कर्मचारी बेरोज़गार होकर सड़क पर घूमने के लिए विवश हुए तो दिल्ली में पैदा होगी कानून-व्यवस्था के लिए समस्या
संदर्भ: दिल्ली के 85 उद्योगों को हटाने के मामले पर 8 अगस्त, 1997 को लोकसभा में श्री चंद्रशेखर
अध्यक्ष महोदय, श्री वासुदेव आचार्य ने जो सवाल उठाया है, वह अत्यन्त महत्वपूर्ण है। दिल्ली में 85 उद्योगों को यहां से हटाने के लिए उच्चतम न्यायालय ने जो निर्णय लिया है, इसमें कहा गया था कि ये उद्योग वहीं लगेंगे जहां से कर्मचारियों को आने-जाने में दिक्कत न हो, दूर न भेजे जाएं। मुझे जहां तक याद है कि कहा गया था कि 60 किलोमीटर की दूरी तक तो लोग आ-जा सकते हैं, लेकिन बहुत सारे उद्योग या तो बहुत दूर लगाए जा रहें हैं या लगाने का केवल बहाना हो रहा है। इससे कई महीनों से कर्मचारी अत्यन्त पीड़ा और दुःख में हैं। एक कर्मचारी ने पिछले साल आत्मदाह भी किया था। कई परिवार दुःखी हैं, पीड़ित हैं, बेकारी और बेचैनी में हैं। उनकी वहां कोई सुनवाई नहीं हो रही है।
उपाध्यक्ष महोदय, मैं वासुदेव आचार्य की इस राय से सहमत तो नहीं हूं कि पर्यावरण की दृष्टि से हटाए गए उद्योगों के सुप्रीमकोर्ट के निर्णय को नलीफाई करने के लिए कोई बिल लाया जाए, लेकिन कार्यकर्ताओं के लिए, कर्मचारियों के लिए जितनी सुविधाओं की उन्होंने मांग की है, वे सारी उचित हैं उन्हें पूरा किया जाए। अगर ये उद्योग बहुत दूर हटाए जा रहे हैं, तो जैसा वासुदेव आचार्य ने कहा कि उन उद्योगों के कर्मचारियों को छह वर्ष का वेतन दिया जाना चाहिए। इसका पूरा प्रयास किया जाना चाहिए कि ये कर्मचारी बेरोजगार होकर सड़क पर घूमने के लिए मजबूर न हों। दिल्ली में रोजगार बहुत बड़ी समस्या है। इनके मन में अगर निराशा होगी, इनके मन में अगर हताशा होगी, तो दिल्ली में कानून और व्यवस्था की बहुत बड़ी समस्या पैदा हो जाएगी और माननीय दृष् टिसे भी यह एक बड़ी भारी दुर्घटना होगी, यदि सरकार उनको हर संभव सहायता नहीं देती, जिसकी वासुदेव आचार्य ने अपील की है।