भारत को है आयुर्वेद चिकित्सा में हजारों वर्ष का अनुभव, नज़रअंदाज़ करने से अपना अस्तित्व होगा नगण्य
संदर्भ: 1 अगस्त 2001 को लोकसभा में आयुर्वेद शेाध पर श्री चंद्रशेखर
अध्यक्ष महोदय, मैं उन वैद्य महोदय को मैं व्यक्तिगत रूप से जानता हूं। उन्होंने कम-से-कम 15-20 वर्ष इस पर शोध कार्य किया है। कठिनाई वही है, जैसा कि मंत्री महोदय कह रहे हैं। आयुर्वेद के रिसर्च को हमारे वैज्ञानिक रिसर्च नहीं मानते हैं। जब तक इस बाधा को दूर नहीं करेंगे, आप चाहे कितने ही प्रख्यात लोगों की कमेटी बना दें, दोनो की सहमति नहीं हो सकती है। वैद्य महोदय के सामने कठिनाई यह है कि जो बातें वे बातएंगे, अगर दुनिया को मालूम हो जाएंगी, तो दुनिया के लोग उसको लेकर आगे बढ़ जाएंगे और उनको सुविधाएं नहीं मिलेगी।
अध्यक्ष महोदय, शायद मंत्री महोदय को मालूम हो कि हमारे राष्ट्रपति महोदय ने उनके लिए केरल में कुछ सुविधाएं प्रदान की हैं, लेकिन दुख इस बात का है कि राष्ट्रपति के कहने के बावजूद भारत सरकार कुछ वैज्ञानिकों की राय से संचालित हो रही है और उनको वह सुविधाएं नहीं दी जाती हैं, जिनकी उनको जरूरत है। वैज्ञानिकों की हम बड़ी इज़्जत करते हैं, लेकिन भारत को आयुर्वेद चिकित्सा में भी हजारों वर्षों का अनुभव है। उसको देखते हुए, विशेष रूप से सुविधाएं देने की जरूरत पड़े तो नियमों में परिवर्तन करना चाहिए।
अध्यक्ष महोदय, क्या मंत्री जी को मालूम है कि आॅल इंडिया इंस्टीट्यूट ने 13 मरीजो को उनके नेतृत्व में दवा दी और उससे उन सबको लाभ हुआ। उसकी रिपोर्ट भी है। उस समय के स्वास्थ्य मंत्री जी ने उनकी इस बात की सिफारिश की, लेकिन नहीं मानी गई। प्रोसेस पेटेंट महत्वपूर्ण बात है। अगर प्रोसेस को बता दें तो उससे दुनिया के लोग दूसरी बातों को भी जान सकते हैं, इतनी बुह् टिहम में भी है, जो वैज्ञानिक नहीं हंै। इसलिए अगर आप वैज्ञानिकों की राय पर चलेंगे तो आयुर्वेद चिकित्सा पह्ति का विकास नहीं हो सकता है क्योंकि दुनिया में कहीं भी आयुर्वेद पर रिसर्च नहीं हुआ है। दुनिया में क्या कहा जाता है, उसे देखकर भारत भी चलेगा तो भारत का अपना अस्तित्व नगण्य हो जाएगा।