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भारत ने रोकने का हर सम्भव प्रयास किया लेकिन नहीं निकला कोई परिणाम, युह् विनाश की ओर

संदर्भ: 4 मार्च 1991 को लोकसभा में खाड़ी युह् को रोकने के लिए भारत की पहल पर प्रधानमंत्री श्री चंद्रशेखर


सभापति महोदय 2 अगस्त, 1990 को जब इराक ने कुवैत पर हमला किया और खाड़ी संकट शुरू हुआ, तबसे ही भारत बातचीत के ज़रिये इस संकट के शान्तिपूर्ण हल के लिए अपील करता रहा है। द्विपक्षीय आधार पर भारत ने इराक से अपील की कि वह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के संकल्पों के अनुपालन में कुवैत से अपनी फौजें वापस बुला ले। बहुपक्षीय आधार पर भारत ने गुट-निरपेक्ष आंदोलन को सक्रिय किया। गुट-निरपेक्ष आंदोलन में भारत की पहलकदमी के परिणामतः भारत, अल्जीरिया और यूगोस्लाविया के विदेश मंत्रियों की बेलग्रेड में 11 सितम्बर, 1990 को बैठक हुई। भारत ने अपने प्रयासों के अतिरिक्त इस संकट के शान्तिपूर्ण हल के लिए अन्य देशों द्वारा रखे गये प्रस्तावों को अपना समर्थन दिया। उदाहरण के लिए 14 जनवरी, 1991 को फ्रांस द्वारा पेश किया गया प्रस्ताव।

सभापति महोदय, 1 जनवरी, 1991 को सुरक्षा परिषद का सदस्य बन जाने के बाद भारत ने खाड़ी संकट के संबंध में हो रहे विचार-विमर्श में बढ़-चढ़ कर भाग लिया। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् संकल्प संख्या 678 में कुवैत से इराकी फौजों की वापसी के लिए जो 15 जनवरी, 1991 की अन्तिम तारीख निर्धारित की गई थी, वह जैसे नज़दीक आई तो हमने संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति, सोवियत संघ के राष्ट्रपति (जो इस समय गुट-निरपेक्ष आंदोलन के अध्यक्ष भी हैं) को एक व्यक्तिगत अपील जारी की। इसमें उनका ध्यान पश्चिमी एशिया क्षेत्र में युह् के कारण मानव जाति को होने वाली बेहिसाब दुख, तकलीफों और विनाश की ओर आकषत किया गया था तथा यह अनुरोध किया गया था कि इस संकट के हल के लिए राजनयिक माध्यमों को एक और अवसर दिया जाना चहिए।

सभापति महोदय, जिस दिन (17 जनवरी, 1991) युह् शुरू हुआ उसी दिन भारत के प्रधानमंत्री ने निम्नलिखित बातों के आधार पर शान्ति की बहाली के लिए एक योजना का प्रस्ताव रखा:

(क) राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन को इस आशय की अपील की कि वे तत्काल युह् वापसी की घोषणा करें।

(ख) राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन की उपर्युक्त आशय की घोषणा के बाद युह् बंद किया जाए।

(ग) युह् का शांतिपूर्ण समाधान तलाशने के लिए फिर से प्रयास शुरू किये जाए।

(घ) सुरक्षा परिषद द्वारा इस बारे में तौर-तरीके तैयार किए जाए। प्रधानमंत्री के इस वक्तव्य पर सुरक्षा परिषद के सभी सदस्यों ने सकारात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त की। इस वक्तव्य को सुरक्षा परिषद के दस्तावेजों के रूप में जारी किया गया।

जैसे-जैसे युह् बढ़ता गया भारत ने अपने प्रयासों को दुगना कर दिया और अपील की कि सैनिक कार्रवाई को रोक दिया जाए तथा कुवैत से फौजों की पूर्ण वापसी के एक समयबह् कार्यक्रम के अंग के रूप में इराक कुवैत से अपनी फौजें वापस बुलाना शुरू कर दे।

भारत के प्रयासों के बाद गुट-निरपेक्ष आंदोलन के 16 देशों के विदेश मंत्रियों की बेलगे्रड में 11 से 13 फरवरी,1991 तक बैठक हुई और भारत ने बैठक में गुट निरपेक्ष शान्ति योजना उपलब्ध कराई। यह फैसला किया गया कि विदेश मंत्रियों का एक प्रतिनिधि शान्तिमंडल बगदाद, वाशिंगटन, ब्रुसेल्स और अन्य देशों की राजधानियों में भेजा जायेगा। तथापि, मौजूदा परिस्थितियो के कारण भारत, यूगोस्लाविया, ईरान और क्यूबा के विदेश मंत्रियों की टीम तेहरान से बगदाद के लिए रवाना नहीं हो सकी। भारत ने इस युह् से होने वाले विनाश विशेषकर असैनिक लोगों की जान माल की हानि पर चिंता व्यक्त करते हुए एक वक्तव्य जारी किया तथा युह् में शामिल पक्षों से अपील की कि वे सामूहिक विनाश वाले हथियारों का इस्तेमाल न करने के लिए संकल्प लें। भारत ने सुरक्षा परिषद को सक्रिय बनाने के लिए बार-बार प्रयास किया ताकि इस बात को सुनिश्चित किया जा सके कि खाड़ी में सैनिक कार्रवाई संकल्प 678 के उद्देश्य के अनुरूप हो और सुरक्षा परिषद इस मामले पर अपने चार्टर के अधीन अपनी ज़िम्मेदारी का निर्वाह करे। वास्तव में भारत ने सुरक्षा परिषद् की भूमिका और प्राधिकार के संबंध में एक संकल्प का प्रारूप तैयार किया था और इस प्रारूप पर सुरक्षा परिषद के सभी सदस्यों से सलाह-मशविरा किया था।

जमीनी युह् शुरू होने के स्पष् संकेतों को देखते हुए भारत ने गुट निरपेक्ष आंदोलनो के ज़रिये अपनी पहलकदमी को आगे बढ़ाते हुए गोर्बाचोव योजना को जोरदार समर्थन दिया। कुछ स्थायी सदस्यों के विरोध के बावजूद भारत ने जोरदार ढंग से यह तर्क पेश किया कि सुरक्षा परिषद अपने दायित्वों की अनदेखी नहीं कर सकती और इराक द्वारा स्वीक्रति गोर्बाचोव योजना और मित्र राष्ट्रों की आवश्यकताओं के बीच जो अंतर है उसे कम किया जा सकता है तथा जमीनी युह् की भयानक त्रासदी को रोका जा सकता है। भारत ने यह प्रस्ताव किया कि दोनों देशों में तालमेल बैठाकर मतभेदों को दूर करके इस योजना का एक नया पाठ तैयार किया जाना चाहिए जो युह् को समाप्त करने के लिए एक आधार बन सके।

वास्तव में, यह एक अत्यधिक खेद का विषय है कि भारत के प्रयासों का अभी तक कोई नतीजा नहीं निकला है और युह् निरन्तर चल रहा है भयानक रूप धारण कर रहा है। लेकिन भारत भी शान्ति की बहाली के लिए अपने प्रयास जारी रखे हुए हैं।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।