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वह वित्तमंत्री जो मेरी नज़र में देश को बेच रहा है, उसे दूसरे की इज्जत बेचने का अधिकार नही

संदर्भ: वित्तमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा की गई टिप्पणी पर 29 जुलाई 1993 को लोकसभा में श्री चंद्रशेखर


अध्यक्ष जी, कल जब अविश्वास प्रस्ताव पर मैं बोल रहा था तो भारत के वित्तमंत्री ने बीच में खड़े होकर कहा कि जापान का नगर बसाने का, जापानी सिटी बनाने का जो फैसला था, वह मेरे समय में हुआ था, उसे सुनकर मैं आश्चर्यचकित रह गया। क्योंकि मुझे याद है, आज से 15 वर्ष पहले अरूविले में जब बाहर के लोगों का नगर बस रहा था तो मैंने उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी जी से निवेदन किया था और उसका विरोध किया था। मैं इस विचार को तब से देश के हित में नहीं मानता हूं। इसलिए मुझे आश्चर्य हुआ। लेकिन अगर देश का वित्तमंत्री सदन में उठकर यह कहे, तो मैंने तत्काल यह कहा कि मुझे याद नहीं है, लेकिन अगर यह फैसला मेरी सरकार के समय में लिया गया है तो मैं उसके लिए शर्मिन्दा हूं, लज्जित हूं और आपको उस गलत फैसले को रोक देना चाहिए। उसके बाद मैंने पता लगाया। कभी भी हमारे समय में यह फैसला नहीं हुआ। यह विचार भी नहीं आया।

अध्यक्ष महोदय, उससे भी गंभीर बात यह है कि जब मैंने आज सबेरे वित्तमंत्री जी से पूछा कि मैं सारे लोगों से पता लगा चुका हूं। कभी कहीं मैंने कोई ऐसा निर्णय नहीं लिया है, आपने किस आधार पर यह आरोप लगाया, यह बात कही, तो उन्होंने मुझे जवाब दिया कि जापान और हिन्दुस्तान के उद्योगपतियों ने एक प्रस्ताव ऐसा रखा था और यह प्रस्ताव लेकर वे मेरे पास आए थे। उस वक्त मैंने कहा था कि इसकी फिजिबिलिटी स्टडी करा लीजिए।

अध्यक्ष महोदय, मैं ईमानदारी से कहता हूं, मुझे याद नहीं कि श्री मनमोहन सिंह एज इकौनामिक एडवाईजर मेरे पास आए थे या नहीं, लेकिन मैं उन लोगों में से नहीं हूं जो अपने अधिकारियों द्वारा की हुई बातों को अस्वीकार कर दें।

अध्यक्ष महोदय, अगर मैंने कहा कि फिजिबिलिटी स्टडी करा लीजिए, दो देशों के बीच का मामला था तो क्या फिजिबिलिटी स्टडी कराना कोई निर्णय लेना था और वे वित्तमंत्री आज कहते हैं कि आज भी वह मामला फिजिबिलिटी स्टडी के ही आधार पर है, अभी अन्तिम निर्णय नहीं हुआ है। वित्तमंत्री जी कल आपने जो कहा, उसको आपने किस आधार पर कहा था? इसे लेकर मैं कुछ मौलिक सवाल उठाना चाहता हूं।

अध्यक्ष महोदय, पहला मौलिक सवाल तो यह है कि क्या देश का वित्तमंत्री, जो देश के भाग्य को बनाने वाला अपने को कहता है, जो हमको नहीं, सारे सदन को 1942 में लेकर तेलंगाना मूवमेंट तक और इमरजेंसी तक की कहानियां सिखाता है, वह सबसे बड़ा राजनीतिक इस देश का हो गया, उस बड़े राजनीतिज्ञ को, मैं आपसे, आपकी राय जानना चाहता हूं कि कोई सरकारी अधिकारी के लिए यह उचित है कि सरकारी अध् टिाकारी की हैसियत से जो जानकारी उसको मिली है, उस जानकारी का इस्तेमाल वह राजनीतिक कामों के लिए करे और जो जानकारी बिलकुल असत्य है, बिलकुल निराधार है, किसी आधार पर नहीं है, उसका इस्तेमाल करके भारत का वित्तमंत्री, मेरे जैसे आदमी से सवाल पूछता है और जो सारे देश के अखबारों में आज छपा है, ‘‘उन्होंने बाजी मुझ पर पलट दी’’ क्या यह राजनीति हम करना चाहते हैं?

अध्यक्ष महोदय, मैं आपसे जानना चाहता हूं कि 32 वर्ष से मैं इस संसद में हूं। मैं एक बात जानना चाहता हूं कि मैंने किसी के खिलाफ एक भी व्यक्तिगत आरोप लगाया हो? हमारे कांग्रेस के मित्रों ने कल तालियां बजाई, कल कहा कि आप जो कहते हैं, उसका उल्टा करते हैं। मैं अध्यक्ष महोदय आज आपसे जानना चाहता हूं कि हमारे लिए क्या रास्ता खुला हुआ है? मैंने आपको लिखकर दिया हुआ है। या तो वह वित्तमंत्री देश के सामने और इस संसद के सामने माफी मांगे या मैं चाहूंगा इसको आप प्रिवलेज कमेटी के सामने भेजें और मैं कांग्रेस के मित्रों, खासकर श्री एस.बी.चव्हाण और सीताराम केसरी जी से जो लोग पुराने मेम्बर है, से जानना चाहूंगा कि, क्या इस तरह का सलूक हमारे साथ होगा? वित्तमंत्री आप किसी को बना सकते हो, लेकिन उस वित्तमंत्री की यह हैसियत हो सकती है कि एक झूठ बोलकर हमें सारे राष्ट्र के सामने अपमानित करने की कोशिश करे? मैं इसको अपना अपमान नहीं मानता हूं, इस संसद का अपमान मानता हूं और मैं माननीय नेता विरोधी दल से और दूसरी पाटयों के नेताओं से जानना चाहूंगा कि क्या कोई वित्तमंत्री, जो मेरी नजरों में देश को बेच रहा है, उसको दूसरे इज्जत को भी बेचने का अधिकार है और अध्यक्ष महोदय आप इस पर अपना फैसला दें।

अध्यक्ष महोदय, यह एक साधारण मामला नहीं है। मैं लगातार पिछले दो वर्षों से यह देखता आ रहा हूं। कुछ लोग मुझ पर लांछन लगा रहे हैं क्योंकि कामक नीति के सम्बंध में मेरा अपना दृष्किोण है। अब वित्तमंत्री महोदय कहां हैं? वे सदन में 12ः00 बजे क्यों नहीं आए थे? हम उनकी प्रतीक्षा क्यों करें? क्या वे कुछ भी कह कर बच कर जा सकते हैं? क्या यह कोई तरीका है? अध्यक्ष महोदय, मैं आपको बताना चाहूंगा कि मैं इस मुद्दे पर समझौता नहीं कर सकता। अगर मैं यह कह सकता हूं कि मैं इस सम्बंध में शर्मसार हूं तो मैं इस सम्बंध में सघर्ष के लिए भी तैयार हूं।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।