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बार-बार भारतीय सीमा में प्रवेश और नागरिकों की पिटाई का मामला पूरी तरह से भारतीय क्षेत्र में अतिक्रमण का है, सरकार जवाब दे

संदर्भ: बर्मा की आर्मी का भारतीय सीमा में प्रवेश और उत्पीड़न पर 15 जुलाई 1992 को लोकसभा में श्री चंद्रशेखर


अध्यक्ष महोदय, श्री रवि राय ने यह मुद्दा उठाया है। सरकार को इस मुद्दे पर कुछ कहना चाहिए। सभी मामलों को टरकाया नहीं जाना चाहिए। आपको इन महत्वपूर्ण मुद्दों पर कुछ कहना चाहिए। आप सभी मुद्दों पर चुप्पी नहीं साधे रह सकते हैं।

महोदय, हमें यह बताया जाना चाहिए कि भारत सरकार को इस मामले के बारे में कब बताया गया। इसे लापरवाही से नहीं लेना चाहिए। जैसा कि रवि राय जी ने कहा है। एक विदेशी सेना हमारे क्षेत्र में प्रवेश करती है, हमारे नागरिकों को पीटती है, वह भी एक बार नहीं, दो या तीन बार नहीं, बल्कि कई बार पीटा है और माननीय गृह राज्यमंत्री कहते हैं कि वह इसके बारे में जानकारी एकत्र कर रहे हैं। जानकारी एकत्र करने में कितना समय लगेगा? यह मामला तो पूरी तरह से भारतीय क्षेत्र के अतिक्रमण का है और इस मामले को सरकार द्वारा स्वयं देश के समक्ष लाना चाहिए था। मैं नहीं जानता, फिर भी मंत्री महोदय को कम-से-कम सभा को तो बताना चाहिए था कि उन्हें मिजोरम के मुख्यमंत्री ने कब जानकारी दी थी और अब तक क्या कार्रवाई की गई है? क्या हमारी सेना को सतर्क किया गया है या कम से कम सीमा सुरक्षा बल को वहां सतर्क किया गया है, इस मामले में विदेश मंत्रालय क्या कर रहा है। प्रश्न केवल यह नहीं है कि गृहमंत्री पुनः सभा में आएंगे लेकिन विदेश मंत्रालय, गृह मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय द्वारा इतने गम्भीर विषय पर क्या किया जा रहा है और उन्हें स्पष् रूप से बताना चाहिए कि यह मामला उनके ध्यान में कब लाया गया?

महोदय, इन मामलों में कुछ ज़िम्मेदारी की भावना होनी चाहिए। हम जानना चाहते हैं कि विदेश मंत्रालय ने इस मामले में क्या किया क्योंकि विदेश मंत्रालय से ही तत्काल यह पूछा जा सकता है कि क्या बर्मा के राजदूत को बुलाया गया और क्या उनसे इस बारे में विरोध जताया गया और यदि कुछ गम्भीर बात थी तो क्या रक्षा मंत्रालय को इस मामले में जानकार दी गई थी क्योंकि इसके बाद रक्षा मंत्रालय की बारी आती है। गृह मंत्रालय द्वारा जानकारी देने के बाद क्या विदेश मंत्री या (मैं नहीं जानता कि इन दिनों विदेशी मंत्री कौन है, श्री ∂लेरियो या कोई और) प्रधानमंत्री ने इस मामले को उठाया है तो इसकी कोई सीमा होनी चाहिए क्योंकि उन्हें प्रत्येक गम्भीर मामले का मज़ाक नहीं बनाना चाहिए।

अभी-अभी श्री रवि राय यह प्रश्न पूछ रहे थे कि क्या आपने जापानियों को इस देश में टाउनशिप बनाने के लिए आमंत्रित किया है। क्या यह इस देश के विरुह् नहीं हैं? प्रधानमंत्री ने कोई टिप्पणी की और सारा सदन उस पर हंस दिया है। इस सभा में यह प्रस्ताव भी किया गया कि पांडिचेरी में ओरोविल बनाया जाए और सभा में इस मामले पर लम्बे समय तक वाद-विवाद किया गया कि इस तरह की बात कैसे हो सकती है? आप विदेश जाते हैं और कहते हैं कि आइए, इस देश में आप एक नगर स्थापित कीजिए।

इस सरकार ने राष्ट्र के सम्मान और गरिमा की अनूठी परिभाषा दी है। इस मामले में भी मुझे श्री जैकब से सहानुभूति है? वह इस संबंध में क्या कर सकते हैं? यदि विदेश मंत्री ने इस मामले पर बात नहीं की है तो उन्हें इसमें एक वक्तव्य देना चाहिए क्योंकि म्यांमार अर्थात बर्मा में तानाशाही है। वे वहां लोकतंत्र को पनपने नहीं दे रहे हैं, सारा विश्व चुप्पी साधे हुए है। वे न केवल बर्मा में इस निरंकुश शासन से ही संतुष्ट हैं बल्कि वे मिजोरम और भारत में भी अपना शासन थोपना चाहते हैं और भारत सरकार इस मामले में चुप है।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।