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असाधारण घटना, पूरा पूर्वान्चल है प्रभावित, भारत सरकार हस्तक्षेप कर

संदर्भ: काशी हिन्दू विश्वविद्यालय गोली कांड पर 13 मार्च 1997 को लोकसभा में श्री चंद्रशेखर


उपाध्यक्ष महोदय, माननीय सदस्य ने जो सवाल उठाया है, वह अत्यंत गंभीर सवाल है। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में जो घटना हुई उसका परिणाम यह हुआ कि सारा पूर्वांचल आज अस्त-व्यस्त है और वहां अराजकता की स्थिति है। विद्याथयों का आंदोलन चल रहा है, जगह-जगह पर हिन्सा और आगजनी की घटनाएं हो रही हैं। इस विश्वविद्यालय की एक पुरातन परम्परा रही है। एक समय था जब सारे राष्ट्र में यह विश्वविद्यालय गौरव की दृष् टिसे देखा जा रहा था। जैसा माननीय सदस्य ने कहा कि उस विश्वविद्यालय का विधेयक पारित नहीं हुआ, जो इस संसद का काम है। क्यों नहीं होता, यह मेरी समझ में नहीं आता। मैं समझता हूं जब विधेयक पेश होते हैं और पास हो जाते हैं तो क्या सारे दलों के नेताओं को बुलाकर इस विधेयक पर सहमति कराकर बिना बहस के भी इस विधेयक को पास नहीं करा सकते थे?

दूसरी बात यह है कि वहां के कुलपति के बारे में बहुत रोष है। मैं व्यक्तिगत रूप से उनको नहीं जानता, मुझे उनसे कोई शिकायत भी नहीं। लेकिन जो व्यक्ति सारे विद्याथयों के कोप का भाजन बना हो, वह काशी हिन्दू विश्वविद्यालय को चला सकेगा, यह बात मेरी समझ में नहीं आती। विद्यार्थी मरे हैं, गोली चली है। दूसरे जिले बलिया हो, आज़मगढ़ हो या गाजीपुर हो, वहां विद्यार्थी आंदोलन चला रहे हैं और आज भी वह दबा नहीं है।

मैं समझता हूं काशी हिन्दू विश्वविद्यालय केन्द्रीय विश्वविद्यालय है इसलिए भारत सरकार की इसकी सीधी जिम्मेदारी होती है। इसलिए भारत सरकार को इसमें हस्तक्षेप करना चाहिए। वहां जो अनियमितताएं हुई हैं, उनकी जांच करानी चाहिए। जो लोग दोषी हों, उनके लिए न्यायिक जांच की आवश्यकता है, तो हो क्योंकि विश्वविद्यालय में गोली चले, यह कोई साधारण घटना नहीं है। इसको गम्भीरता से लेना चाहिए। मुझे विश्वास है उपाध्यक्ष महोदय की आप भी अपनी गरिमा का कुछ असर दिखायेंगे सरकार को सद्बुह् टिदेने में, ताकि इस काम को वह कर सके।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।