सुरक्षा परिषद के प्रयासों का कोई लाभ नहीं, जमीनी लड़ाई शुरू, विनाशकारी होंगे परिणाम
संदर्भ: खाड़ी में व्याप्त स्थिति पर 25 फरवरी 1991 को लोकसभा में प्रधानमंत्री श्री चंद्रशेखर
सभापति महोदय जैसा कि माननीय सदस्यगण जानते हैं कि युह् बंद कराने और खाड़ी क्षेत्र में शान्ति स्थापित करने के लिए 23 फरवरी को सुरक्षा परिषद द्वारा किए गए प्रयासों का कोई लाभ नहीं हुआ। जमीनी लड़ाई शुरू हो चुकी है विगत दो दिनों से जारी है। इसके परिणाम वास्तव में विनाशकारी होंगे। इराक और कुवैत लगभग बिल्कुल नष् हो सकते हैं। इन दो देशों के हजारों लोग के दुख उठाने और हजारों निर्दोष लोगों की जान जाने की सम्भावना है। इन विनाशकारी हथियारों के उपयोग की सम्भावना से इन्कार नहीं किया जा सकता है जिनके बारे में मैं पहले ही कह चुका हूं कि ये मानवता के विरुह् एक अपराध है।
सुरक्षा परिषद में जिसकी बैठक सोवियत संघ की पहल पर बुलायी गयी थी और जिसमें श्री गोर्बाचोब ने प्रस्ताव पेश किए थे, भारतीय शिष्मंडल ने दोनों पक्षों के बीच मतान्तर दूर कराने तथा युह् बंद कराने के लिए एक आधार तैयार करने का हर सम्भव प्रयास किया था। इस परिणाम को प्राप्त करने के लिए आधार रूप में एक दस्तावेज तैयार करने के हमारे परामर्श को अधिकतर सदस्य देशों ने स्वीकार कर लिया। वास्तव में एक समय तो सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष ने इस बारे में मसौदा तैयार करने के कार्य को भारत, इक्वाडोर और आस्टिन्न्या के जिम्मे सौंपने के बारे में सोचा थाऋ दुर्भाग्यवश कुछ सदस्यों द्वारा कठोर रुख अपना लेने के कारण कि वर्तमान स्थिति में सुरक्षा परिषद को कोई भूमिका नहीं निभानी है।
परिषद के लिए संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के अंतर्गत अपने दायित्वों का निर्वाह करना असम्भव हो गया। तब से सुरक्षा परिषद मूक बनी रही। हमने सुरक्षा परिषद के सदस्य देशों की सरकारों से उनकी राजधानियों में सम्पर्क स्थापित किया और उनसे अनुरोध किया कि वे न्यूयार्क में सुरक्षा परिषद में अपने प्रतिनिधियों को निर्देश भेजें ताकि सुरक्षा परिषद अपनी उचित भूमिका निभा सके। हम उनके उत्तर की प्रतीक्षा कर रहे हैं। इस बीच हम न्यूयार्क में सभी सदस्यों के प्रतिनिधियों से, यह देखने के लिए सम्पर्क बनाए हुए हैं कि सुरक्षा परिषद क्या कर सकती है। हमारा सर्वप्रथम कार्य निर्धारित समय के अंतर्गत कुवैत से इराक की सम्पूर्ण वापसी के आधार पर युह् को बंद कराना है। बिना और समय गंवाए सुरक्षा परिषद को इस शान्तिपूर्ण कार्य को करने का दायित्व अपने हाथों में लेना चाहिए।
सभापति महोदय यह सत्य है कि इस बारे में एक सुझाव दिया गया था कि हमें सर्वसम्मति से एक संकल्प पारित करना चाहिए। सभा के कुछ वर्गों को इस पर कुछ आपत्ति थी लेकिन मैंने राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ चर्चा की थी और सभी सहमत थे कि सरकार को एक वक्तव्य जारी करना चाहिए। यह वक्तव्य उन्हें दिखाया गया था और सभी राजनैतिक दलों ने इस पर सहमति व्यक्त की थी। मैं समझता हूं कि इस प्रकार के गम्भीर मुद्दे पर सभा में मतभेद नहीं होना चाहिए।
सभापति महोदय, इराक में भारतीय नागरिक 107 या 109 हैं। उनको इस समय निकालना बहुत मुश्किल हो रहा है। पहले जब उनसे कहा गया तो उस समय वे आने के लिए तैयार नहीं हुए। सर्वाधिक चिंता कुवैत मे हैं, जहां हमारे 5000 नागरिक अब भी है और उनमें से बहुत से लोग जब लड़ाई छिड़ी थी, उससे पहले या उसके तुरंत बाद भी आने को तैयार नहीं थे। आज दिक्कत यह है कि उनको निकालना बहुत कठिन है, असम्भव तो मैं नहीं कह सकता फिर भी जितने लोग वहां पर उस लड़ाई में है, हमने उनसे निवेदन किया है कि हमारे नागरिकों की सुरक्षा के लिए जो भी सहायता वे कर सकें, करें।
सभापति महोदय, यह सत्य नहीं है कि सभी दूतावास वहां कार्य कर रहे हैं। ‘दक्षेस’ के सदस्य देश, खाड़ी देश या पश्चिमी जगत के किसी देश का दूतावास वहां कार्य नहीं कर रहा है। यदि मेरी जानकारी सत्य है, तो केवल दो-तीन देशों के दूतावास ही वहां कार्य कर रहे हैं। मेरी जानकारी के अनुसार हम उन आखिरी तीन देशों में से है, जिन्होंने अंत में अपना दूतावास खाली किया है। मेरी जानकारी गलत भी हो सकती है। केवल क्यूबा और सोवियत संघ के थोड़े बहुत कर्मचारी वहां है। हमने किसी अन्य देश के साथ कोई व्यवस्था नहीं की है। हमने अपने कूटनीतिक कर्मचारियों से तेहरान में रहकर भारत के हितों को देखने के लिए कहा है।
सभापति महोदय, कुवैत की स्थिति के बारे में आपको पता ही होगा, उस स्थिति में लोगों को निकाल पाना असम्भव है। हम इराक से लोगों को निकालने का प्रयास कर रहे हैं। जैसी युह् की स्थिति आज वहां बनी हुई है उसमें लोग घर से बाहर निकलने को तैयार नहीं है। ऐसे में, मैं सदन को उन्हें सुरक्षित बाहर निकालने के बारे में कोई आश्वासन देने में अपने को असमर्थ पाता हूं।