मुख्यमंत्री सही हैं या गवर्नर, गृहमंत्री सदन के सामने वक्तव्य द
संदर्भ: अत्याचार के सवाल पर 7 मई 1992 को लोकसभा में श्री चंद्रशेखर
अध्यक्ष महोदय, मुझे आपसे एक ही निवेदन करना है। अटल जी ने मजाक के लहजे में कहा लेकिन मैं उसको गंभीरता से लेता हूं। आपके कमरे में क्या होता है, यह बात है कि संसद की कार्यवाही उससे चल सकती है लेकिन देश में जो मानस बनता है, उसका प्रतिकार या संशोधन उससे नहीं हो सकता है। आपने सलाह दी, सलाह अच्छी है, लेकिन संसद की परम्परा है, संविधान में कि कुछ सवाल हैं जो उठाए जाते रहे हैं, उठाए जाते रहेंगे और उठाए जाते रहने चाहिए। वह सवाल चाहे हरिजनों पर अत्याचार का हो, चाहे अल्पमत के साथ अत्याचार का हो, यह सवाल केवल राज्यों का सवाल नहीं है। यह मान्यता है कि इस सदन में कौन से सवाल उठने चाहिए और कौन से नहीं उठने चाहिए। यह बात अगर आप कह देंगे और नेता मान लेंगे तो, इससे गरीब तबके के लोग, उपेक्षित तबके के लोग आश्वस्त नहीं होंगे, इससे जो माईनौरीटीज के लोग हैं, दलित वर्ग के लोग हैं, उनके मन में पीड़ा रहेगी।
मैं उसके बारे में भी कहता हूं। जो सवाल अभी उठा था, जो सवाल आन्ध्र में उठा, एक हरिजन का सवाल था। आज जो हुआ वह माईनौरीटीज का सवाल था। इसलिए मैंने कहा, मैं उसके तफसील में नहीं जाना चाहता।
अध्यक्ष महोदय, अब पता नहीं इन लोगों को क्यों बेचैनी हो रही है। अगर क्रिमिनल है तो आप साबित कर दीजिए कि वह क्रिमिनल है।
‘‘मैं उस व्यक्ति को नहीं जानता लेकिन डा. मुख्तार अहमद अंसारी से लेकर फरीदुल हक अंसारी तक, पिछले 60, 70, 80 वर्षों यह परिवार एक राष्ट्रीय परिवार रहा है और उसका सम्मान उस इलाके में हैं। वह क्रिमिनल होगा, मैं उसके बारे में नहीं जानता लेकिन वह चुना हुआ सदस्य है, इतनी बात मैं मानता हूं। क्रिमिनल तो आप किसी को भी कह सकते है। मुझको भी कह सकते हैं। दूसरी बात मैं आपको यह कहता हूं, मैं नहीं जानता कि क्रष्णा साही जी क्या सवाल उठा रही हैं लेकिन बिहार में मामला दो शासन के विंगों का नहीं है, यह कांस्टीट्यूशनल आथोरिटीज का मामला है, जो संविधान की आॅथोरिटी है। एक गवर्नर है, एक जुडिशियरी है।
आज दुर्भाग्यवश एक बयान आया है, इंटरव्यू है, यह न्यूज नहीं है। हिन्दुस्तान टाइम्स में राज्यपाल महोदय ने एक बयान दिया है, इंटरव्यू दिया है। मैं आपसे जानना चाहता हूं कि क्या ऐसे सवाल पर भी भारत सरकार को मौन रह जाना चाहिए? हम भारत सरकार से यह जानना चाहते हैं कि उसमें क्या वर्सन सही है, क्योंकि इसका सवाल देशभर में उठेगा।
अध्यक्ष महोदय, आज मैं आपसे जानना चाहता हूं कि राज्यपाल एक बात कहें। वह भी तब जब संसद बैठी हुई हो। उस पर संसद चुप रह जाएगी तो इससे लोगों के मन में दुविधा, भ्रम पैदा हो जाएगा। इसका क्या नतीजा होगा?
मैं इसलिए कह रहा हूं कि जब गवर्नर कोई बात कहता है तो उस पर तत्काल गृहमंत्री साहब को बयान देना चाहिए क्योंकि इस तरह की बातों से भ्रम पैदा होगा। मैं नहीं जानता कि वह सत्य है या असत्य है, यह तो वे जानते होंगे लेकिन अगर उनके पास कोई रिपोर्ट है, अगर गवर्नर ने यह बात कही है तो गवर्नर की बातें को किसी अखबार की रिपोर्ट नहीं माना जा सकता। गवर्नर की बात किसी सदस्य के आक्षेप और आरोप या पाटयों का झगड़ा नहीं है इस मामले में या तो गवर्नर सही है या मुख्यमंत्री सही हैं या दोनों में एक। यह फैसला श्रीमान एस.बी. चव्हाण को करना होगा। हम यह नहीं कह सकते कि दोनों सहीं हैं, यह नहीं हो सकता कि अध्यक्ष महोदय हमको सलाह दें और हम इस पर चुप रह जाएं। हो सकता है हम चुप रह जाएं लेकिन देश का मानस इस पर चुप नहीं रह जाएगा।
अध्यक्ष महोदय, मैं बड़ी गंभीरता से आपसे विनय करूंगा कि संसद को सलाह देते समय शांतिमय प्रक्रिया चलाने के लिए संसद को निकम्मा बनाने का काम नहीं होना चाहिए, इसलिए संसद को निष्क्रिय नहीं बनाया जा सकता। जहां गवर्नर और चीफ जस्टिस का मामला हो, उसमें संसद को पूरा अधिकार है, अधिकार ही नहीं बल्कि उसका कर्तव्य है कि उस पर बात करे। गृहमंत्री को इस पर बयान देना चाहिए। अध्यक्ष महोदय, मैं आपसे निवेदन करूंगा कि यह गंभीर सवाल है। इससे लोगों के मन में प्रतिक्रिया बुरी होगी, दोनों तरफ से। इसलिए मामला साफ होना चाहिए और श्रीमान गृहमंत्री जी को इसमें वक्तव्य देना चाहिए। इस पर वक्तव्य देने में कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए। ऐसा नहीं है कि वे कोई अन्तिम सत्य कहेंगे लेकिन जो उनको जानकारी हो, वह जानकारी उन्हें सदन के सामने देनी चाहिए।