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राजनैतिक विरोध के लिए निगरानी या चोरी से टेलीफोन सुनना घृणास्पद क्रत्य

संदर्भ: 4 मार्च 1991 को लोकसभा में प्रधानमंत्री श्री चंद्रशेखर


अध्यक्ष महोदय, माननीय सदस्य जो कह रहे हैं वह बहुत ही गम्भीर बात है और मैं यह विश्वास दिलाता हूं कि सरकार किसी की भी निगरानी नहीं करती है। सरकार के प्रयास से ही यह तथ्य सामने आया। दो दिन पूर्व श्री राजीव गांधी के निवास के सामने दो व्यक्तियों को किसी अन्य व्यक्ति के द्वारा नहीं बल्कि दिल्ली पुलिस द्वारा पकड़ा गया। उनसे पूछताछ की गई और उन्होंने बताया कि वे हरियाणा पुलिस के खुफिया लोग हैं। ज्यों ही सरकार को सूचना मिली हमने जांच शुरू कर दी। मैं माननीय सदस्य को आश्वासन देता हूं कि ऐसे कार्यों में लिप्त व्यक्ति के विरुह् हर सम्भव कार्रवाई की जाएगी। यह पूरी तरह अस्वीकार्य है, अनैतिक है और भारत सरकार का इससे कोई लेना-देना नहीं है। मैं इसे पूरी तरह अमान्य ठहराता हूं।

मैंने अभी पिछले दिनों ही कहा था कि यह मामला न तो समाप्त हो गया है और न ही यह बंद अध्याय है। सरकार पहले से ही इस मामले के हर पहलू की जांच कर रही है। मैं यह भी सभा को बताना चाहता हूं कि इस बारे में पूरी रिपोर्ट प्राप्त करने के बाद मैं विपक्ष के नेताओं से मिलकर उनकी सलाह लूंगा और जो भी उपचारात्मक उपाय आवश्यक होंगे, उन्हें संविधायी अथवा प्रशासनिक उपायों के द्वारा लागू किया जायेगा। मैं पहले ही सभा को आश्वासन दे चुका हूं और मैं इसे पुनः दोहराता हूं।

मेरे माननीय मित्र श्री आडवाणी जी, मैंने चोरी छिपे टेलीफोन सुनने संबंधी कभी कोई आदेश नहीं दिया है। मैं इसे किसी भी लोकतान्त्रिक देश के लिए घृणास्पद बात मानता हूं कि ऐसा क्रत्य किसी राजनैतिक विरोध के लिए किया जाए। मैं माननीय सदस्य को आश्वासन देता हूं कि यह सरकार इस मामले की जांच कर रही है।

अध्यक्ष महोदय, हम नहीं जानते कि उसको हरियाणा की सरकार ने ऐसा आदेश दिया था या वह स्वयं कर रहा था या किसी अधिकारी ने कर दिया था। सारी जानकारी प्राप्त करने के बाद हम आपको बताएंगे लेकिन इस तरह कहना कि इस सरकार ने किया है या कुछ और, वह ठीक नहीं।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।