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मंत्रीगण संसद के प्राधिकार का उल्लंघन कर रहे हैं , सभा चाहती है आपका मार्गदर्शन

संदर्भ: घाटे में चल रहे सार्वजनिक उपक्रमों के मामले पर 19 दिसम्बर 2000 को लोकसभा में श्री चंद्रशेखर


अध्यक्ष महोदय, सभा आपका मार्गदर्शन चाहती है। प्रतिदिन मंत्रीगण यह वक्तव्य दे रहे हैं कि वे सार्वजनिक उपक्रम बेच देंगे, चाहे वह लाभ अजत कर रहे हों अथवा घाटे में चल रहे हों। वे यह भी दावा करते हैं कि उन्हें अपनी इच्छानुसार मामले पर संसद में विचार-विमर्श अथवा चर्चा के बिना ही कार्य करने का प्राधिकार हे। यह किसी एक विशेष मामले से संबंधित प्रश्न नहीं है। उठाया गया यह प्रश्न इस संसद के प्राधिकार के बारे में है।

यदि मंत्रिगण संसद के प्राधिकार का उल्लंघन करते हैं तो मैं यह चाहूंगा कि आप मार्ग दर्शन करें कि माननीय सदस्यों को क्या करना चाहिए? क्यों उन्हें ऐसे समय में चर्चा की प्रतीक्षा करनी चाहिए जब मंत्रीगण पूरे देश को बेच रहे हों?

मैं इस मामले को नहीं उठाया होता। उच्चतम न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की गई है। इस संबंध में सरकार ने यह वक्तव्य दिया है कि सरकार ने विनिवेश उस समय शुरू किया था जब मैं इस देश का प्रधानमंत्री था। उस समय मैंने विशेष रूप से कहा था कि घाटे में चलने वाली केवल 20 प्रतिशत कंपनियों के प्रबंधन और वित्तीय संस्थानों को बेचा जाना चाहिए ताकि उन कंपनियों के प्रबंधन और वित्तीय स्थिति में सुधार हो सके। यह सरकार झूठी बातें फैलाती जा रही है। यह सरकार संसद के प्राधिकार को चुनौती देती जा रही है। क्या आप सोचते हैं कि हमें इस मामले में चुप रहना चाहिए?

मैं यह नही जानता कि वे कौन से मामले हैं जिन पर संसद में चर्चा की जा सकती है। मैं यह नहीं जानता कि क्या यहां केवल आपसी मतभेद, भ्रष्टाचार से संबंधित प्रश्नों और भोजशाला अथवा बाबरी मस्जिद के संबंध में कतिपय प्रश्नों पर चर्चा की जा सकती है। अध्यक्ष महोदय इस राष्ट्र का सम्पूर्ण भविष्य दांव पर है। मुझे किसी भी व्यक्ति के बारे में कोई आंशका नहीं है, परन्तु इस विभाग के मंत्री ने जोरदार शब्दों में यह कहा था कि इन कंपनियों का विनिवेश नहीं किया जाना चाहिए। परन्तु अचानक ही हम इसमें बदलाव देख रहे हैं। अचानक ही प्रधानमंत्री जी कुछ मंत्रियों और एनडीए के कुछ सदस्यों के साथ बैठक करते हैं। मेरे मित्र आज बहुत जोर-शोर से बोल रहे हैं। परन्तु उनके नेता और मैं यह नहीं जानता कि मुझे क्या कहना चाहिए, मेरे मित्र जो एनडीए के संयोजक हैं, इस सरकार के कार्यकाल में होने वाली सभी घटनाओं को स्वीकार कर ले रहे हैं।

महोदय, इस सभा की सम्पूर्ण गरिमा, सम्मान और प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। इसलिए इस मामले पर हमें आपके मार्गदर्शन की आवश्यकता है। मैंने शुरू में ही यह कहा था कि सरकार का यह कहना कि जो विनिवेश ये अब कर रहे हैं, उस प्रकार का विनिवेश मैंने शुरू कर दिया थाऋ पूरी तरह से गलत है। मैंने कहा था कि हमने घाटे में चल रही कंपनियों के विनिवेश की अनुमति दी थी, जिनके शेयर सरकार की वित्तीय संस्थाओं को बेचे जाने थे।

अध्यक्ष महोदय, क्या यह ऐसा ही है जैसा कि ये आज करने जा रहे हैं? यदि डामल्होत्रा की बात ठीक है तो मैं विशेषधिकार समिति के सामने पेश होने को तैयार हूं। अन्यथा, डा. मल्होत्रा को अपने शब्द वापस लेने चाहिए अथवा वह विशेषाधिकार समिति के सामने पेश हों। आप इस मामले को विशेषाधिकार समिति को भेज सकते हैं।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।