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मौत दलगत नहीं होती, जहां भी होती है, होता है इंसानियत का कत्ल, मिलेगी दोषी को सजा

संदर्भ: 22 फरवरी 1991 को लोकसभा में पुलिस द्वारा हरिजनों की हत्या के मामले पर प्रधानमंत्री श्री चंद्रशेखर


उपाध्यक्ष महोदय, इस विषय पर चर्चा आज दोपहर से चल रही है। मैं क्षमा चाहता हूं कि मैं यहां उपस्थित नहीं हो सका। मैं इस सदन की भावना को समझता हूं लेकिन परिस्थितियां ऐसी हैं कि हरिजनों पर अत्याचार हो रहा है। उधर गल्फ में मानवता का संहार हो रहा है, इसलिए मुझे दूसरे सदन में जाना पड़ा। वहां गल्फ पर बहस थी। पिछले दिनों जब यह चर्चा सदन में हमारे मित्र श्री मदन लाल खुराना और विजय कुमार मल्होत्रा ने उठाई थी तो मैंने उसी समय यह कहा था कि यह गम्भीर चिन्ता का विषय है। हमारे देश में गरीब तबके के ऊपर जो शोषित उपेक्षित समाज है, उसके ऊपर अत्याचार हो तो इसकी गम्भीरता बढ़ जाती है। जब इसमें शासन की वह इकाइयां जो सुरक्षा के लिए ज़िम्मेदार हैं, उनके ऊपर संदेह हो तो उसकी गम्भीरता और बढ़ जाती है। मुझे यह कहने में दुख होता है कि यह घटना ऐसी है जिसमें वहां के पुलिस के लोगों का व्यवहार संदेह से परे नहीं है। यह बात राज्य सरकार भी मानती है। जो जानकारी हमने की है, उससे भी ऐसा लगता है।

पुलिस के कुछ अधिकारियों ने ज्यादती की और ज्यादती कोई ऐसी वैसी नहीं, ऐसी की जिसमें कुछ निर्दोष लोगों की जाने गईं। अब उसमें कितने दोषी थे, कितने निर्दोष थे, इस आंकड़े में मैं पड़ना नहीं चाहता लेकिन अगर एक भी निर्दोष आदमी मारा गया या दोषी आदमी भी गलत तरीके से मारा गया तो यह गलत बात है। मैं इस सदन को यह विश्वास दिलाता हूं कि उसकी पूरी जांच होगी और जो भी दोषी पाया जाएगा, उसे सजा भी मिलेगी। उत्तर प्रदेश की सरकार ने इस बारे में कदम उठाए हैं और जांच हो रही हैं हम समझते हैं जल्दी ही उसका परिणाम निकलेगा।

उपाध्यक्ष महोदय, मुझे यह कहा गया कि एक अधिकारी, जिसको गिर∂तार करने की बात की गई है, वह फरार है और कुछ लेगों की ज़मानत करा ली गई है, इस कारण गिर∂तारी नहीं हुई। जानबूझकर किसी को नहीं छोड़ा गया है। मैं निश्चित रूप से नहीं कह सकता। यह सूचना है, यह सूचना गलत भी हो सकती है, मैं सदन में पहले ही कह दूं लेकिन एक अजीब प्रश्न है, जिसका जवाब मेरे पास नहीं है। आखिर अदालत ने किसी को जमानत दे दी हो तो उसे रोकना सरकार के वश की बात नहीं है। लेकिन अगर कोई असावधानी हुई है, किसी के ज़रिये हुई है तो उस असावधानी को हम लोग देखेंगे कि उसमें सुधार किया जाए।

उपाध्यक्ष जी, देश एक अजीब लत से, एक संक्रमण काल से गुजर से रहा है। हमारे समाज का एक वर्ग जो हजारों वर्षों से शोषित और पीड़ित रहा है, वह इतिहास पर अपना पहला चरण रख रहा है। जो हमारे आदिवासी, हरिजन और कुछ गरीब, पिछडे़ वर्ग के लोग हैं, वह समाज के उन तबकों से आते हैं, जिनको आज से नहीं सैकड़ों हजारों वर्षों से हमने कहा है कि तुम शोषित, पीड़ित, लांछित हो। तुमको प्रक्रति ने, कुदरत ने, भगवान ने, खुदा ने बनाया है लेकिन तुम यही जीवन लेकर पैदा हुए हो इन वर्गों के लोगों में चेतना आ रही है, जागृति आ रही है। दो कारणों से जागृति आ रही है। एक तो लोकतांत्रिक जनतंत्र में हम हर पांच वर्ष पर और कभी-कभी जल्दी भी उनके पास जाते हैं। और कहते हैं कि तुम्हीं समाज को बनाने वाले हो, तुम्हारे बल पर कल का हिन्दुस्तान बनेगा यह एक जागृति का कारण है। दूसरे, समाज की अपनी एक गति होती है, जिसको सोशल डायनेमिज्म कहते हैं। चाहे हम चाहे या न चाहें समाज स्वयं में परिवतत होता रहा है, उसमें यथास्थिति नहीं रह सकती।

उपाध्यक्ष महोदय, जब हम लोग विश्वविद्यालय में थे, उस समय हिन्दुस्तान में जितने विद्यार्थी विश्वविद्यालय में शिक्षा पा रहे थे, उतने ही विद्यार्थी आज हरिजन और आदिवासी परिवारों के विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में शिक्षा पा रहे है। उनको दुनिया में क्रान्तियों के इतिहास बताए जाते हैं और वह जानते हैं कि किसी भगवान ने, किसी खुदा ने उन्हें नाबराबर और शोषित, उपेक्षित नहीं बनाया बल्कि सामाजिक व्यवस्था ने उसके तर्जे अमल ने उन्हें शोषित और उपेक्षित बनाया है। इसलिए वह अपना अधिकार चाहता है। अब हमें और आपको तय करना है कि हम उनकी आकांक्षा के अनुरूप, उनके ज़ज़्बातों के मुताबिक अपने को बदलेंगे। राज की नीति की सरकार के कार्यक्रमों को निर्धारित उस आधार पर करेंगे या शासन की दमनकारी शक्तियों का उपयोग करके उनकी आवाज को हम दबाने की कोशिश करेंगे। दुर्भाग्य की बात यह है कि अब तक हम इसे लेकर किसी को दोष नहीं देना चाहते। हम जानते हैं कि सामाजिक व्यवस्था का परिवर्तन आसान काम नहीं होता जो लोग व्यवस्था पर, सम्पत्ति पर, शक्ति पर, राजसत्ता पर हावी होते हैं, आसानी से अपने हितों की तिलांजलि नहीं दे सकते।

उपाध्यक्ष महोदय, मैं आपसे यह कहना चाहता हूं कि हमको परिवर्तन की धारा को तेज करना होगा और हमारे मित्र ने अभी पूछा, मैं स्पेसिफिक रूप से कहता हूं, अगर इस स्थिति को मिटाना है तो हमको परिवर्तन की धारा तेज करनी पडे़गी। उन वर्गों के हित में काम करना होगा, जो वर्ग आज तक शोषित और उपेक्षित रहे हैं। यह सही है कि कानून और व्यवस्था की बात है, यह सही है कि इसमें पुलिस की कमजोरी है। यह सही है कि इसमें प्रशासन की कमजोरी हैं, लेकिन कमजोरी हमारी सामाजिक व्यवस्था की भी है। उस सामाजिक व्यवस्था में परिवर्तन लाना होगा और उस दिशा में हमें कदम उठाना पडे़गा।

इसलिए हम चाहेंगे कि जो लोग आज जिन अत्याचारों की बात करते हैं, वे सही दिशा में कम-से-कम इतना तो कदम उठा रहे हैं कि सामाजिक चेतना की धारा को समझने लगे हैं। जो सामाजिक चेतना आज अपना स्थान मांग रही है और उस सामाजिक व्यवस्था को परिवतत करने की मांग करती है, जिस सामाजिक व्यवस्था के अंदर इस तरह का शोषण और इस तरह का दमन सम्भव हो रहा है। मुझे विश्वास है कि मानसिकता बनी रहेगी। जब हम आर्थिक नीतियों का विश्लेषण करेंगे, तब हम समाज को बदलने के लिए कदम उठाएंगे। उस समय हम कहीं बगलें न झांकने लगे। इस बात को सोचना चाहिए कि मानव की पीड़ा को केवल व्यक्तिगत घटनाओं में न देखकर मानव पीड़ा को सामाजिक परिवर्तन के परिवेश में देखने की हमको शक्ति प्राप्त करनी होगी।

उपाध्यक्ष महोदय, मुझे विश्वास है कि आज इस सदन में जो बहस चली है, वह एक सही दिशा में है। लेकिन इस बहस को इसकी मंजिल तक पहुंचाना होगा, इसको गंतव्य तक पहुंचाना होगा। बड़ा अच्छा होगा यदि यह सदन इस बात पर तत्पर हो, इस बात के लिए तैयार हो कि हम सब मिलकर उस सामाजिक परिवर्तन को लाने की कोशिश करें कि कोई हरिजन और आदिवासी बेबस न हो, कोई लाचार न हो और कोई उस दमन का शिकार न बनने पाए। मुझे दुख और संकोच के साथ कहना पड़ता है कि आज हमारे मित्रों में इस सवाल पर एकता दिखाई पड़ती है, लेकिन सामाजिक परिवर्तन की नीतियों के सवाल पर हम सदन में वह एकता नहीं देख पाते हैं। मुझे बड़ी प्रसन्नता होगी अगर हमारे मित्र जो इधर बैठे हुए हैं और उधर बैठे हुए हैं, दोनों मिलकर सामाजिक परिवर्तन की धारा को तेज करने में साथ काम करेंगे। देश को उस दिशा की ओर ले जाने की कोशिश करेंगे।

उपाध्यक्ष महोदय, जहां तक लॉ एंड आर्डर का सवाल है, कानून और व्यवस्था का सवाल है, मानव जाति का सवाल है, उसमें कोई अंतर नहीं है, चाहे बिहार हो, यू.पी हो। मैं एक बात और देखता हूं, हर सवाल को हम ऐसा समझते हैं कि एक दलगत सवाल है। मौत दलगत नहीं होती है, मौत जहां होती है, वहां इंसानियत का कत्ल होता है। उस पर कोई राजनीतिक मतभेद रखने का सवाल नहीं उठता। इसलिए मैं यह कहता हूं कि कम-से-कम कुछ सवालों पर तो हम एक मत हो करके बोलें। अगर किसी के द्वारा सरकार की ओर से यह कहा गया होता कि वहां जो हुआ है, बहुत अच्छा हुआ है, तो बात समझ में आती है। हमारे कई मित्रों ने रास्ता दिखाया और अगर उत्तर प्रदेश की सरकार ने कहा कि सरकारी अधिकारियों ने बड़ा अच्छा काम किया है तो मैं पहला आदमी होऊंगा, आपके साथ यह कहने में कि उत्तर प्रदेश सरकार की भत्र्सना करते हैं अगर मैंने कभी कहा हो, जो वहां पर हुआ है, चाहे उत्तर प्रदेश हो, चाहे बिहार हो, चाहे गुजरात हो, चाहे राजस्थान हो, चाहे महाराष्ट्र हो, कहीं भी हो, जहां आदमी मरता है, बेकसूर आदमी मरता है और वह हम सबके लिए कलंक की बात है।

उपाध्यक्ष महोदय, मैं यह नहीं जानता हूं, अगर उसको कोई इनाम दिया गया है, जैसा हमारे मित्र राम विलास पासवान जी कहते हैं। तो मैं यह विश्वास दिलाता हूं कि अगर वह आदमी दोषी है, मैं इस बारे में जरूर जांच करूंगा, और उसे सजा मिलेगी। इसमें क्या बात है अगर कोई गलती हो गई है। मैं यह नहीं कहता हूं कि हमसे गलती नहीं होती है, हम देवदूत तो नहीं है। लेकिन कुछ लोग हैं जो सीधे स्वर्ग-लोक से धरती पर उतरे हैं और उनको कोई क्षोभ नहीं है लेकिन हम उन लोगों में से नहीं हैं। मैं तो आप जैसा एक साधारण नागरिक हूं, मुझसे गलतियां हो सकती हैं और उन गलतियों को स्वीकार करने के लिए हम हर समय तैयार हैं। मैं यह नहीं कहता कि जितने काम हो रहे हैं, वे सब सही हो रहे हैं। गलतियां जहां होगी, अगर आप उनकी ओर संकेत करेंगे तो मैं अपने मित्र श्री रामविलास जी को आश्वासन देता हूं कि उसे ठीक किया जाएगा। उपाध्यक्ष महोदय, मैं कहना चाहता हूं कि हम लोग इस सवाल के ऊपर एक मत होकर इसका प्रतिकार करें और मैं अपने मित्र श्री विजय कुमार और श्री खुराना जी से कहूंगा उन्होंने जो सवाल उठाया, यह महत्वपूर्ण सवाल उठाया। मैं उनकी भावनाओं की आदर करता हूं और इस बात के लिए मैं उनकी प्रशंसा करता हूं कि इस ज्वलंत समस्या की ओर इस सदन और देश का ध्यान उन्होंने आक्रष्ट किया है। उनकी प्रेरणा से हमें भी प्रभावी ढंग से कार्य करने की शक्ति मिलेगी, लेकिन इसमें दोनों की मंशा पर आप कोई आक्रमण न करें तो ज्यादा अच्छा होगा। हम जानते हैं कि आप जैसे, शायद हमारे मन में उनके लिए ममता न हो लेकिन मानवता के प्रति थोड़ा हमारे दिल में भी ममत्व है। यह स्वीकार करके आप काम करें और मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि चाहे भारत सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार या बिहार सरकारें हो, इस बारे में किसी को भी मतभेद नहीं खड़ा करना चाहिए। हर सरकार मिल करके इस हालत को बदलेऋ यही हमारी धारणा है और यही हमारा प्रयास होगा।

मैं सदन के माननीय सदस्यों से यही निवेदन करूंगा कि जो कठिनाइयां, गलतियां और बुराइयां हैं उनको दूर करने के लिए आप कोशिश जरूर करें लेकिन क्रपया ऐसा काम न करें जैसे साजिश, षड्यंत्र हो रहा है, सारे हरिजनों और आदिवासियों को पीड़ित और प्रताड़ित करने की कोशिश हो रही हैं। अगर ये भावना देश के अंदर फैलाओगे तो इस सदन की ओर हरिजन और अदिवासी आशा भरी निगाह से नहीं देख पाएगा। उसके लिए ›सटन्न्ेशन और डेसपेयर (निराशा और अंधकार) के अलावा और कोई रास्ता नहीं होगा ओर निराशा और अंधकार का रास्ता भयावह होता है। आप त्रिपुरा से तमिलनाडु तक देख लीजिए, आदिवासी इलाकों में आज एक बेचैनी, पीड़ा और दर्द है, उस बेचैनी और दर्द को और अधिक आगे न बढ़ाएं। उस बेचैनी को दूर करने के लिए हम सब लोग मिलकर प्रयास करें, हमारा यही निवेदन होगा।

उपाध्यक्ष महोदय, मैं इस सभा को आश्वासन देता हूं कि आप इस सभा के सभी राजनीतिक दलों के नेताओं की बैठक बुलाएं और इस बारे में निर्णय लें कि ऐसी घटनाओं को दुबारा न होने देने के लिए कौन से निवारक कदम उठाए जाएं और सरकार उस निर्णय का अक्षरशः पालन करेगी।

उपाध्यक्ष महोदय, जबकि इस प्रकार की घोषणा करना मेरे लिए उचित नहीं है लेकिन चूंकि सदस्य बहुत चिंतित और उक्रोजित हैं, इसलिए भारत सरकार धन देगी ताकि प्रत्येक मृतक व्यक्ति के परिवार को कम से कम एक लाख रुपया मिल सके। यदि उत्तर प्रदेश अथवा बिहार सरकार ने कुछ क्षतिपूत दी है तब वह भी इसमें शामिल होगी।

उपाध्यक्ष महोदय, सम्माननीय सदस्य का ऐतराज सही है, मैं वहां गया और दूसरी जगह राज्य मंत्री गए। इस जगह पर भी कोई मंत्री या स्वयं मैं चला जाऊंगा, अगर इससे उन लोगों को ढाढस और संतोष होता है तो इस संतोष को देने के लिए हम पूरी तरह से तैयार हैं।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।