आवेश में सदन को तमाशा मत बनाइए, उपाध्यक्ष की टिप्पणी में कुछ आपत्तिजनक नही
संदर्भ: पीठासीन अधिकारी के सम्मान पर 5 मार्च 1997 को लोकसभा में श्री चंद्रशेखर
उपाध्यक्ष महोदय, इस सदन में जो कुछ हुआ है, वह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। मैं सत्ता पक्ष के सदस्यों से अनुरोध करूंगा कि वे इस बात का ध्यान रखें कि पीठासीन अधिकारी कोई भी हो, यदि सदन को चलाना है, तो उसका सम्मान करना अनिवार्य है। उस ओर के कुछ सदस्यों द्वारा की गयी टिप्पणियां न केवल दुर्भाग्यपूर्ण हैं अपितु भत्र्सना करने योग्य भी हैं। मैं आपको बता दूं कि मैंने उपाध्यक्ष महोदय द्वारा की गई टिप्पणियां भी सुनी हैं। मेरे विचार से, उनमें मुख्यमंत्री पर झूठा आक्षेप लगाने जैसा कुछ नहीं था। उन्होंने तो केवल यह कहा है कि मुख्यमंत्री जी का कहना है कि यह उनका उत्तरदायित्व नहीं है और रेलमंत्री जी कहते है कि यह उनका उत्तरदायित्व नहीं है, तो यह किसकी ज़िम्मेदारी हुई? इस टिप्पणी को इसी नज़रिये से देखा जाना चाहिए था।
उपाध्यक्ष महोदय, आपके वक्तव्य में कुछ भी गलत नहीं था। यदि कुछ था तो सही था। वह मुख्यमंत्री पर आक्षेप जैसा कुछ नहीं था। वह चाहे कुछ भी हो, उसमें असंसदीय या आपत्तिजनक कुछ नहीं था। यदि ऐसा कोई प्रभाव उत्पींा किया गया है, तो मेरे विचार से यह इसलिए हुआ क्योंकि विपक्ष के सदस्य इस मामले पर कुछ अधिक ही संवेदनशील हो गए थे। उन्हें इतना अधिक संवेदनशील नहीं होना चाहिए था। मैं तेा केवल इतना कहना चाहता हूं कि मुख्यमंत्री के बयान की जानकारी तो समाचार-पत्र के माध्यम से ही हुई जबकि उचित तो यह था कि मुख्यमंत्री जी से इस तथ्य की पुष् टिकरा ली जानी चाहिए कि उन्होंने यह वक्तव्य दिया भी था या नहीं? यदि उन्होंने बिहार-विधानसभा में ऐसा कहा है, तो उपाध्यक्ष महोदय की टिप्पणी में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं है। परन्तु इस मामले को लेकर हमें अधिक गुस्सा नहीं करना चाहिए और तमाशा नहीं बनाना चाहिए। मेरा तो केवल यही मत है।