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हमारी सारी संसदीय परम्परा, हमारा सारा राजनीतिक जीवन चन्द लोगों के हाथों में हो गया है कैद, मामले की जांच हा

संदर्भ: प्रियरंजन दास मुंशी को धमकी के मामले पर 25 अप्रैल 2001 को लोकसभा में श्री चंद्रशेखर


उपाध्यक्ष जी, प्रियरंजन दास मुंशी जी ने सवाल उठाया है, यह सवाल बहुत गंभीर है और इस सवाल के ऊपर सरकार को और खासतौर से, उपाध्यक्ष महोदय, आपको उसी गम्भीरता से लेना चाहिए और सरकार को निर्देश देना चाहिए कि इस मामले की पूरी जांच हो। यह पहली बार नहीं है। इस देश में एक विषम स्थिति पैदा हो गई है। जिसकी वजह से बड़े औद्योगिक घरानों की ओर से समय-समय पर सरकार पर दबाव पड़ते रहतें हैं। 1968 में एक परिवार था, जो दबाव डालता था। 1970 के दशक में दूसरा परिवार था। आज एक ऐसा परिवार औद्योगिक घराने का हो गया है, जो सरकार पर दबाव डालता है, संसद पर दबाव डालता है, वित्तीय संस्थाओं पर दबाव डालता है और उसके सामने सब असमर्थ मालूम होते हैं।

प्रियरंजन दास मुंशी जी ने जिस तरफ संकेत किया है, उस पर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि ऐसा लगता है कि हमारी सारी संसदीय परम्परा, हमारा सारा राजनैतिक जीवन कुछ चंद लोगों के हाथों में कैद हो गया है। मैं संसदीय कार्यमंत्री जी से निवेदन करूंगा कि प्रधानमंत्री जी से और गृहमंत्री जी से इस बारे में बात करें, चर्चा करें। मैं नहीं जानता, कैसे इसकी जांच होगी? लेकिन प्रियरंजन दास मुंशी ने जो सवाल उठाया है, यह अकेले उनका सवाल नहीं है। यह देश के भविष्य का सवाल है, संसदीय परम्परा का सवाल है।


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चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।