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चुनाव आयोग ठीक है या भारत सरकार, फैसला करना ही होगा, अन्य विकल्प नही

संदर्भ: मुख्य निर्वाचन आयुक्त के आदेशों द्वारा चुनाव निलम्बित करने के मामले पर 3 अगस्त 1993 को लोकसभा में श्री चंद्रशेखर


अध्यक्ष महोदय, मामला केवल इसीलिए ही गम्भीर नहीं है कि चुनाव स्थगित हो गए हैं बल्कि सारे विश्व में यह धारणा बन गई है कि भारत में सांविधानिक अधिकारी ने भारत सरकार के विरुह् कुछ ऐसे आरोप लगाए हैं कि भारत सरकार उनके अधिकारों में हस्तक्षेप करने के लिए ज़िम्मेदार है तथा इसीलिए चुनाव नहीं हो सके हैं। महोदय, आज भारत सरकार पर विपक्ष द्वारा आरोप नहीं लगाया गया है और न ही समाचार पत्रों द्वारा बल्कि निर्वाचन आयोग द्वारा सांविधानिक अधिकारी द्वारा, जिसके अधिकार, अखंडता तथा मर्यादा इस सभा द्वारा तथा आपके द्वारा बनाई रखी जाती है। निर्वाचन आयोग के मान और मर्यादा के विरुह् एक शब्द नहीं कहा जाना चाहिए। हम इसका पालन करते हैं लेकिन वही निर्वाचन आयुक्त कहते हैं कि भारत सरकार और विशेष रूप से गृहमंत्री महोदय केवल कठिनाई उत्पींा करने के लिए ही नहीं बल्कि देश में ऐसी स्थिति उत्पींा करने के लिए ज़िम्मेदार हैं कि जहां कोई लोकतांत्रिक चुनाव ही सम्भव नहीं है। आप इस देश की क्या छवि बनाना चाहते हैं? मेरे मित्र महोदय, श्री वी.सी. शुक्ला ने तकनीकी उत्तर देते हुए कहा है कि मामला कोर्ट में है। मेरे मित्र महोदय नहीं जानते कि न्याय-निर्णय के फलस्वरूप संविधान भंग नहीं होगा बल्कि जैसा कि मेरे मित्र श्री आडवाणी जी ने कहा है कि यह इस सरकार की अकर्मण्यता और पंगुपन ही है जो इस प्रशासनिक प्रणाली में रेंग रहा है।

अध्यक्ष महोदय, मैं इस पहलू पर नहीं जाना चाहता कि निर्वाचन आयुक्त महोदय का क्या होगा? मैं आपसे जानना चाहूंगा कि इस सरकार को क्या हो गया है तथा क्या यह सरकार चुनाव आयोग द्वारा ऐसा गम्भीर आरोप लगाने पर भी, जैसा कि श्री आडवाणी ने पढ़ा था, मौन धारण किए रहेगी। मेरे विचार में विधिमंत्री की ओर से कोई निरर्थक वक्तव्य आएगा। लेकिन आज भारत सरकार ऐसी स्थिति में है कि या तो निर्वाचन आयोग ही सत्ता में रह सकता है या फिर भारत सरकार। भारत सरकार को विश्व के सामने मुंह दिखाने के लिए कोई विकल्प नहीं बचा है। विकल्प बहुत सीमित है। या तो चुनाव आयोग ठीक है या फिर भारत सरकार को अपने आपको सही सिह् करना होगा। अगर भारत सरकार अपना औचित्य सिह् करती है तो चव्हाण जी विधिमंत्री का वक्तव्य यूं ही नहीं छोड़ा जा सकता। यह कोई कानूनी प्रश्न नहीं है।

अध्यक्ष महोदय, यह राजनीतिक प्रश्न है। यह नैतिक और सांविधानिक प्रश्न है। यह हमारे संविधान को बनाए रखने का प्रश्न है। मुझे इसका खेद है कि आप लोग अपना दायित्व नहीं समझते। सरकार द्वारा कर्तव्य-निवेदन में लापरवाही अक्षम्य है। इसीलिए अध्यक्ष महोदय हम आपसे प्रार्थना कर रहे हैं, अनुरोध कर रहे हैं कि आप इस सरकार को समझाएं कि मात्र चालाकी और बहानेबाज़ियों से जिसके बारे में अभी मेरे साथी सदस्य श्री विश्वनाथ प्रताप बताने का प्रयास कर रहे थे, वे सत्ता में कुछ समय के लिए तो रह सकते हैं लेकिन वे इस राष्ट्र को तबाह कर देंगे। भगवान के लिए, कुछ दिन या कुछेक महीनों के लिए सत्ता में रहने के लिए इस राष्ट्र को बर्बाद मत कीजिए, संविधान को नष् मत कीजिए। इस संसदीय संस्था की मान और मर्यादा को तबाह मत कीजिए।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।