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इजाज़त देने का श्रेय लेने का इरादा नहीं लेकिन अफ़सोस है कि इसे लेकर लगाए गए मेरे ऊपर गम्भीर आरोप

संदर्भ: 1990 के खाड़ी संकट के संदर्भ में 7 मई 1997 को लोकसभा में श्री चंद्रशेखर


सभापति जी, पिछले कई दिनों से यह विवाद चर्चा में है और मुझसे बहुत से पत्रकारों ने और बहुत से मित्रों ने पूछा है। मुझे इस पर कुछ कहना नहीं है क्योंकि सारा देश और सारी दुनिया वास्तविकता को जानती है। अटल बिहारी वाजपेयी जी ज़्यादा बारीकी से जानते हैं, गहराई से जानते हैं और आपके नेता लोग और ज़्यादा गहराई से जानते है। सभापति जी, मैं इतना ही कहूंगा कि उस समय जो इजाज़त दी गई थी, उसका श्रेय मुझे नहीं लेना है। वह इस देश की सरकार ने दी थी। किस व्यक्ति ने दी थी, इसका कोई महत्व नहीं है, लेकिन मैं इतना ज़रूर चाहता हूं कि जिन मित्रांे ने उस समय इतना गम्भीर आरोप लगाया था और मेरे बारे में क्या-क्या बातें कहीं थीं। हमारे कम्युनिस्ट मित्रों से खासतौर से मैं कहना चाहूंगा और कांग्रेस के मित्रों से कि उनकी वाणी सात दिन से चुप क्यों है, मौन क्यों है, यह बात मेरी समझ में नहीं आती। अगर वह वक्तव्य सही है तो गुजराल जी मेरे घनिष्ठ मित्र हैं। उन दिनों उन्होंने समर्थन क्यों नहीं किया था, ये बातें समझ में नहीं आती हैं।

मैं केवल इतना ही कहता हूँ कि बदलते हुए समय के साथ मैं अपने वक्तव्यों को नहीं बदलता। जो मैंने तब कहा था, अब कह रहा हूं और मैंने तब भी सही कहा था और आज भी सही कहा है। दूसरे लोग अपने बारे में सोचें, अपने ॉदय में झांक कर देखें। अब भी वे कुछ बोल सकें, अगर उनकी वाणी मौन न हो गई हो, तो शायद अपनी आत्मा के साथ वे थोड़ा न्याय करेंगे।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।