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नेपाल में उठी जनतंत्र की आवाज़ के विरोध में कोई समझौता हुआ तो नहीं होगा स्वीकार

संदर्भ: नेपाल में जनतंत्र के लिए आंदोलन के मामले पर 30 मार्च 1990 को लोकसभा में श्री चंद्रशेखर


अध्यक्ष महोदय, हमारे पड़ोसी देश नेपाल में पिछले कुछ दिनों से जनतंत्र के लिए आंदोलन चल रहा है। वहां पर लोग अपना राजनैतिक संगठन बनाने का अधिकार चाहते हैं, अपने मौलिक अधिकार चाहते हैं। दुनिया में हर जगह जहां जनतंत्र के लिए संघर्ष हो, हम उसका समर्थन करते आए हैं। यह हमारे राष्ट्रीय आंदोलन की विरासत है। नेपाल न केवल हमारा पड़ोसी देश है, बल्कि हजारों वर्ष से सभ्यता, संस्क्रति तहजीब और तमद्दुन के मामले में हमारा और उसका ताल्लुक रहा है। नेपाल के लोगों ने हमारी आज़ादी की लड़ाई में हिस्सा लिया हैं। श्री गणेश मानसिंह, जो आजकल आंदोलन के कारण जेल में हैं, श्री बी.पी. कोइराला साहब आदि 1942 के हमारे आंदोलन में जेलों में थे। अध्यक्ष महोदय आपको याद होगा कि 1930 में जब हमारे सत्याग्रहियों पर गोली चलाने के आदेश दिए गए थे तो गोरखा रेजिमेंट के सिपाहियों ने गढ़वाल में गोली चलाने से मना कर दिया था।

महोदय, हमारे भारतीय मूल के लोग बड़ी संख्या में नेपाल के तराई के इलाकों में और दूसरी जगहों पर बसे हुए हैं। उनके साथ पिछले वर्षों में जो कुछ भी हुआ है, उसका ज़िक्र मैं नहीं करना चाहता। आप यह भी जानते हैं कि वहां के आंदोलन के बारे में सारी दुनिया में एक चिंता व्यक्त हो रही है। दमन के विरुह् अमेरिका की सीनेट में बयान दिए गए हैं। इंग्लैंड, स्विटज़रलैंड और स्वीडन की सरकारों ने भी दमन का विरोध किया है।

हम नेपाल की प्रभुसत्ता में विश्वास करते हैं लेकिन प्रभुसत्ता जनता की होती है, राजा की नहीं। वहां राजा की प्रभुसत्ता बचाने की बहुत सी सरकारों ने कोशिश की है। ईरान में दुनिया की कई बड़ी ताकतों ने वहां के शहंशाह को बचाने का प्रयास किया लेकिन न शहंशाह बचा और न ईरान की सियासत ही बची। जो काम ईरान में नहीं हो सका, अमेरिका की मदद से, मैं बड़े अदब के साथ कहता हूं कि भारत सरकार वही काम नेपाल में नहीं होने दे सकती। नेपाल के लोगों के साथ हम केवल हमदर्दी ही न व्यक्त करें बल्कि हम अपना राष्ट्रीय कर्क्राव्य समझते हैं कि उनके मामलों में हम सहानुभूति के साथ-साथ सक्रिय रूप से सहयोग भी करें।

कल 207 मेम्बर्स आॅफ पालयामेंट ने एक बयान दिया था, जिसमें कहा गया था कि हम न केवल वहां हो रहे दमन का विरोध करते हैं बल्कि एक चेतावनी देते हैं कि अगर वहां दमन जारी रहा तो हम चुप नहीं बैठे रहेंगे। अध्यक्ष महोदय आपको आश्चर्य होगा और मुझे दुख के साथ कहना पड़ता है कि अपने आपको राष्ट्रीय कहने वाले समाचार पत्रों में उस वक्तव्य के लिए कोई स्थान नहीं मिला। हमारे मित्र उपेनर््ी जी यहां बैठे हैं, दूरदर्शन और आकाशवाणी भी 207 मेम्बर्स आॅफ पालयामेंट के उस वक्तव्य को कोई स्थान देने की आवश्यकता नहीं समझी। इससे क्या मैं यह समझू कि हम इस तरह देश की मर्यादा बढ़ा रहे हैं।

अध्यक्ष महोदय, मैं आपसे जानना चाहूंगा कि एक ओर वहां के लोग लड़ रहे हैं, पिछले दो ह∂तों से आपसे बार-बार निवेदन किया गया है कि नेपाल के बारे में सदन में चर्चा हो, नेपाल के बारे में एक वक्तव्य दिया जाए। हमारे विदेश मंत्री बैठे हैं उन्होंने भी कोई वक्तव्य देना उचित नहीं समझा। कल अखबारों में हमने पढ़ा कि विदेश सचिव जाएंगे और वहां से कोई समझौता करके वापस आएंगे। मैं जानता हूं कि विदेश मंत्री और विदेश सचिव कि एक हैसियत होती है। मैं उसका आदर करता हूं लेकिन यदि विदेश सचिव और विदेश मंत्री कोई समझौता कर सकते हैं तो यह संसद उस समझौते को अस्वीकार भी कर सकती है, यह बात उन्हें याद रखनी चाहिए। 207 संसद सदस्यों के उस वक्तव्य के बाद, न कोई ज़िक्र, न कोई चर्चा, और न कोई सलाह की गई, बल्कि अचानक हम अखबारों में यह पढ़ते हैं कि विदेश सचिव जाएंगे और कोई समझौता करके वापस आएंगे।

अध्यक्ष महोदय, मैं आपके ज़रिये सरकार से विनम्र शब्दों में और संसद में यह बात बहुत स्पष् रूप से कहना चाहता हूं कि यह एक ऐसी परम्परा है, जो हमारी मर्यादा को समाप्त कर देगी। शहंशाह जो वहां के महाराजधिराज हैं, उनको कलंकित करेगी और इस सरकार के लिए भी मर्यादापूर्ण नहीं होगी। मैं आपके ज़रिये सरकार से निवेदन करना चाहूंगा कि जब लोग पीड़ा में हैं, कहीं नेपाल के लोगों के मन में यह भावना न पड़ जाए कि उनकी पीड़ा का लाभ उठाकर हम राजा को दबाकर कोई संधि करना चाहते हैं। उनकी पीड़ा से सौदा मत करो। कूटनीतिक लाभ आपको मिल जाएगा, लेकिन इतिहास के गलियारे में आप एक अपराधी की हैसियत से खड़े होंगे, जहां कहा जाएगा कि लोगों की भावनाओं को दबाने के लिए, जब आंदोलन चल रहा था, हमने शहनशाह का साथ दिया। आज अखबारों में खुले तौर पर कहा जाता है, नई दिल्ली में, सारी दुनिया में कहा जाता है कि यदि आज समझौता किया गया नेपाल नरेश से तो लोग समझेंगे कि नेपाल के आंदोलन को दबाने में हिन्दुस्तान की सरकार का हाथ है। मैं नहीं चाहता कि हमारे सरकार के ऊपर यह कलंक लगे। मैं नहीं चाहता कि भारत और नेपाल के जो हजारों वर्षों से संबंध हैं, उसमें कटुता आए। हमें संबंध जनता से जोड़ने हैं, शहंशाह से नहीं।

मुझे विश्वास है कि विदेश मंत्री इस बात को ध्यान में रखेंगे और जो उनके विदेश सचिव जाएंगे, देश के लोगों की भावनाओं के मुताबिक, उन्हें बता दें कि वे मर्यादाओं के अंदर वहां बात करें। अगर नेपाल के लोगों की जनतंत्र की आवाज़ के खिलाफ कोई समझौता हुआ तो वह इस देश को और इस संसद को स्वीकार नहीं होगा। मैं यही कहना चाहता हूं।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।