बैंकों के राष्ट्रीकरण की समाप्ति गरीब इलाकों में विकास रोकने की साजिश, वित्तमंत्री नहीं करें यह कार्य
संदर्भ: बैंकों का राष्ट्रीकरण समाप्त करने की कोशिश के मामले पर 13 दिसम्बर 2000 को लोकसभा में श्री चंद्रशेखर
अध्यक्ष महोदय, इन बैंकों के राष्ट्रीकरण की एक लम्बी कहानी है। सन् 1968 में आॅल इण्डिया कांग्रेस कमेटी ने एक प्रस्ताव पास किया था और उसके लिए कांग्रेस में एक आंदोलन चला था। सौ सदस्यों ने इस संसद में उस समय के अध्यक्ष श्री कामराज जी को एक मैमोरेंडम दिया था और उसकी प्रतिलिपि श्रीमती इंदिरा गांधी जी को दी थी। उससे पहले मैंने विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुछ प्रोफेसरों को इस विषय पर अध्ययन करने के लिए कहा था और अध्ययन करके एक पुस्तिका निकाली थी जिसमें बैंकों के राष्ट्रीकरण को देश के विकास के लिए और गरीब जनता और गरीब इलाके के विकास के लिए आवश्यक बताया था। इतनी बातों के बाद बैंकों का राष्ट्रीकरण हुआ था। आज अचानक सरकार उस राष्ट्रीकरण को मिटाना चाहती है। न किसी से इस पर चर्चा हुई है न किसी के साथ इन पर बातचीत हुई है। सरकार का एक तरीका बन गया है और राष्ट्र की संपत्ति को बेचने में सरकार जरा भी हिचक नहीं करती। एक क्षण में ऐसे निर्णय कैबिनेट ले लेती है और किसी को सूचना भी नहीं होती है। हमारे मित्र श्री प्रमोद महाजन जी टी.वी. और रेडियो पर एनाउंस कर देते हैं कि आज कैबिनेट से फलां उद्योग को बेचने का फैसला कर लिया हैं। मैं वित्त मंत्री श्री यशवंत सिन्हा जी से निवेदन करूंगा कि वह बैंकों के राष्ट्रीकरण को समाप्त न करें। यह केवल राष्ट्र की सम्पत्ति को बेचने का सवाल नहीं है, यह देश की मान्यता है। गरीब इलाकों में जो विकास की प्रक्रिया है, उसको रोकने की यह एक साजिश है। मेरा उनसे निवेदन है कि वह विकास की प्रक्रिया से विरत न हों तो अच्छा है।
माननीय अध्यक्ष महोदय, मैंने श्री अरुण शौरी की रिपोर्ट देखी है। उस समय यह निर्णय लिया गया था कि 20 प्रतिशत विनिवेश किया जाएगा और वह भी सार्वजनिक वित्तीय संस्थानों का किया जाएगा न कि निजी क्षेत्र और विदेशी कंपनियों का किया जाएगा। सरकार तथ्यों के साथ खिलवाड़ न करें।