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35 वर्षों के संसदीय जीवन में ऐसा कोई शब्द नहीं कहा जिसे वापस लेना पड

संदर्भ: 25 फरवरी 1999 को लोकसभा में श्री चंद्रशेखर


अध्यक्ष महोदय, हमें स्वायक्राता की नई परिभाषा प्राप्त हो रही है। मैं आपके माध्यम से यह जानना चाहता हूं कि यदि कोई संगठन स्वायक्रा है तो कोई भी इस स्वायक्रा संगठन के बारे में सभा के प्रति जवाबदेह है अथवा नहीं है? यदि मंत्री महोदय यह कहते हैं कि उन्हें कुछ भी कहने का कोई अधिकार नहीं है तो उन्हें उस मंत्रालय में मंत्री पद पर रहने का भी कोई अधिकार नहीं है।

अध्यक्ष महोदय, अपने पूर्ण जीवनकाल में संसदीय लोकतंत्र के बारे में मैंने काफी कुछ सीखा है, देखा है लेकिन मैंने आज तक किसी मंत्री को इस तरह उत्तर देते नहीं देखा। यदि कोई संगठन स्वायक्रा भी है, तब भी वह किसी मंत्रालय से जुड़ा हुआ है। मैं इस बारे में विस्तार में नहीं जाना चाहता हूं कि प्रसार भारती, जो कि एक स्वायक्रा निकाय है, को किस प्रकार चलाया जा रहा है और संसद के द्वारा बनाए अधिनियमों तथा दी गई राय के बावजूद कर्मचारियों को किस प्रकार बदला गया है। यदि यह मंत्री महोदय और सरकार के क्षेत्राधिकार में आता है तो वे क्यों इस सभा द्वारा उठाए गए प्रश्नों का उत्तर नहीं दे सकते हैं? उनका कहना है कि वे संचार मंत्री नहीं है। संचार मंत्री का यह कार्य नहीं है कि वह इस सभा के विचारों को प्रसार भारती तक पहुंचाए। यह कार्य सूचना और प्रसारण मंत्री का है।

अध्यक्ष महोदय, मुझे खेद है कि अनावश्यक रूप से यह समस्या खड़ी हुई है। मैंने अपने भाषण में यह कहा था कि आप मंत्रियों को बताएं कि उन्हें इस सभा में किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिए। मैं यह नहीं जानता कि यह किस प्रकार असंसदीय अथवा अपमानजनक है। पिछले 50 वर्षों के दौरान इस सभा में सैकड़ों बार यह बात कही गई है।

अध्यक्ष महोदय, मैंने केवल इतना ही कहा था कि सूचना और प्रसारण मंत्री जी को यह नहीं कहना चाहिए था कि वह संचार मंत्री नहीं है। उन्हें कहना चाहिए था कि वह सभा की भावना से प्रसार भारती को अवगत करा देंगे। मैंने कहा था कि जब किसी स्वायक्राशासी निकाय का इस सभा में किसी मंत्री द्वारा प्रतिनिधित्व किया जाता है तो मेरी जानकारी और समझ के मुताबिक इस सभा की भावना से प्रसार भारती को अवगत कराने के लिए सबसे उपयुक्त व्यक्ति सूचना और प्रसारण मंत्री है। इसलिए मैंने कहा ‘‘क्रपया मंत्रियों को बताएं कि इस सभा में कैसे व्यवहार करना है।’’

अध्यक्ष महोदय, मैं 35 वर्षों से भी अधिक समय से इस सभा अथवा दूसरी सभा का सदस्य रहा हूं। मैंने कभी भी ऐसा कोई शब्द नहीं कहा है जो मुझे वापस लेना पड़े। महोदय, आपके विचार से यदि कोई बात अपमानजनक है तो आप उसे निकाल सकते हैं। मैं नहीं समझता कि मैंने कोई अपमानजनक बात कही है। अध्यक्ष महोदय इस बात का निर्णय माननीय सदस्य नहीं कर सकते हैं। मैं अब भी यह महसूस करता हूं कि इस बात का निर्णय अध्यक्ष महोदय को ही करना है। अध्यक्ष महोदय मंत्री जी और विपक्ष के नेता का चर्चा के लिए सहमत होने के बाद इस मुद्दे पर आगे वाद-विवाद की आवश्यकता नहीं है। मेरे विचार से हमें चर्चा की प्रतीक्षा करनी चाहिए।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।