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दंगे के दो दिन बाद पुलिस की कार्रवाई केवल निंदनीय नहीं, इंसानियत के लिहाज से गिरी घटना

संदर्भ: वाराणसी में हिंसा पर 20 नवम्बर 1991 को लोकसभा में श्री चंद्रशेखर


अध्यक्ष महोदय, इतने दुखद सवाल पर भी सदन में इस तरह की प्रतिक्रिया हो, यह हम सबके लिए लज्जा की बात है। 8 और 13 तारीख को जो हुआ वह दुखद है। हमारे मित्र दीक्षित जी ने जो कहा, यह सही है कि प्रशासन वहां जो कर रहा है उसमें हमें दखलअंदाज़ी नहीं करनी चाहिए। मैं कमेटी के लिए नहीं कहूंगा, मैं आडवाणी जी, विजयराजे सिंधिया जी और वाजपेयी जी से निवेदन करूंगा कि आप वहां जाकर देखें कि किस कानून, अनुशासन और नियम के अंदर अजीत सिंह जैसे आदमी, यादव जी जैसे आदमी को वहां नहीं जाने दिया और दीक्षित जी को निर्बाध गति से घूमने दिया। अगर अजीत जी वहां पर जाएं तो गिर∂तार किए जाएं। उनका क्षेत्र है लेकिन दूसरी पाटयों के स्थानीय लोगों को भी देखना चाहिए। सोनकर जी को एतराज हो सकता है, उनका भी जिला बनारस है, पड़ोस में है, कैलाश जी हैं, दूसरे लोग हैं। क्या इस तरह की घटनाएं इस मामले में भी होंगी? प्रशासन अगर इस तरह की बातें करेगा तो उसके ऊपर लोगों को संदेह होगा ही। बनारस की स्थिति बहुत खराब है। दंगे के दो दिन बाद पुलिस की जो कार्रवाई हुई है, वह न केवल निंदनीय है बल्कि वह इंसानियत के लिहाज से गिरी हुई घटना है जिसका कोई भी आदमी समर्थन नहीं कर सकता। अध्यक्ष महोदय, मैं इस मामले में बिल्कुल भावुक नहीं हो रहा हूं। यह सदन तय करे कि बी.जे.पी. के तीन महान् नेता-वाजपेयी जी, सिंधिया जी और आडवाणी जी वहां जाकर व देखकर निर्णय लें कि पुलिस ने किस तरह का व्यवहार 13 तारीख़ की घटना के बाद किया। अगर वे कह दें कि वह जस्टीफाइड था तो हम उसको स्वीकार कर लेंगे।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।