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कुलदीप नै∏यर को उच्चायुक्त पद से कर देना चाहिए बर्खास्त, जांच शुरू होने से पहले बुलाएं वापस

संदर्भ: उच्च न्यायाधीश के प्रति उपेक्षापूर्व व्यवहार पर 4 अक्टूबर 1990 को लोकसभा में श्री चंद्रशेखर


अध्यक्ष महोदय, यह बहुत ही दुखद और शर्मनाक कहानी है। माननीय सदस्य श्री लोढ़ा जी ने जो कहा है, अगर उसका एक अंश सही है तेा बिना किसी बहस के वहां से उच्चायुक्त को वापस बुला लेना चाहिए। चाहे जो भी कारण रहा हो, भारत के मुख्य न्यायाधीश के प्रति इस प्रकार उदासीन और उपेक्षापूर्ण व्यवहार करने का अधिकार किसी भी उच्चायुक्त को नहीं है चाहे मंजूरी मिले या न मिले। माननीय विदेश मंत्री यहां हैं या नहीं, मैं नहीं जानता। मै नहीं जानता कि वहां उच्चायुक्त कौन है? अध्यक्ष महोदय, पूरे मामले की जांच करने की कोई आवश्यकता नहीं है। इस मामले में कुलदीप नै∏यर को तुरन्त बर्खास्त कर देना चाहिए और इस पर बहस करने का कोई तात्पर्य नहीं है।

अध्यक्ष महोदय, प्रस्ताव पेश करने का प्रश्न ही नहीं उठता। किन्तु मैं आपके माध्यम से माननीय मंत्री महोदय से यह निवेदन करूंगा कि वह श्री कुलदीप नै∏यर के व्यवहार के बारे में अधिक सकारात्मक रहंे, क्योंकि उन्होंने पत्र में जो लिखा है, उसमें उन्होंने भारत के मुख्य न्यायाधीश का ठीक प्रकार से ध्यान न रखे पाने के बहाने ढूंढने का प्रयास किया है। यदि वह उच्चायुक्त के रूप में बने रहते हैं, तो कोई भी जांच प्रभावहीन रहेगी। इसलिए, जांच शुरू करने से पहले इन्हें इस पद से हटा दिया जाना चाहिए।

अध्यक्ष महोदय, इस प्रकार के गम्भीर मामले में कूटनीति के शब्दों का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए और उच्चायुक्त द्वारा यह कहना पूरी तरह लापरवाही है कि वह सरकारी दौरे पर नहीं थे और मुझे दुख है कि मेरे मित्र श्री गुजराल तकनीकी कारणों से उनके द्वारा प्रयोग की गयी भाषा का समर्थन कर रहे हैं। यह उनकी मनः स्थिति का द्योतक है और इसमें सुधार किया जाना चाहिए।

अध्यक्ष महोदय, यदि मंत्री महोदय इस प्रकार का व्यवहार करेंगे तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है। सदन अपनी भावनाएं प्रकट करना चाहता है और माननीय मंत्री जी कह रहे हैं कि इसके लिए सूचना दें और तत्पश्चात् संकल्प प्रस्तुत करें। मेरा कहना है कि संकल्प का तो कोई प्रश्न ही नहीं है। इस मामले पर संकल्प की कोई आवश्यकता नहीं हैऋ यह सदन की भावनाओं का प्रश्न है।

अध्यक्ष महोदय, श्री इन्द्रजीत गुप्त ने एक सुझाव दिया है। मैं मंत्री महोदय से अनुरोध करता हूं कि हमें और आगे की परेशानी से बचने के लिए इन्द्रजीत गुप्त के सुझाव को मान लेना चाहिए। मेरे विचार से श्री चिदम्बरम और श्री साठे इस बात से सहमत होंगे कि उन्हें तुरन्त अवकाश पर चले जाना चाहिए। महोदय, मैं श्री दिनेश सिंह से अनुरोध कर रहा हूं कि जब वह अवकाश पर होंगे तो उस देश में नहीं रहेंगे। वह इस देश में रहेंगे। उसके बाद वह वहां निजी यात्रा पर जाएंगे।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।