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देश और सेना की मर्यादा को नीचे गिराना राष्ट्रीय कर्तव्य नहीं है, इसे रोका नहीं गया तो संसदीय जीवन भी हो सकता है त्रस्त

संदर्भ: तहलका डाटकाम के मामले पर 23 अगस्त 2001 को लोकसभा में श्री चंद्रशेखर


अध्यक्ष महोदय, कल दिल्ली के एक प्रमुख पत्र में जिस तरह तहलका कांड के बारे में एक विवरण छपा, वह न केवल अशोभनीय है बल्कि सारे सदन और राष्ट्र के लिए मर्यादाविहीन है। उस पर सबकी चिंता होना स्वाभाविक है। जब तहलका कांड चला था तो उस समय भी यही हथकंडे अपनाए गए, टेप किया गया। अखबारों और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के जरिये सारी दुनिया को यह बताया गया कि देश की सेना में कितना भ्रष्टाचार व्याप्त है। उस पर सरकार ने कमीशन बनाया, सेना के लोगों ने अपना कोड बनाया। हमें अखबारों के ज़रिये मालूम हुआ कि उन्होंने काफी आगे बढ़ कर कार्यवाही की है। जिस समय उनकी कार्यवाही समाप्त होने जा रही थी और यह हो रहा था कि कुछ लोगों को सजा दी जाने वाली है तो उस समय अचानक कल एक दूसरा टेप कहीं से आया। शायद उन्हीं लोगों ने कमीशन के सामने दिया, जिन लोगों ने इसे शुरू किया था। उसमें तरह-तरह की बातें लिखी हैं या जो कही गई हैं, वे इतनी अशोभनीय हैं कि सदन में उनकी चर्चा करना मैं उपयुक्त नहीं मानता।

अध्यक्ष महोदय, इन्फोरमेशन इनडिपेंडेंट होनी चाहिए। राइट आॅफ इन्फोरमेशन होनी चाहिए, लेकिन क्या इसके अंदर यह भी आता है कि जघन्य क्रत्यों को अपना कर सूचना प्राप्त की जाए और अगर ऐसी कोई सूचना प्राप्त की गई तो इसे प्रधानमंत्री जी, रक्षा मंत्री जी या उच्चाधिकारियों को न देकर दुनिया के सामने सारे देश की मर्यादा को नीचे गिराना, सारी सेना की नैतिकता को नीचे गिराना कहां का राष्ट्रीय कर्तव्य है? मुझे दुख इस बात का है कि कल उसके छपने के बाद उन महोदय ने एक वक्तव्य दिया, जिसे आकाशवाणी ने भी बड़े जोरों से प्रसारित किया है। उन्होंने कहा कि हम इस काम को करते रहेंगे। मैंने देशहित में किया है। जब मामला गम्भीर हो तो ऐसे गम्भीर कदम उठाने पड़ते हैं, जिस तरह का कदम आज उन्होंने उठाया है। मैं नहीं जानता कि कानून में कोई व्यवस्था है या नहीं। मुझे जो थोड़ी-बहुत कानून की जानकारी है, जो काम इन्होंने किया है वह किसी दृष् टिसे, नियम, कानून, मर्यादा या नैतिकता के अंदर नहीं आता। मैं नहीं जानता कि सरकार क्या कर रही है। हर चीज पर सरकार का मौन रहना, असमर्थता जाहिर करना, यह सरकार की नित्य प्रति की बात हो गई है।

मैं इस सवाल को नहीं उठाता, लेकिन मैं समझता हूं कि इस घटना से देश की और सेना की मर्यादा, हमारी सारी कार्यविधि की मर्यादा नीचे गिरी है। मैं चाहूंगा कि अगर कोई नियम, कानून नहीं है, यहां संसदीय कार्य मंत्री बैठे हैं, वह विधि मंत्री जी को कहें कि क्या ऐसे लोगों को नियंत्रित नहीं किया जा सकता? क्या इन लोगों को ऐसे समझाया नहीं जा सकता कि अगर देश की इतनी चिंता है तो इस चिंता को दूर करने के लिए सरकार है।

अध्यक्ष महोदय, इसे लेकर सरकार जो करती है, उससे भी मैं सहमत नहीं हूं। यह बात मैं स्पष् कर दूं कि मालूम ऐसा होता है कि सरकार को लकवा मार गया है। इनके बारे में कोई कुछ कहता है तो ये मौन रह जाते हैं। यह मौन किस कमज़ोरी का द्योतक है, मैं नहीं समझ पाया। अध्यक्ष महोदय, यह देश की सुरक्षा का सवाल है, सुरक्षा बलों का सवाल है और एक जगह नहीं अनेक जगह ऐसी कार्रवाई हो रही है। कल जो हुआ उस पर हमारे कुछ सदस्य उक्रोजित थे और उनका उक्रोजित होना स्वाभाविक था। इस तरह की घटनाएं अगर नहीं रोकी गईं तो न केवल इस सदन में उक्रोजना फैलेगी बल्कि मुझे डर है कि कहीं सुरक्षा बलों के अंदर भी उक्रोजना न फैले जिससे हमारा सारा संसदीय जीवन त्रस्त हो जाए।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।