निर्वाचन आयोग ने दिया सरकार के विरुह् स्पष् आरोप पत्र, मामला गम्भीर स्पष् करें मत
संदर्भ: 10 अगस्त 1993 को लोकसभा में मुख्य निर्वाचन आयुक्त के आदेश से उत्पींा संकट पर श्री चंद्रशेखर
माननीय मंत्री से मेरा कोई झगड़ा नहीं है। उन्हें प्रत्येक मिनट अपना मत बदलने का पूरा अधिकार है। यह इस सरकार का विशेषाधिकार रहा है। वे किसी महत्वपूर्ण अथवा गम्भीर मामले पर अपना मत बनाने में असमर्थ हैं। माननीय मंत्री बार-बार कहते रहे हैं कि विपक्ष और उनके कहने में कोई अंतर नहीं है। मुझे इस बात पर चर्चा करने की स्वतंत्रता नहीं है कि आपके चैम्बर में क्या हुआ? जहां सभी विपक्षी नेता उपस्थित थे-तो सौभाग्य से अथवा दुर्भाग्य से, मैं भी वहां उपस्थित था-इस विषय पर विस्तारपूर्वक चर्चा हुई थी। मैं अपना निर्णय और मत अध्यक्ष पर छोड़ता हूं। मैं यह पूछता हूं कि क्या उस बैठक का जो मत था, वह पूरा किया गया है? क्या उस दिशा में कोई प्रारम्भिक उपाय भी किया गया या नहीं? मैं यह नहीं जानता कि माननीय मंत्री ने वक्तव्य क्यों दिया? मैं यहां उपस्थित नहीं था। जब मैंने यह समाचार पत्रों में देखा तो मैं इससे बहुत अधिक संतुष् नहीं था क्योंकि कार्यपालिका अपना उत्तरदायित्व नहीं छोड़ सकती। मुझे इस बात की जानकारी नहीं है कि मित्र इससे प्रसन्ना होंगे या अप्रसन्ना? लेकिन स्थिति छह दिसम्बर से पहले वहीं थी जब भारत सरकार हर समय हर बात को सर्वोच्च न्यायालय और न्यायपालिका को समपत कर रही थी। कार्यपालिका का कुछ उत्तरदायित्व होता है। वे कहते हैं कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त अपना मत लेकर न्यायालय के समक्ष जाएंगे और उत्तर देंगे। जैसा कि मैंने उस दिन आपको बताया था, निर्वाचन आयोग ने आपकी सरकार के विरुह् अपना स्पष् आरोप पत्र दे दिया है। समस्त विश्व की जानकारी मे मत आ गया है कि आप निर्वाचन आयोग के उचित कार्यों में अड़चन पैदा करते हैं। आप स्वतंत्र चुनाव नहीं होने दे रहे हैं। क्या आपको इस संबंध में कुछ कहना है? मैं यह जानना चाहता हूं कि क्या सरकार इस स्थिति में संतुष् है कि जब तक न्यायपालिका उनकी सहायता न करे, वे यहां तक कि स्वयं का बचाव भी नहीं करेंगे। मुझे आपसे कोई आशा नहीं है कि आप संविधान, संसद और संसदीय व्यवहार के उच्च मानदंडों की रक्षा करेंगे। लेकिन क्या आप स्वयं अपना बचाव भी नहीं कर सकते?
यह श्री पी.वी. नरसिंह राव की सरकार नहीं है। यह भारत की सरकार है। वे इस देश के प्रधानमंत्री हैं। समस्त विश्व का यह मत है कि सरकार संवैधानिक प्राधिकार को स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों की अनुमति नहीं दे रही है, हम इससे चिंतित हैं। आपने इस में एक शब्द भी नहीं कहा है। आपको इस पर क्या कहना है? आपने चैम्बर में उस दिन क्या कहा था? इस पर निर्णय करना देश के लोगों और संसद सदस्यों का कार्य है। यह आपका उत्तरदायित्व है। मैं विनम्रतापूर्वक यह कह सकता हूं कि कतिपय महत्वपूर्ण मामलों में आपको अपनी टिप्पणियां करनी होंगी। यदि आप यह कहते हैं कि सरकार और विपक्ष में कोई अंतर नहीं है, तो इसका यह अर्थ हुआ कि इस देश के लिए कोई आशा नहीं है।