किसी व्यक्ति विशेष की कल्पना या सनक को लेकर संविधान को पंगु नहीं बनाया जा सकता
संदर्भ: मुख्य चुनाव आयुक्त के अधिकारों पर 4 मई 1993 को लोकसभा में श्री चंद्रशेखर
उपाध्यक्ष महोदय, श्री निर्मल कांति चटर्जी और श्री सोमनाथ चटर्जी द्वारा एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया गया है। मुझे भी थोड़ी चिंता है क्योंकि मुख्य चुनाव आयुक्त का एक वक्तव्य दिल्ली के एक दैनिक समाचार पत्र में प्रकाशित हुआ है।
चुनाव आयुक्त ने कहा है कि वह सबसे ऊपर हैं। उसे राष्ट्रपति, राज्यपाल, मुख्यमंत्री अथवा प्रधानमंत्री द्वारा नियंत्रित नहीं किया जा सकता। यदि उसकी इच्छाओं का पालन नहीं किया गया तो वह चुनाव नहीं होने देगा। मुझे इसका पता नहीं है। मेरे मन में मुख्य चुनाव आयुक्त के कार्यालय के प्रति बहुत आदर है। किन्तु यदि सभा और सरकार द्वारा यह बात स्वीकार कर ली जाती है, तो उचित नहीं होगा। मुझे समझ में नही आ रहा है कि क्या यह स्थिति लम्बे समय तक जारी रह सकती है? संवैधानिक प्राधिकारी का यह वक्तव्य सबसे अधिक आपत्तिजनक है। यदि इस बात पर ध्यान नहीं दिया जाता तो संसद आपने कर्तव्य का पालन नहीं कर रही है।
उपाध्यक्ष महोदय, मैं आपसे अनुरोध करूंगा कि सरकार इस मामले पर शीघ्र विचार करे और सभा इस पर कोई निर्णय करे क्योंकि किसी व्यक्ति विशेष की कल्पना और सनक के कारण संविधान को पंगु नहीं बनाया जा सकता। मैं व्यक्ति विशेष के विरुह् कुछ नहीं कहूंगा। किन्तु इस प्रकार के महत्वपूर्ण पद का इस ढंग से दुरुपयोग नहीं करने दिया जाए। यह केवल इसी मामले में नहीं है कि यह पश्चिम बंगाल की सरकार है। चाहे वह कर्नाटक है या फिर हरियाणा की सरकार है अथवा किसी का व्यक्तिगत मामला है, वह यह चाहता है कि देश में कहीं पर भी नौकरशाही को मुअत्तल करने की सर्वोच्च शक्ति उनके पास होनी चाहिए। वह यह चाहते हैं कि उनके आदेश का बिना किसी आपत्ति के पालन किया जाना चाहिए। जबकि मंत्रिमंडल सचिव इस अधिकार का दावा नहीं कर सकता क्योंकि उसे लेकर कतिपय प्रक्रियाएं है। फिर मुख्य चुनाव आयुक्त यह कैसे सोचता है कि किसी को भी निलम्बित करने, मुअक्राल करने, दंड देने अथवा किसी भी व्यक्ति के साथ कुछ भी करने वाले सर्वोच्च अधिकार उसके पास हैं। यह स्थिति पूर्णतया अस्वीकार्य है। इसे लेकर सरकार तथा संसद को कुछ हल निकालना ही चाहिए।
उपाध्यक्ष महोदय, नीतीश कुमार ने मेरा नाम लिया है। हर व्यक्ति से गलती होती है। मुझसे भी एक गलती हुई कि ऐसे व्यक्ति को मैंने नियुक्त किया। लेकिन प्रत्येक व्यक्ति गलतियां कर सकता है। उस व्यक्ति के बारे में मेरा मूल्यांकन सही नहीं था। यह स्वीकार करने में मुझे कोई शर्म नहीं है। परन्तु जैसा कि श्री इन्द्रजीत गुप्त ने कहा है कि अब एक ऐसी स्थिति आ गयी है कि जब इस सदन को इस व्यक्ति से छुटकारा पाने का एक रास्ता ढूंढ़ निकालना चाहिए और इसका सबसे सुरक्षित उपाय है कि उनके विरुह् महाभियोग लाया जाए।