले में दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग एसोसिएशन के पांचवे शिखर सम्मेलन में मिले।

2- राष्ट्राध्यक्षों तथा शासनाध्यक्षों ने इस बात को दोहराया कि इस क्षेत्र के लोगों के जीवन-स्तर को बेहतर बनाने के लिए दक्षिण एशिया के देशों के बीच सहयोग जरूरी है। उन्होंने अपना यह दृढ़ मत दोहराया कि दक्षिण एशिया में शांति और स्थायित्व कायम करने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि इस क्षेत्र के देशों के बीच पारस्परिक सद्भाव व सहयोग संबंध कायम किए जाएं। उन्होंने दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग एसोसिएशन के उद्देश्यों और सिद्धान्तों के प्रति अपनी वचनबह्ता की पुनः पुष् टिकी और समान उद्देश्यों की प्राप्ति की दिशा में सार्क के तत्वाधान में अपने सहयोग को और बढ़ाने का पुनः संकल्प लिया।

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- राष्ट्राध्यक्षों अथवा शासनाध्यक्षों ने बलपूर्वक यह बात कही कि संयुक्त राष्ट्र चार्टर और गुट निरपेक्ष सम्मेलन के सिद्धान्तों का सख्ती से अनुपालन करते हुए, खासतौर पर सम्प्रभुतात्मक समानता, प्रादेशिक अखंडता, राष्ट्रीयत स्वतंत्रता, शक्ति का प्रयोग न करने, दूसरे राज्यों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने और विवादों की शांतिपूर्ण तरीके से निपटाने के सिह्ान्तों के प्रति विशेष सम्मान करते हुए इस क्षेत्र में शांति, स्थायित्व और सौहार्द बढ़ाना चाहते हंै।

4- राष्ट्राध्यक्षों तथा शासनाध्यक्षों ने इस बात पर संतोष व्यक्त किया कि 1985 में सार्क की स्थापना तथा दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सहयोग को मजबूत करने का उद्देश्य से एकीक्रत कार्य योजना शुरू करने के क्षेत्र के लोगों में उत्साह बढ़ा है और आशा जागी है। दक्षिण एशिया में एक जागरूकता भी आ गई है जो क्षेत्रीय सहयोग की सफलता के लिए बहुत आवश्यक है और धीरे-धीरे विकसित भी हो रही है। उन्होंने कहा कि उनके क्षेत्र की जनता में सद्भाव, विश्वास और समझ-बूझ की जो रचनात्मक स्थिति विद्यमान है, उसका वे अधिक-से-अधिक प्रयोग करेंगे तथा सार्क को एक ऐसा सक्रिय माध्यम बना देंगे जो अपने उद्देश्यों में सफल हो सके तथा जिससे पारस्परिक सम्मान, समानता, सहयोग और पारस्परिक लाभ पर आधारित एक व्यवस्था कायम हो सके।

5- राष्ट्राध्यक्षों अथवा शासनाध्यक्षों ने दक्षिण एशिया में बच्चों की स्थिति पर विचार किया और यह देखा कि हाल ही में जो विश्व बाल सम्मेलन हुआ था उससे इस दिशा में किए जा रहे प्रयत्नों को एक नई प्रेरणा मिली है। उनका यह विश्वास था कि विश्व शिखर सम्मेलन की संगत सिफारिशों का, दक्षिण एशिया के संदर्भ में एक कार्य योजना में लाभप्रद तरीके से इस्तेमाल करके इसके कार्यान्वयन पर हर वर्ष विचार किया जाना चाहिए। इस प्रकार की कार्य योजना के मार्ग निर्देशक सिह्ांत विशेषज्ञों के एक दल द्वारा प्राप्त किए जा सकते हैं जिनका चयन सार्क महासचिव कर सकते है। इस कार्य योजना का स्वास्थ एवं जनसंख्या संबंधी कार्यकलाप विषयक तकनीकी समिति भी निरीक्षण कर सकती हैं। उन्होंने बाल अधिकार संबंधी अभिसमय पारित करने तथा उसे लागू का स्वागत किया। उन्होंने यह आशा व्यक्त की कि जो सदस्य राज्य अभी तक इस अभिसमय के पक्षकार नहीं बने हैं वे शीघ्र ही इसके पक्षकार बनेंगे।

6- शासनाध्यक्षों तथा राष्ट्राध्यक्षों ने जून, 1990 में इस्लामाबाद में आयोजित ‘‘विकास में महिलाओं के योगदान के संबंध में सार्क की दूसरी मंत्री’’ स्तरीय बैठक की सिफारिशों की पुष् टिकी। उन्होंने इस बात पर संतोष व्यक्त किया कि वर्ष 1990 को ‘‘सार्क बालिका वर्ष’’ के रूप में मनाने पर सदस्य राज्यों ने सामूहिक तौर पर उत्साहपूर्ण प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने यह निर्णय किया कि बालिकाओं की समस्याओं पर ध्यान आक्रष्ट करने के लिए 1991-2000 ई. का दशक ‘‘सार्क बालिका दशक’’ के रूप में मनाया जाना चाहिए।

7- राष्ट्राध्यक्षों अथवा शासनाध्यक्षों ने इस बात पर संतोष व्यक्त किया कि नशीले पदार्थ की समस्या से निपटने में क्षेत्रीय स्तर पर सहयोग बढ़ रहा है। उन्होंने नशीली दवाइयों के अवैध व्यापार तथा अंतर्राष्ट्रीय शस्त्र व्यापार और आतंकवादी गतिविधियों के बीच बढ़ते हुए गठजोड़ पर गम्भीर चिंता व्यक्त की। उन्होंने स्वीकार किया कि वर्ष 1989 को नशीली औषधियों के प्रयोग और उनके अवैध व्यापार के लिए सार्क वर्ष के रूप में मनाए जाने से इस भीषण समस्या की ओर ध्यान आक्रष्ट करने की दृष् टिसे बहुत जोरदार प्रभाव पड़ा है और इस बात की आवश्यकता को भी बहुत सराहा गया है कि इस समस्या को जड़-मूल से समाप्त किया जाना चाहिए। उन्होंने इस बात पर संतोष व्यक्त किया कि चैथे सार्क सम्मेलन में लिये गए निर्णय के अनुरूप ‘‘नारकोटिक डन्न्ग्स एंड साइकोटन्न्ोपिक सबस्टेन्सिज’’ सम्बंधी सार्क अभिसमय पर माले में हस्ताक्षर किये गये। उन्होंने सदस्य राज्यों का आह्वान किया कि इस अनुसमय के अनुसमर्थन के लिए शीघ्र उपाय करें ताकि इसे लागू किया जा सके। वे इस ओर से पूर्णतः आश्वस्त थे कि इस अभिसमय से इस क्षेत्र में सार्क के प्रयासों को अधिक कारगर बनाने में सहायता मिलेगी।

8- उन्होंने प्राक्रतिक आपदाओं एवं पर्यावरण के संरक्षणों और परिरक्षणों के कारणों और परिणामों से सम्बंधित क्षेत्रीय अध्ययन को पूरा करने की समय-सीमा के विषय में मंत्रिपरिषद के निर्णय की पुष् टिकी। उन्होंने इस बात पर संतोष व्यक्त किया कि ‘‘ग्रीन हाउस इफैक्ट’’ और इसके प्रभाव पर अध्ययन शुरू करने से सम्बह् रीति को निकट भविष्य में अन्तिम रूप दे दिया जाएगा। साथ ही उन्होंने यह इच्छा भी व्यक्त की कि यह अध्ययन छठे शिखर सम्मेलन में विचारार्थ पूरा हो जाना चाहिए। इस संदर्भ में उन्होंने इस बात पर गौर किया कि सघन वर्षा के क्षेत्रों का विश्व भर में लगातार विनाश होने की वजह से जलवायु संबंधी परिवर्तनों पर काफी बुरा प्रभाव पड़ रहा है तथा उन्होंने यह विचार व्यक्त किया कि प्रस्तावित अध्ययन में इस पक्ष को भी शामिल किया जाना चाहिए। उन्होंने यह आशा व्यक्त की कि इन अध्ययनों से पर्यावरण एवं प्राक्रतिक विपदा-प्रबंध के क्षेत्र में सार्थक सहयोग की एक कार्य योजना तैयार हो सकेगी।

9- इस बात को मानते हुए कि पर्यावरण प्रमुख सार्वभौम चिंता का विषय बन गया है, राज्याध्यक्षों अथवा शासनाध्यक्षों ने जलवायु परिवर्तन सम्बंधी अंतर सरकारी पैनल द्वारा अप्रत्याशित जलवायु परिवर्तन के बारे में की गय पूर्व सूचना पर गौर किया। उन्होंने विश्व समुदाय से अनुरोध किया कि वे अतिरिक्त वित्त जुटाएं तथा उपयुक्त प्रौद्योगिकियां उपलब्ध कराएं ताकि विकासशील देश जलवायु परिवर्तन और सर्मुीीय स्तर के ऊंचा हो जाने से उत्पींा हुई चुनौतियों का सामना कर सकें। उन्होंने इस बात पर सहमति व्यक्त की कि सदस्य देशों की इस मसले पर अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अपनी स्थितियां समन्वित करनी चाहिए। उन्होंने वर्ष 1992 को ‘सार्क पर्यावरण वर्ष’, के रूप में मनाने का फैसला किया।

10- राष्ट्राध्यक्षों अथवा शासनाध्यक्षों ने संतोष के साथ इस बात पर गौर किया कि व्यापार, विनिर्माण एवं सेवाओं के बारे में राष्ट्रीय अध्ययन पूरा हो गया है। उन्होंने इस बात की अवश्यकता पर बल दिया कि क्षेत्रीय अध्ययन मंत्रिपरिषद द्वारा निर्धारित समय सीमा के भीतर पूरा कर लिया जाए। उन्होंने आशा व्यक्त की कि इससे क्षेत्र के लोगों की समृह् टिके लिए सहयोग के नए रास्ते खुलेंगे।

11- राष्ट्राध्यक्षों अथवा शासनाध्यक्षों ने यात्रा दस्तावेजों के बारे में मंत्रिपरिषद की सिफारिशों को स्वीकार किया और यह योजना शुरू करने का फैसला किया।

12- राज्याध्यक्षों अथवा शासनाध्यक्षों ने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि सदस्य राज्यों को मज़बूर होकर अपने दुर्लभ संसाधनों को आतकंवाद को दबाने के लिए लगाना पड़ रहा है। उन्होंने आतंकवाद के दमन के बारे में सार्क क्षेत्रीय अभिसमय के क्रियान्वयन के लिए तेजी से सक्षम उपाय करने का आह्वान किया। उन्होंने सदस्य देशों से अभिसमय के अनुसार सहयोग जारी रखने का भी अनुरोध किया।

13- राष्ट्राध्यक्षों अथवा शासनाध्यक्षों ने इस बात पर गौर किया कि आज उनके देश अगली शताब्दी की दहलीज पर खड़े हैं जबकि संसार आज ज़बरदस्त परिवर्तनों के दौर से गुजर रहा है। जिन्हें लोकतंत्र, मुक्ति और मानवाधिकारों का प्रयोग करने, सैह्ान्तिक बाधाओं को दूर करने तथा सार्वभौम तनाव को कम करने तथा सार्वभौम संघर्ष के लिए तथा निरस्त्रीकरण की दिशा में प्रगति तथा बहुत सी क्षेत्रीय और सार्वभौम समस्याओं के निराकरण के रूप में अभिव्यक्ति मिल रही है। उन्होंने सार्वभौम अर्थव्यवस्था में उदारता की प्रवृत्ति का तथा राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं के विश्व अर्थव्यवस्था की मुख्य धारा में एक घार होने की प्रवृत्ति का स्वागत किया। उन्होंने सार्वभौम उत्पादन खपत और व्यापार की प्रणाली की बढ़ती हुई प्रवृत्ति का तथा विश्व अर्थव्यवस्था ढांचे की बढ़ती हुई बहुरूपता तथा अपनी प्रौद्योगिक गति और अपने प्रतियोगी रुख को बनाए रखने के लिए विकासशील देशों की मण्डियों के एकीकरण की प्रवृत्ति पर भी गौर किया। इन परिवर्तनों ने नई चुनौतियां प्रस्तुत की हैं तथा दक्षिण एशियाई देशों और शेष विकासशील विश्व के लिए नए अवसर दिए हैं। राष्ट्राध्यक्ष अथवा शासनाध्यश इस बात से संतुष् थे कि इन उद्देश्यों पर अधिक प्रभावी ढंग से चलने के लिए उनका आपसी सहयोग काफी महत्वपूर्ण हो सकता है।

14- विकासशील देशों की दीर्घकालीन खाद्य सुरक्षा के लिए जैव-प्रौद्योगिकी और औषधीय प्रयोजनों के अत्यावश्यक महत्व को ध्यान में रखते हुए राष्ट्राध्यक्षों अथवा शासनाध्यक्षों ने निर्णय लिया कि इस क्षेत्र में सहयोग को और विशेष रूप से आनुवंशिक संरक्षण के विशिष् ज्ञान के आदान-प्रदान तथा जननर्-ीव्य बैंको के रखरखाव को बढ़ाया जाए। इस बारे में उन्होंने भारत द्वारा प्रशिक्षण सुविधाएं देने के प्रस्ताव का स्वागत किया और इस बात पर भी सहमति व्यक्त की कि विभिींा सार्क देशों के पास उपलब्ध आनुवंशिक संसाधनों की सूची बनाने में सहयोग करने से पारस्परिक लाभ होगा। विकासशील देशों के लिए आनुवंशिक बैंक की स्थापना के लिए 15 विकासशील देशों के समूह (जी-15) के प्रस्ताव को ध्यान में रखते हुए राष्ट्राध्यक्ष अथवा शासनाध्यक्ष इस उद्यम में सहयोग देने को तैयार हो गए।

15- राष्ट्राध्यक्षों अथवा शासनाध्यक्षों ने क्षेत्रीय परियोजनाओं के लिए एक कोष की स्थापना करने के विचार का स्वागत किया। इस कोष से क्षेत्रीय परियोजनाओं का पता लगाने और उनका विकास करने के लिए आसान शर्तों पर Ωण उपलब्ध कराया जा सकेगा। वे इस बात पर सहमत हुए कि सदस्य देशों के राष्ट्रीय विकास बैंकों के प्रतिनिधि कोष के स्रोतों की ठीक-ठीक रूपरेखा तैयार करने के लिए और ऐसे तरीके निकालने के लिए परस्पर विचार-विमर्श करेंगे जिससे इन्हें संयुक्त उद्यम परियोजनाओं के साथ सम्बह् किया जा सके। उन्होंने भारत द्वारा इस बैठक की मेज़बानी करने के प्रस्ताव का स्वागत किया।

16- राष्ट्राध्यक्षों अथवा शासनाध्यक्षों ने खाड़ी में घटित हाल की घटनाओं को तनाव शैथिल्य, सहयोग और झगड़ों को शांतिपूर्ण ढंग से निपटाए जाने वर्तमान प्रवृत्ति के विपरीत अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति के रूप में लिया। उन्होंने इस मसले पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों के पालन की पुनः पुष् टिकी। इस मसले के शांतिपूर्ण समाधान की आवश्यकता पर जोर देते हुए उन्होंने कुवैत से इराकी सेनाओं की शीघ्र और बिना किसी शर्त पर वापसी की मांग की और वहां की वैध सरकार की बहाली की मांग की। उन्होंने कहा कि खाड़ी संकट से उनकी अर्थव्यवस्था पर भयंकर आघात पहुंचा है। प्रेषणों में आई भारी कमी, उनके निर्यात को नुकसान पहुंचने और तेल की कीमतों के बढ़ जाने से उनके भुगतान सन्तुलन की स्थिति को धक्का लगने के कारण उन्हें जो हानि हुई है उसकी प्रतिपूत के लिए उन्हें बड़े पैमाने पर अंतर्राष्ट्रीय सहायता की आवश्यकता है। उन्होंने इन प्रतिकूल परिणामों से उत्पींा प्रभावों को कम करने के लिए पारस्परिक सहयोग की सम्भावनाओं को स्वीकार किया।

17- राष्ट्रायाध्यक्षों अथवा शासनाध्य़क्षों ने इस बात पर संतुष् टिजाहिर की कि 1989 में संयुक्त राष्ट्र में छोटे देशों की रक्षा और सुरक्षा के लिए मालदीव की सरकार ने जो पहलकदमी की थी और जिसका सभी ने समर्थन किया था, उसे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का भी व्यापक समर्थन मिला है। वे इस बात पर सहमत हुए कि छोटे देशों की अपनी विशेष किस्म की समस्याएं हैं, इसलिए उनकी स्वतंत्रता और प्रादेशिक अखंडताा की रक्षा के लिए विशेष उपायों की जरूरत है।

18- राष्ट्राध्यक्षों अथवा शासनाध्यक्षों ने आशा व्यक्त की कि शस्त्र नियंत्रण पर दो महाशक्तियों के बीच वार्ता का निष्कर्ष उनके नाभिकीय शस्त्रागारों में भारी कमी करने की सहमति के रूप में होगा जिसके माध्यम में बाद में नाभिकीय शस्त्रों को पूरी तरह से समाप्त किया जा सकेगा। सार्वभौम शस्त्र कटौती के लिए अपनाए जाने वाले उपायों का स्वागत करते हुए उन्होंने स्वीकार किया कि सदस्य राष्ट्रों के बीच आपसी विश्वास तथा भरोसे को बढ़ाकर इस उद्देश्य की प्राप्ति की जा सकती है। उन्होंने निरस्त्रीकरण तथा विकास के बीच के संबंधो का उल्लेख किया तथा सभी राष्ट्रों से विशेषतः जिनके पास भारी मात्रा में नाभिकीय तथा परम्परागत शस्त्रागार हैं, से मांग की कि वे अतिरिक्त वित्तीय साधनों, मानव शक्ति तथा सृजनात्मक कार्यों को विकास की दिशा में लगाएं। उन्होंने रासायनिक अस्त्रों पर रोक लगाने तथा व्यापक परीक्षण प्रतिबंध संधि पर शीघ्र निर्णय करने का समर्थन किया। इस बारे में, उन्होंने आंशिक परीक्षण प्रतिबंध संधि को व्यापक नाभिकीय परीक्षण प्रतिबन्ध में परिवतत करने से सम्बंधित संशोधनों पर विचार करने के लिए जनवरी, 1991 में संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन बुलाने का स्वागत किया।

19- राष्ट्राध्यक्षों अथवा शासनाध्यक्षों ने इस बात पर चिंता व्यक्त की है कि विकासशील देशों की अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक स्थिति, संसाधनों के प्रतिकूल प्रवाह, व्यापार में अत्यधिक अवरोध, गम्भीर विदेशी Ωण तथा अधिक ब्याज दर की समस्या है। अतः सार्क देशों के लिए अधिक रियायती साधनों तथा प्रौद्योगिकी और साथ ही उनके निर्यात के लिए मंडियां उपलब्ध कराने की आवश्यकताओं को कम महत्व नहीं दिया जा सकता। उन्होंने आपसी हितों पर आधारित सामूहिक प्रयास की आवश्यकता की मांग की तथा यह अनुभव किया कि परस्पर आश्रित सम्मान प्रबंध सुनिश्चित करने के लिए नियमित रूप से उत्तर दक्षिण विचार-विमर्श किया जाए।

20- राष्ट्राध्यक्षों अथवा शासनाध्यक्षों ने 1986 में अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक मसलों पर इस्लामाबाद में हुई प्रथम मंत्रीस्तर की बैठक की उपयोगिता को दोहराया। वे इस बात पर सहमत हुए कि उरूग्वे दौर के परिणामों की समीक्षा करने के लिए तथा अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में, जिसमें पर्यावरण तथा विकास से सम्बह् संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन, 1992 शामिल है, स्थिति को समन्वित करने के लिए 1991 में भारत में मंत्रीस्तर की ऐसी दूसरी बैठक आयोजित की जाए।

21- अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक समता के प्रयासों को जारी रखने के लिए राज्याध्यक्षों अथवा शासनाध्यक्षों ने स्वावलम्बन के उद्देश्यों के लिए मंत्रीस्तरीय बैठक की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने मंत्रियों को क्षेत्रीय साधनों को संचालित करने की नीति तैयार करने का निर्देश दिया। इससे क्षेत्र में अलग-अलग और सामूहिक स्वावलम्बन को उत्साह और बल मिलेगा।

22- राष्ट्राध्यक्षों अथवा शासनाध्यक्षों ने पेरिस घोषणा (1990) तथा अल्पविकसित देशों से सम्बह् द्वितीय संयुक्त राष्ट्र सम्मेलनों द्वारा स्वीकार की गयी कार्ययोजना को अपना समर्थन दिया। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से कार्ययोजना के सफल कार्यान्वयन में सहयोग देने की मांग की जो क्षेत्र के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।

23- राष्ट्राध्यक्षों अथवा शासनाध्यक्षों ने साउथ एशिया के लोगों को स्वदेशी प्रौद्योगिकी जानकारी तथा सामग्री का अनुकूल उपयोग करके बेहतर आवास उपलब्ध करने की आवश्यकताओं पर जोर दिया तथा 1991 को ‘‘सार्क शरण-स्थल वर्ष’’ के रूप में मनाने का फैसला किया।

24- राष्ट्राध्यक्षों अथवा शासनाध्यक्षों ने नोट किया कि सार्क क्षेत्र में लाखों अपंग रह रहे हैं तथा उनकी कठिनाइयों को कम करने और उनके जीवन में सुधार लाने के लिए शीघ्र कार्रवाई की जानी ज़रूरी है। उन्होंने कहा, वर्ष 1993 ‘‘सार्क अपंग व्यक्तियों का वर्ष’’ के रूप में मनाया जाए।

25- राष्ट्राध्यक्ष अथवा शासनाध्यक्ष इस बात से विशेष रूप से प्रसन्न थे कि पांचवां सार्क शिखर सम्मेलन और मालदीव की स्वतंत्रता की 25वीं वर्षगांठ एक ही समय सम्पींा हुई। इससे उन्हें मालदीव की सरकार तथा लोगों के प्रति अपनी एकजुटता की भावना प्रदशत करने का अवसर प्राप्त हुआ। उनका विचार था कि माले शिखर सम्मेलन से क्षेत्रीय सहयोग के लाभों को समेकित करने और सार्क के संस्थागत आधार को मज़बूत करने में सहायता मिली है।

26- राष्ट्राध्यक्षों अथवा शासनाध्यक्षों ने 1991 में छठे सार्क शिखर सम्मेलन की मेज़बानी करने के लिए श्रीलंका सरकार के प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकार किया।

27- बंगलादेश, भूटान, नेपाल, पाकिस्तान तथा श्रीलंका के राष्ट्राध्यक्षों अथवा शासनाध्यक्षों ने मालदीव के राष्ट्रपति की बैठक के अध्यक्ष के रूप में अपनी ज़िम्मेदारियों को शानदार ढंग से निभाने के लिए हादक सराहना की।

23 नवम्बर, 1990 को जारी संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति

बंगलादेश के राष्ट्रपति, भूटान के नरेश, भारत के प्रधानमंत्री, मालदीव के राष्ट्रपति, नेपाल के प्रधानंत्री, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री तथा श्रीलंका के प्रधानमंत्री 21 से 23 नवम्बर, 1990 तक माले में दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग एसोसिएशन के पांचवे शिखर सम्मेलन के लिए एकत्र हुए। उनकी यह बैठक हादकता, सौहार्दता तथा पारस्परिक सद्भाव के वातावरण में हुई।

2- राष्ट्राध्यक्षों अथवा शासनाध्यक्षों ने सार्क के सिद्धान्तों और उद्देश्यों के प्रति अपनी वचनबह्ता की पुनः पुष्टि की और सार्क के तत्वाधान में अपने पारस्परिक सहयोग को और सुदृढ़ करने का संकल्प लिया। उन्होंने माले घोषणा जारी की।

3- उन्होंने नारकोटिक डन्न्ग्स और साइकोट्रॉपिक सव्सटैंस विषयक सार्क अभिसमय पर माले में मंत्रियों द्वारा हस्ताक्षर करने का स्वागत किया तथा इस अभिसमय का शीघ्र अनुसमर्थन करने के उपाय करने का वचन दिया।

4- राष्ट्राध्यक्षों अथवा शासनाध्यक्षों ने इस बात का फैसला किया कि वे एक ‘‘विशेष सार्क यात्रा दस्तावेज’’ शुरू करेंगे जिसके धारकों को इस क्षेत्र में यात्रा के लिए वीजा लेने की ज़रूरत नहीं रहेगी। उन्होंने फैसला किया कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को, राष्ट्रीय संसदों के सदस्यों, राष्ट्रीय शैक्षिक संस्थाओं के अध्यक्षों तथा उनके पति/पत्नियों और आश्रित बच्चों को यह दस्तावेज प्राप्त करने का हक होगा।

5- राष्ट्राध्यक्षों अथवा शासनाध्यक्षों ने मंत्रि-परिषद् के इस निर्णय की पुष्टि की कि 1991 की पहली छमाही में संगठित पर्यटन को संवधत करने से सम्बह् योजना शुरू कर दी जाएगी। उन्होंने सदस्य देशों के पर्यटन उद्योगों के बीच संस्थागत सहयोग के प्रस्ताव का भी स्वागत किया ताकि इस क्षेत्र से बाहर के पर्यटकों को और बड़ी मात्रा में आक्रष् किया जा सके।

6- उन्होंने इस बात पर संतोष व्यक्त किया कि सभी सदस्य देशों ने अपने यहां व्यापार, विनिर्माण और सेवा संबंधी राष्ट्रीय अध्ययन का कार्य पूरा कर लिया है। उन्होंने इस बात की आवश्यकता पर बल दिया कि क्षेत्रीय अध्ययन का कार्य भी निर्धारित समय सीमा में पूरा कर लिया जाना चाहिए।

7- उन्होंने यह फैसला किया कि कुटीर उद्योग और दस्तकारी के क्षेत्र में संयुक्त उद्यमों की स्थापना की दिशा में तत्काल उपाय शुरू होने चाहिए जिससे कि क्षेत्र के भीतर सामूहिक आत्म-निर्भरता बढ़ाने के लिए संघ तैयार हो सके। उन्होंने सार्क महासचिव को निर्देश दिया कि वे सार्क क्षेत्र से 2-3 विशेषज्ञों का चयन करके एक दल का गठन करें, जो एक दस्तावेज तैयार करे, जिसमें संयुक्त उद्यमों की स्थापना के तौर-तरीके सुझाग गये हों, वित्तीय स्रोत बताए गए हों, और अन्य तमाम ब्यौरे दिए गए हों, जिस पर मंत्रिपरिषद अपनी अगली बैठक में विचार कर सके।

8- राष्ट्राध्यक्षों अथवा शासनाध्यक्षों ने क्षेत्रीय आर्थिक कोष की स्थापना के प्रस्ताव पर गौर किया तथा स्थायी समिति को यह निर्देश दिया कि वह इस प्रस्ताव पर अपनी सिफारिशें दे जिस पर मंत्रि-परिषद के अगले अधिवेशन में विचार किया जा सके।

9- राष्ट्राध्यक्षों अथवा शासनाध्यक्षों ने सामूहिक प्रचार-तंत्र के क्षेत्र में सार्क के सदस्य देशों के बीच सहयोग के महत्व पर बल दिया और सार्क महासचिव को यह निर्देश दिया कि वे सार्क के तत्वाधान में इस क्षेत्र के पत्रकार परिसंघों/एसोसिएशनों, समाचार अभिकरणों और सामूहिक प्रचार-तंत्रो के बीच और अधिक पारस्परिक कार्यकलाप को सुविधाजनक बनाएं।

10- राष्ट्राध्यक्षों अथवा शासनाध्यक्षों ने सूचना के आदान-प्रदान और रिपोर्टों के आदान-प्रदान तथा अध्ययनों, प्रकाशनों को यूरोपीय समुदाय तथा दक्षिण पूर्ण एशियाई राष्ट्र एसोसिएशन (आसियान) के साथ प्रारम्भ में सहयोग के निर्धारित क्षेत्रों में सूचना का आदान-प्रदान करने का अधिकार सचिवालय को देने का स्वागत किया।

11- राष्ट्राध्यक्षों अथवा शासनाध्यक्षों ने इस बात पर संतोष व्यक्त किया कि पाकिस्तान में मानव संसाधन विकास केन्द्र स्थापित करने का काम ठीक चल रहा है। उनका यह मत था कि इस केन्द्र से इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में अधिकतम क्षेत्रीय सहयोग प्राप्त करने की दिशा में योगदान मिलेगा।

12- उन्होंने इस बात का अह्वान किया कि एक दीर्घकालीन परिप्रेक्ष्य में, एक व्यापक रूपरेखा के अंतर्गत कार्यकलापों को सुविधाजनक बनाने के लिए क्षेत्रीय योजना, ‘‘सार्क 2000-बुनियादी जरूरतों की प्राप्ति के संदर्भ में’’ को शीघ्र पूरा किया जाना चाहिए।

13- उन्होंने निर्देश दिया कि आयोजकों को ‘‘गरीबी निवारण’’ सम्बंधी नीतियों पर गहराई से विचार करना चाहिए जिससे कि समुचित सिफारिशे तैयार की जा सकें।

14- राष्ट्राध्यक्षों अथवा शासनाध्यक्षों ने यह फैसला किया कि बालिकाओं की समस्याओं पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए 1991-2000 का दशाब्द ‘‘सार्क बालिका दशाब्द’’ के रूप में मनाया जाएगा। वे सार्क बालिका अपील से बहुत प्रभावित हुए जिसमें बालिकाओं ने अपील की है कि उन्हें स्नेह मिलना चाहिए तथा उनकी समुचित देखभाल होनी चाहिए और जिसमें उन्होंने अपने बालपन का अधिकार भी मांगा है। उन्होंने अपने इस संकल्प को दोहराया कि सामान्यतः सभी बालकों का कल्याण, और विशेषतः बालिकाओं का कल्याण, उनकी प्राथमिकता की सूची में सबसे ऊपर रहेगा। 15- राष्ट्राध्यक्षों अथवा शासनाध्यक्षों ने अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक मंचों पर सार्क सदस्य राज्यों के प्रतिनिधियों के बीच नियमित विचार-विमर्श के महत्व पर बल दिया जिससे कि, जहां तक मुमकिन हो, समान हित-चिंता के मामलों पर ये एकजुट रवैया अख्तियार कर सकें। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक मसलों पर मंत्रिस्तर की दूसरी बैठक 1991 में भारत में करने का फैसला किया।

16- राष्ट्राध्यक्षों अथवा शासनाध्यक्षों ने दक्षिण एशिया के लोगों को रहन-सहन की बेहतर परिस्थितियां मुहैया कराने की तात्कालिक आवश्यकता पर बल दिया और यह निर्णय लिया कि ‘‘बेघरों’’ की समस्याओं पर ध्यान आक्रष्ट करने के लिए वर्ष 1991 ‘‘सार्क शरण-स्थल वर्ष’’ के रूप में मनाया जाएगा। उन्होंने यह भी फैसला किया कि इस विचार के आधार पर प्रत्येक देश अपने-अपने यहां कार्यक्रम आयोजित करेगा तथा अपने अनुभवों को एक-दूसरे के साथ बांटेगा ताकि इस क्षेत्र के लोग ‘‘सार्क शरण-स्थल वर्ष’’ से व्यावहारिक लाभ उठा सकें।

17- उन्होंने यह फैसला किया कि प्राक्रतिक विनाश के कारण और परिणाम तथा पर्यावरण के संरक्षण और परिरक्षण से सम्बह् क्षेत्रीय अध्ययन तथा ‘‘ग्रीन हाउस इफेक्व’’ संबंधी अध्ययन तथा सार्क क्षेत्र पर इसका प्रभाव अगले शिखर सम्मेलन से पहले पूरा कर लिया जाना चाहिए। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि जब तक ये अध्ययन कार्य पूरे नहीं हो जाते, सदस्य राज्यों को इस क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर पर आवश्यक कदम उठाने चाहिए। उन्होंने तय किया कि वर्ष 1992 को वे ‘‘सार्क पर्यावरण वर्ष’’ के रूप में मनाएंगे।

18- राष्ट्राध्यक्षों अथवा शासनाध्यक्षों ने इस बात पर बल दिया कि सार्क क्षेत्र में रहने वाले करोड़ों अपंग व्यक्तियों के दुःख-दर्द को कम करने के लिए तत्काल कार्रवाई करने की ज़रूरत है। उनकी समस्याओं की तरफ ध्यान आक्रष्ट करने तथा उनके जीवन को बेहतर बनाने के उद्देश्य से उन्होंने वर्ष 1993 को ‘‘सार्क अपंग-व्यक्ति वर्ष’’ के रूप में मनाने का फैसला किया।

19- उन्होंने यह निर्णय किया कि 1991 को सार्क शरण स्थल वर्ष, 1992 को सार्क पर्यावरण वर्ष तथा 1993 को सार्क अपंग-व्यक्ति वर्ष के रूप में मनाने के लिए उपयुक्त कार्यक्रम तैयार होने चाहिए। इन क्षेत्रों में सार्क देशों के लोगों को अधिकतम लाभ पहुंचाने तथा लोगों को इन विषयों के प्रति संवेदनशील बनाने के उद्देश्य से क्रमशः श्रीलंका, मालदीव और पाकिस्तान राष्ट्रीय स्तार पर क्रियान्वयन के लिए कार्यकलाप की योजनाएं परिचालित करेंगे।

20- राष्ट्राध्यक्षों अथवा शासनाध्यक्षों ने इस बात पर गौर किया कि ‘‘सार्क क्रषि सूचना केन्द्र’’ ने ढाका में अपना काम शुरू कर दिया है। उनहोंने यह निश्चय किया कि क्रमशः नेपाल और भारत में सार्क उपयोग केन्द्र तथा सार्क दस्तावेज केन्द्र स्थापित किए जाएंगे। उन्होंने निर्देश दिया कि इन दोनों केन्द्रों की स्थापना की दिशा में तत्काल आवश्यक कार्रवाई की जानी चाहिए।

21- राष्ट्राध्यक्षों अथवा शासनाध्यक्षों ने इस बात की आवश्यकता पर बल दिया कि सार्क के तत्वावधान में आयोजित की जाने वाली बैठकों में अधिक से अधिक काम करने और कार्यात्मक शैली कायम की जानी चाहिए। उन्होंने पांचवे सार्क शिखर सम्मेलन के अध्यक्ष और बंगलादेश के राष्ट्रपति से अनुरोध किया कि इस दिशा में सदस्य देशों के साथ विचार-विमर्श शुरू किया जाना चाहिए।

22- राष्ट्राध्यक्षों अथवा शासनाध्यक्षों ने मंत्रिपरिषद के अध्यक्ष को यह निर्देश दिया कि वे सार्क की गतिविध्ाटियों को युक्तियुक्त बनाने की दिशा में अपनी सिफारिशें तैयार करें जिससे कि एसोसिएशन को अधिक से अधिक कारगर तरीके से चलाया जा सके।

23- राष्ट्राध्यक्षों अथवा शासनाध्यक्षों ने सार्क सचिवालय के प्रारम्भिक वर्षों के दौरान इसके प्रथम महासचिव की हैसियत से राजदूत अबुल एहसान ने जो अग्रणी कार्य किया है, उसकी सराहना की। उन्होंने राजदूत अबुल एहसान के उक्राराधिकारी के रूप में राजदूत श्रीकांत किशोर भार्गव का स्वागत किया तथा सार्क की चालू गतिविधियों में उनके बहुमूल्य योगदान की सराहना की।

24- उन्होंने इस सुखद संयोग पर बहुत खुशी जाहिर की कि सार्क का पांचवां शिखर सम्मेलन मालदीव की स्वतंत्रता की 25वीं वर्षगांठ के अवसर पर हो रहा है और इस संयोग के कारण ही उन्हें मालदीव की जनता और मालदीव की सरकार के साथ अपनी एकजुटता खुद अभिव्यक्त करने का मौका मिला।

25- राष्ट्राध्यक्षों अथवा शासनाध्यक्षों ने श्रीलंका की सरकार के इस प्रस्ताव को साभार स्वीकार किया कि सार्क का छठा शिखर सम्मेलन श्रीलंका में आयोजित करके उसे इसकी मेज़बानी का अवसर प्रदान किया जाए।

26- राष्ट्राध्यक्षों अथवा शासनाध्यक्षों ने मालदीव गणराज्य के राष्ट्रपति द्वारा सार्क के पांचवे शिखर सम्मेलन के अध्यक्ष की हैसियत से इस बैठक की कार्रवाई संचालित करने की भूरि-भूरि प्रशंसा की। उन्होंने मालदीव गणराज्य की सरकार और वहां की जनता द्वारा शानदार स्वागत व सत्कार करने पर तथा सम्मेलन के लिए बहुत ही अच्छे प्रबन्ध करने पर हादक आभार प्रकट किया।

अध्यक्ष महोदय: वक्तव्य के बारे में किसी भी प्रश्न की अनुमति नहीं है। अगर आप सभी मुझसे सहयोग करेंगे, तो मैं यह सुनिश्चित करूंगा कि आप सभी को बोलने का अवसर प्राप्त हो।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।