Phone: 1-800-123-4567

Email:info@example.com

राष्ट्रपुरुष चंद्रशेखर संसद में दो टूक भाग २ राज्यसभा


महोदय इसके पहले कि मैं हरियाणा और बंगाल के बारे में अपने विचार व्यक्त करूं, मैं अपने माननीय मित्र श्री भूपेश गुप्त और उनके सहयोगियों के लिए एक दूसरी दुःख की बात सुनाता हूं। अभी पंजाब के चीफ़ मिनिस्टर ने वहां की विधानसभा में जो घोषणा की है वह पी.टी.आई की खबर यह है किः "Sardar Gurnam Singh, the Punjab Chief Minister, announced in the State Vidhan Sabha to-day that he was resigning." क्योंकि जो उनका समर्थन कर रहे थे, वे उनसे अलग हो गये। श्री सुन्दर सिंह भंडारी ;राजस्थानद्ध ने कहा कि इन दोनों में तुलना नहीं है। जवाब में श्री चंद्रशेखर ने कहा कि तीन सरकारें दो दिन के अंदर गयीं। मेरे मित्र, श्री सुन्दर सिंह भंडारी, यह समझते होंगे कि मुझको इससे प्रसन...

Read More

उपसभाध्यक्ष महोदय, मैं श्री मोहन धारिया जी को इस बात के लिए धन्यवाद देता हूं कि उन्होंने इस समस्या के पर विवाद करने के लिए अवसर दिया। लेकिन इस समस्या का विवाद तभी तक संगत हो सकता हे और उसका अर्थ तब सही मानों में निकल सकता है जब इस प्रस्ताव के साथ श्री दास के उस हिस्से को भी मिलाकर सोचें जो उन्होंने इस सम्बंध में दिया है। अगर श्री धारिया जी और श्री दास जी की भावनाओं को एक साथ जोड़ दिया जाए तो इस देश में नौजवानों की समस्या का समाधान निकल सकता है। अभी हमारे मित्र श्री चोरड़िया जी ने योजना के खि़लाफ़ अपने विचार व्यक्त किये। उन्होंने कुछ अपने तरीके से सीख देने की कोशिश की कि अगर को...

Read More

उपाध्यक्ष महोदय, यह बहुत गलत प्रÿिया है। क्या आप इसे एक सामान्य मामले के रूप में लेते हैं जिसे सामान्य ढंग से लिया जा सकता है? यह मामला श्री पांडे द्वारा सोमवार को उठाया गया था और आज बुधवार है। छह दिन बीत गए हैं। हम यहां पर जनता के प्रतिनिधियों के रूप में बैठे हुए है। जब हम इस मामले को उठा भी नहीं सकते हैं तो हम लोगों के पास कौन-सा मुंह लेकर जा सकते हैं। आप श्री पांडे और हमारी मनः स्थिति को समझिये जो 2,50,000 लोगों का ्रप्रतिनिधित्व करते हैं। वे हमें टेलीग्राम भेज रहे हैं और हम हैं कि अपनी आवाज ही नहीं उठा सकते हैं। मैं आपके द्वारा किसी ध्यान दिलाने की सूचना को उठाने की अनुमति देन...

Read More

उपसभाध्यक्ष महोदय, इस खाद्य समस्या के विवाद के प्रारम्भ में हमारे मित्र माननीय श्री गुरुपद स्वामी जी ने कुछ सवाल उठाये और मुझे आश्चर्य है कि कुछ समाजवादी साथियों ने और हमारे मित्र श्री भूपेश गुप्त ने भी इन बातों को उचित नहीं समझा। श्री गुरुपाद स्वामी जी ने कहा था कि किसी भी पिछड़ी हुई अर्थव्यवस्था वाले देश में अगर विकास करना है तो उसमें शुरू में कुछ कठिनाइयों का मुकाबला भी करना पड़ता है तथा विकास के साथ ही साथ कीमतें भी कुछ बढ़ती हैं। मैं नहीं समझता कि अर्थशास्त्र के किसी भी विद्यार्थी के लिए यह एक ऐसी बात होगी जिसके बारे में कोई विवाद हो। हर आदमी जानता है कि पिछड़ी हुई अर...

Read More

अध्यक्ष महोदय, वाजपेयी जी ने इस सम्बन्ध में जो भावना व्यक्त की है मैं उनका आदर करता हूं। नागालैण्ड में हमारे 32 पुलिस के जवान जिसमें दो-तीन अधिकारी भी हैं, आज जेल के अंदर हैं। उनको जेल में भेजने के पहले इन सारी बातों को ध्यान में नहीं रखा गया जिनको रखा जाना चाहिए थे। ये लोग हमारे देश की सुरक्षा कर रहे हैं, जो कठिन जलवायु और दुर्गम पहाड़ियों में जमे हुए हैं। मैं चाहूंगा कि हमारा परराष्टन्न् मंत्रालय उनके मामले में जानकारी करे और इस बात की कोशिश करेगा कि उनको न्याय मिल सके। उनके साथ जो उचित व्यवहार होना चाहिए वो उनको मिलेगा। दूसरी बात जो मैं कहना चाहता हूं और जिसके बारे में प...

Read More

महोदय, सभापति महोदय ने मुझे सलाह दी थी कि मैं इस प्रश्न को उस समय उठां जब संचार मंत्री यहां उपस्थित हों। यह एक अत्यन्त दुखद्पूर्ण घटना है। इस सभा के एक माननीय सदस्य श्री फरीदुल हक़ अन्सारी, आल इण्डिया इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज़ में दाखिल हैं। कल शाम को उनके डाक्टर ने मुझसे कहा कि मुझे उनके लड़के को तुरंत सूचित कर देना चाहिए। मुझे कुछ मित्रों से पता चला कि उनका लड़का बम्बई है। यह संदेश देने के लिए संसद्-कार्य मंत्रालय की सहायता से मैं कल शाम तक संसद्-कार्य मंत्री के कार्यालय में बैठा रहा। परन्तु कोई उत्तर नहीं मिला। तब मैं घर चला गया। जाते समय जो व्यक्ति वहां मौजूद थे, उन...

Read More

मैं श्री मोहन धारिया का आभारी हूं कि उन्होंने यह संकल्प प्रस्तुत करके हमें इस विषय पर विचार करने का अवसर प्रदान किया। मैं इस संकल्प का पूर्णतया समर्थन करता हूं। मुझे याद है कि जब राष्ट्रमंडल में शामिल होने का प्रश्न उठा था, तब लोगों ने इसका विरोध किया था, परन्तु उस समय महात्मा गांधी ने कहा था कि भारत का विभाजन एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना है और यदि हम भारत और पाकिस्तान के बीच निकट का सम्बंध बनाये रखना चाहते हैं तो इसके लिए कोई माध्यम होना चाहिए। महात्मा जी का विचार था कि ब्रिटेन की कूटनीति हमारी सहायता करेगी और हम उसके माध्यम से पाकिस्तान के साथ अच्छे सम्बन्ध बनाये रख सकेंग...

Read More

उपाध्यक्ष महोदय, मेरे विचार से आज जैसा खेदजनक अवसर कभी भी उपस्थित नहीं हो सकता। यह बड़े खेद की बात है कि एक ऐसी संस्था की, जिस पर देश का भविष्य निर्भर है, इतनी तीव्र आलोचना की जा रही है। फिर भी मेरे कुछ माननीय मित्र उसकी जांच कराने का विरोध कर रहे हैं। मैं अपने पूर्व वक्ता का अपने बड़े भाई के समान आदर करता हूं। मुझे उन प्रयोगशालाओं में से, जिनकी उन्होंने चर्चा की है, कम-से-कम 8-10 प्रयोगशालाओं में जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। मैंने विदेशों की भी कुछ प्रयोगशालाएं देखी हैं इस बात का कोई महत्व नहीं है कि 1947 के पश्चात् इन प्रयोगशालाओं की संख्या में कितनी वृह् िहुई है। देखने की बा...

Read More

उपसभापति महोदया, राष्ट्रपति जी ने जो सम्बोधन इस संसद के समक्ष रखा है, उसमें मैं उनका अभिनन्दन इस बात के लिए करता हूं कि प्रारम्भ में ही उन्होंने संविधान की उन धाराओं की ओर ध्यान दिलाया है जिनके प्रति हम सबने शपथ ली थी। हम ने यह शपथ ली थी कि इस देश के सामाजिक जीवन को और इस देश के राजनीतिक जीवन को उन्नत बनाने के लिए हम सतत प्रयत्नशील रहेंगे। मैं इससे भी एक कदम पीछे जाना चाहूंगा। जब सबसे पहले राज्यसभा की कल्पना मानव के मस्तिष्क में आई तो उस समय क्या हुआ? मनुष्य ने अपने अधिकारों का हनन करके, अपने अधिकारों को छोड़ करके एक संगठन बनाया जिसको हम राज्य के नाम से जानते हैं। 19वी सदी में...

Read More

उपसभापति महोदय, मैं इस प्रस्ताव का समर्थन करने के लिए खड़ा हुआ हूं, जिसको माननीय श्री वाजपेयी जी ने इस सदन के समक्ष रखा है। मुझे इस बात से आश्चर्य हुआ है कि जब इस प्रस्ताव पर सदन में भाषण किये जा रहे थे तो शासन की ओर से, उन पुरानी बातों को दोहराया जा रहा था जिन्हें बार-बार इस सदन में और देश के सामने रखा जा चुका है। यह बात फिर कही गयी है कि यह जो हड़ताल हुई है वह एक राजनीतिक हड़ताल थी। हमारे एक माननीय सदस्य ने तो यहां तक कहा कि इस हड़ताल को कराने का श्रेय, इस हड़ताल को कराने की ज़िम्मेदारी प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के पर थी। मैं आपके द्वारा उन माननीय सदस्य से यह कहना चाहूंगा कि प्रजा सोशलि...

Read More

उपसभाध्यक्ष जी, आज जो यह विवाद हो रहा है, उसमें मैं यह कहना चाहूंगा कि उद्योगों के राष्ट्रीकरण का उद्देश्य केवल यही नहीं होता कि पैदावार बढ़े और मुनाफा हो। इसका मौलिक उद्देश्य यह है कि देश के अर्थतंत्र पर किसका नियंत्रण हो, देश की जो आर्थिक व्यवस्था है, उसका नियंत्रण किनके हाथों में रहे। राष्ट्रीयकरण की बात को चला कर सरकार ने एक ऐसा काम किया है जिससे पूंजीपतियों के हाथों में से निकल कर संपत्ति का नियंत्रण समाज के हाथों में आने लगा है, और इसके लिए मैं सरकार को मुबारकबाद देना चाहूंगा। हमारे एक मित्र यह कहना चाहते हैं कि राष्ट्रीयकरण करने से देश की पैदावार में, राष्ट्रीय उ...

Read More

उपसभापति महोदय, भारत जैसे अविकसित देश में जहां लाखों लोग भूखे मर रहे हैं, यदि प्राथमिकताएं निश्चित न की गयीं, यदि सीमित संसाधनों का उचित दिशा में प्रयोग नहीं किया गया तो मैं नहीं जानता कि इस संसदीय संस्था के लिए क्या आशा की जा सकती है और इस देश के लाखों लोगों के लिए क्या आशा की जा सकती है। मैं माननीय सदस्य श्री लोकनाथ मिश्र को सलाह देता हूं कि वह सरकार पर अपना प्रभाव डालें कि वह आयोजन को न त्यागें बल्कि और दृढ़तापूर्वक उस कार्य को आगे बढ़ायें। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस बात के बावजूद कि प्रधानमंत्री योजना आयोग की अध्यक्ष हैं, यह सरकार योजना आयोग का पथ प्रदर्शन करने मे...

Read More

उपसभाध्यक्ष जी, मैं अपने मित्र माननीय भूपेश जी को इस बात के लिए बधाई देता हूं कि उन्होंने यह विधेयक हमारे सामने प्रस्तुत किया और इस सदन का और देश का ध्यान इस समस्या की ओर आœष्ट किया कि संविधान में यह संशोधन आवश्यक है कि पुराने राजाओं को जो प्रिवीपर्स और विशेषाधिकार मिले हुए हैं उनको समाप्त किया जाये। इस प्रश्न पर पिछले कई सालों से विवाद हो रहा है और गत एक साल के अंदर यह विवाद बहुत तेजी पर रहा है। बाहर भी और सदन के भीतर भी कई बार यह प्रश्न उठाया गया। मैं इसके वैधानिक पहलू पर नहीं जाना चाहता क्योंकि इस बारे में बहुत से लोगों ने अपने विचार व्यक्त किये हैं। हमारे विधि मंत्री म...

Read More

उपसभाध्यक्ष महोदय, मैं श्री भूपेश गुप्त की भावनाओं का जिनके आधार पर उन्होंने इस संकल्प को प्रस्तुत किया है, आदर करता हूं। मैं उनकी इस बात से सहमत हूं कि देश में बड़े-बड़े पूंजीपति तथा राजा-महाराजा संसदीय प्रजातंत्र पर हावी होने का भरसक प्रयत्न कर रहे हैं। मैं इस बात को भी स्वीकार करता हूं कि देश में प्रतिकारात्मक तत्वों को बलवती नहीं होने देना चाहिए तथा सभी प्रकार के विदेशी हस्तक्षेप को रोकना चाहिए। परन्तु मैं उनकी इस बात को समझने में असमर्थ हूं कि देश में किसी व्यक्ति को बिना मुकदमा चलाये नज़रबंद नहीं करना चाहिए। मैं जानता हूं कि सी.आई.ए. विश्व के सभी भागों में कार्य कर ...

Read More

महोदय, मैं अपने मित्र श्री रेड्डी द्वारा रखे गए संशोधनों का समर्थन करता हूं, संयुक्त प्रवर समिति द्वारा इन दो संशोधनों पर व्यापक रूप से विचार किया गया था। मुझे मंत्री महोदय तथा अपने कुछ वरिष्ठ साथियों के इस तर्क को सुनकर आश्चर्य हुआ है कि यदि ठेकेदारों को संसद की सदस्यता के लिए अयोग्य कर दिया जायेगा तो वह मूल अधिकारों का उल्लंघन होगा। रेलवे के छोटे ठेकेदारों और फेरीवालों को चुनाव लड़ने के लिए पहले ही मना किया जा चुका है और लाखों सरकारी कर्मचारियों को, जो केवल नाम-मात्र का वेतन पा रहे हैं, उन्हें भी इस संसद का सदस्य बनने की अनुमति नहीं है। इसे लेकर विधि मंत्री ने कहा है कि...

Read More

माननीय उपाध्यक्ष जी, उत्तर प्रदेश के अध्यापकों की हड़ताल का सवाल कई बार इस सदन के समक्ष आ चुका है। यह अत्यंत दुख की बात है कि शिक्षक, जो हमारी भावी पीढ़ी को बनाने वाले हैं, जिनके पर राष्ट्र का भविष्य निर्भर करता है, उनको कोई ऐसा कदम उठाना पड़े जिसके कारण उन्हें कारागार में जाने के लिए विवश होना पडे़। महोदय, आप जानते हैं आज से नहीं सभ्यता के इतिहास के प्रारम्भ से जब-जब किसी भी देश की सभ्यता और संस्कृति के पर काले बादल मंडराये है तब-तब इन दारूलउलूमों ने इन विद्यामंदिरों ने एक नयी ज्योति, प्रकाश की, आशा की नयी किरण प्रदान की है। यदि इन विद्यामंदिरों के अध्यापकों के दिल खुद बैठे हो...

Read More

उपाध्यक्ष महोदय, मैं फिर से श्री एम.एस. धारिया की बात दोहराना चाहता हूं कि यह एक गम्भीर मामला है। जब भी भारत सरकार पर प्रभाव डाला जाता है, वे केंद्रीय सरकार के कर्मचारियों के वेतन तथा महंगाई भत्ते में वृह् िकर देते हैं लेकिन एक ही नगर में कार्य कर रहे राज्य सरकार के कर्मचारियों को उसका लाभ नहीं मिलता। इसके परिणाम स्वरूप राज्य कर्मचारियों में ईष्र्या उत्पन्न होती है। संवैधानिक न सही लेकिन अन्तर मनोवैज्ञानिक है। संविधान के अनुसार देश के विकास अथवा आथक व्यवस्था में जब भी असंतुलन हो, केंद्रीय सरकार का कर्तव्य है कि उसे दूर करे, संविधान के अनुच्छेद 249 के अनुसार भी राष्ट्री...

Read More

महोदय, माननीय श्री अर्जुन अरोड़ा ने कहा है कि सामाजिक नियंत्रण का प्रयोग बड़े प्रयोजन के लिए किया जाता है। यह ‘‘सामाजिक नियंत्रण’’ शब्दों के अर्थ का सवाल नहीं हैं। यह सारे सामाजिक ढांचे को रूपान्तरित करने का सवाल है। आज सरकार जिस तरह से सोच रही है, उसका विचार स्थिति को यथावत बनाये रखने का है। वह सामाजिक रूपान्तरण नहीं चाहती है। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि जिन उद्योगपतियों का इन बैकिंग संस्थाओं पर नियंत्रण है वे इस विधान का विरोध कर रहे हैं क्योंकि संसार में सभी जगहों पर सामाजिक रूपान्तरण का सदैव कड़ा प्रतिरोध हुआ है। यह कहना गलत है कि भारतीय रिजर्व बैंक को अधिक ...

Read More

महोदय, श्री लोकनाथ मिश्र ने एक बहुत ही गम्भीर सवाल उठाया है। माननीय प्रधानमंत्री ने इस संसद को तथा राष्ट्र को आश्वासन दिया था कि भारत आक्रमण की निंदा करने में अडिग रहेगा अथवा उन्होंने जो भी शब्द प्रयुक्त किये हों और हम देखेंगे कि चेकोस्लोवाकिया की स्वतंत्रता, इज्ज़त और गरिमा की रक्षा करने के लिए उसके पक्ष का प्रभावपूर्ण तरीके से समर्थन करेंगे। जो कुछ भी लोकनाथ मिश्र ने कहा है, यदि वह सही है तो यह सारा वाद-विवाद तब तक निरर्थक है जब तक कि इस का बात स्पष्टीकरण नहीं दिया जाता है। महोदय, जो लोग वैदेशिक कार्य मंत्रालय को चला रहे हैं, उनकी इस बात को सुनकर आश्चर्य होता है कि निंद...

Read More

उपाध्यक्ष महोदय, मैं इस प्रस्ताव के सम्बंध में कुछ कहना नहीं चाहता था लेकिन हमारे माननीय दो सदस्यों ने जो भाषण दिये प्रोफेसर मुकुट बिहारी लाल और श्री जीरामचंद्रन ने, उसके बाद मैने यह आवश्यक समझा कि मैं इस सम्बंध में अपने विचार व्यक्त करूं। आज देश में सबसे बड़ी समस्या यह है कि जो भी वास्तविक समस्याएं राष्ट्र के सामने हैं उनका समाधान करने के लिए हम लोग स्पष्ट रूप में सामने नहीं आते। मैं ऐसा समझता हूं कि सहकारी आंदोलन और खास तौर से कृषि क्षेत्र में जिसकी आज चर्चा की जा रही है, वह मौलिक रूप से एक राजनैतिक आंदोलन है। अगर स्वतंत्र पार्टी के लोग उसका विरोध करते हैं तो अचेतन रूप...

Read More

उपाध्यक्ष महोदय, मैं प्रस्तावक महोदय को बधाई देता हूं कि उन्होंने यह अवसर दिया कि हम इस विषय पर इस सदन में चर्चा कर सकें। इस विषय की महत्ता के सम्बंध में कई सदस्यों ने अपने विचार प्रगट किये हैं और विशेष रूप से भारत की बढ़ती हुई जनसंख्या और बढ़ती हुई बेकारी को देखते हुए यह समस्या हमारे लिए और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। सन् 1961 की जनगणना को अगर हम लें, तो 43 करोड़ 90 लाख लोगो में, जो इस देश में बसते थे, 42.98 प्रतिशत ऐसे लोग थे, जिनको काम चाहिए, जिनको हम भारत का वकंग फोर्स कह सकते हैं। 57 फीसदी मर्दों की तादाद है और 28 फीसदी औरतों की तादाद इसमें शामिल है। जो समय अनुमान लगाया गया था, तखमीना लगाया ...

Read More

माननीय उपसभाध्यक्ष महोदय, आज इस देश का चित्र मिला-जुला हुआ चित्र है। एक ओर जहां निराशा के काले बादल हैं, वहां पर भावी भविष्य के लिए सुनहरी किरणें भी दिखाई पड़ती हैं। यह सही है कि हमारे राष्ट्रपति महोदय का अभिभाषण उसी दिशा में एक संकेत है और उसी चित्र का चित्रण है। हमारे कई मित्रों ने, विरोधी पक्ष से और इस ओर ध्यान आकषत किया है। यह सही है कि जहां पर हमारे देश का एक बड़ा हिस्सा विदेशी के कब्ज़े में है, वहां पर 16 हज़ार और 14 हज़ार फुट की ऊंचाई पर मुस्कुराते हुए हमारे नौजवान हैं, जो उस अंधेरे में भी एक प्रकाश हमारे दिलों में संचारित करते हैं। यह सही है कि जहां देश में विघटनकारी ताकतें ह...

Read More

उपसभाध्यक्ष महोदय, मैं रेल मंत्री को केवल इसलिए मुबारकबाद देता हूं कि हिन्दुस्तान की आथक अवस्था जहां सब तरफ से बिगड़ी हुई है, जहां चारो ओर अंधेरा दिखाई पड़ता है, उसमें कुछ रोशनी नज़र आती है तो रेलवे विभाग में नज़र आती है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि रेलवे विभाग जिस तरह से चल रहा है और रेल का काम जिस तरह से इस देश में चलाया जा रहा है, वह ठीक तरह से चलाया जा रहा है। आप अगर इस वर्ष के बजट की अनुमानित आय को देखें तो ऐसा लगता है कि पिछले वर्षों की आमदनी में कमी हुई है। यही नहीं, जिस तरह रेल का काम चलाया जाता है और जिस तरह रेल की क्षमता दिन-प्रतिदिन गिरती जा रही है, वह भी एक बड़ी भयंकर स्थित...

Read More

उपाध्यक्ष महोदया, मैं दुख के साथ इस विवाद में पड़ने के लिए विवश हुआ हूं। इससे पहले कि जिस विश्वविद्यालय का यह विधेयक है, उसके और हिस्सों की ओर जां, मैं सबसे पहले उस ओर आपका ध्यान आœष्ट करना चाहूंगा जिसका ज़िक्र माननीय प्रो. वाडिया ने अभी किया है। मैं प्रो. वाडिया साहब से बहुत नम्र शब्दों में निवेदन करना चाहूंगा कि उत्तर प्रदेश के सदस्यों को सार्वदेशिक भावना अंगीकार करने की सलाह देने से पहले उनको और उनके जैसे अन्य मित्रों को अपने दामन को खुद देखना चाहिए। मैं यह गर्व के साथ कहता हूं और मुझे इस बात का फश् है कि इस सारे देश में मैं नहीं कहता कि दूसरे प्रदेश पिछड़े हुए हैं, लेकिन उ...

Read More

उपाध्यक्ष महोदय, इस प्रश्न पर विचार करते समय हमें शुगर मिलों के इतिहास पर थोड़ा ध्यान देना होगा और पिछले वर्षों में हमारी सरकार ने जो नीति अपनाई है, उस पर भी दृष्टिपात करना होगा। हमारे कई मित्रों ने यह प्रश्न उठाया कि उत्तर प्रदेश और बिहार की जो मिलें हैं, वे आथक ढंग से ठीक नहीं चल रही हैं। यह प्रश्न केवल उन्हीं मित्रों के सामने नहीं है बल्कि सारे देश के सामने यह प्रश्न है कि उत्तर प्रदेश और बिहार की जो मिलें हैं, वे आथक ढंग से ठीक चल रही हैं या नहीं। सन् 1960 के आसपास जब पहले पहल शुगर उद्योग हमारे देश में प्रारम्भ हुआ था तब उत्तर प्रदेश और बिहार में ही मिलें लगी थीं। उस समय जिन ...

Read More

उपाध्यक्ष महोदय, किसी भी पिछड़े देश में खास तौर से भारत जैसे पिछड़े देश में जहां जनता को राजनैतिक अधिकार मिले हुए हैं आथक विकास के लिए किसी योजना का चलाना बड़ा कठिन काम होता है। आज़ादी आने के बाद स्वाभाविक रूप से देश में रहने वाले लोगों की आकांक्षाएं उभरती हैं। वे समझते हैं कि उनके सुख और समृह् िके लिए सब कुछ किया जाना चाहिए। तीसरी पंचवर्षीय योजना की जो भूमिका लिखी गयी, उसके प्रारम्भ में ही यह कहा गया कि इस योजना का केवल एक मन्तव्य है कि इस देश के लोग क्रमिक रूप से, धीरे-धीरे, समृह् िकी ओर, विकास की ओर अग्रसर हो सकें। इतने बड़े देश में जहां सैकड़ों वर्षों तक गुलामी के दिनों में दे...

Read More

उपसभापति महोदया, मैं माननीय खाद्य मंत्री के भाषण का उस हद तक स्वागत करता हूं जिस हद तक कि उन्होंने देशी उत्पादन पर बल दिया है और देश के लोगों से अपील की है कि वे सहयोग दें। कोई भी देश, चाहे वह कितना छोटा क्यों न हो, दान पर जीवित नहीं रह सकता और भारत जैसा देश तो जिसकी जनसंख्या 48 करोड़ हो, बिल्कुल भी ऐसा नहीं कर सकता। यह अच्छी बात है कि निरन्तर दो बार सूखा पड़ने के बाद भारत सरकार के रवैये में परिवर्तन हो गया है। अब वह यह महसूस करने लगी है कि हमें अपने अन्न के लिए विदेशी मंडियों पर निर्भर नहीं करना चाहिए। अतः सरकार के रवैये में यह परिवर्तन स्वागत योग्य है। किन्तु इस परिवर्तन का तब त...

Read More

उपाध्यक्ष महोदय, मैं इस संशोधन का विरोध करता हूं। विरोध इस कारण से नहीं करता कि कोई राज्य सभा के अधिकारों की रक्षा की भावना है, केवल एक भावना से इसका विरोध करता हूं कि सिद्धांत का हनन नहीं होना चाहिए। पिछली बार जब यह विधेयक सामने आया तो उस समय हमने यह कहा था कि सिद्धांतों के अनुसार हिन्दू शब्द इस नाम में नहीं रहना चाहिए। इस पर विवाद उठता था। मुझे आश्चर्य होता है कि बहुत से विचारक लोग यह कहते हैं कि यदि जन मत तैयार न हो तो ऐसे संशोधन और ऐसे सुधार लाना कोई समझ की बात नहीं होती है। इस सिलसिले में उन्होंने महात्मा गांधी का भी नाम लिया। मैं आपसे कहना चाहता हूं कि महात्मा गांधी ने...

Read More

महोदय, माननीय भूपेश गुप्त के भावुकतापूर्ण भाषण का मुझे दुख है। मेरे पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। मैं यह मानता हूं कि अगर उपसभापति महोदय, जैसा कि श्री भूपेश गुप्ता जी ने कहा है कि संकटकालीन स्थिति है तो सारे देश के लिए है, देश के किसी एक भाग के लिए नहीं हो सकती। अगर संकटकालीन स्थिति मिजो की पहाड़ियों में है, अगर संकटकालीन स्थिति नगालैण्ड में है, अगर संकटकालीन स्थिति नक्सलवाड़ी में है तो वह संकटकालीन स्थिति भारत के एक-एक नागरिक के लिए है, एक-एक प्रदेश के लिए है, एक-एक नगर और एक-एक गांव के लिए है। मार्च में जब माननीय गृहमंत्री ने आश्वासन दिया था कि पहली जुलाई से यह संकटकालीन स्थ...

Read More

उपसभापति महोदय, यह आश्चर्य की बात है कि मामला जब प्रवर समिति के पास गया तब प्रवर समिति ने विधेयक के किसी खंड अथवा उसकी किसी धारा में संशोधन करना उचित नहीं समझा। मेरे मित्र ने अभी इस विधेयक की धारा 36 एडी का ज़िक्र किया है जो अत्यंत विवादास्पद धारा है। इस उपबंध को सारा बैकिंग उद्योग चिन्तित है। महोदय, इस विधेयक में 36एडी का उपबंध करना न केवल अनावश्यक प्रतीत होता है वरन् पूर्णतया अन्यायपूर्ण है क्योंकि विधेयक के उद्देश्य से यह सिह् होता है कि यह एक सामाजिक नियन्त्रण विधेयक है। ऐसा प्रतीत होता है कि यह बैकिंग संस्थाओं पर सामाजिक नियन्त्रण नहीं चाहता किन्तु यह कर्मचारियों ...

Read More

उपसभापति महोदय, इससे पहले कि मैं इस बिल पर अपने विचार व्यक्त करूं, मैं सबसे पहले इस बिल को लाने वाले माननीय योगेश चन्द्र चटर्जी जी का अभिनन्दन करता हूं कि उन्होंने इस आवश्यकता को महसूस किया कि हमारे देश में जो यह व्यवधान पैदा हो गया है कानून के क्षेत्र में, उसको समाप्त किया जाये। श्रीमन्, माननीय योगेश चन्द्र चटर्जी का सारा क्रांतिकारी जीवन और उनके सारे जीवन का इतिहास इस बात का साक्षी है कि उन्होंने सही मायने में समझा कि एक क्रांतिकारी युग की आवश्यकता क्या होती है। उन्होंने यह भी समझा कि इस देश में जो आज़ादी की लड़ाई हुई उसे मंज़िल तक पहुंचाने के लिए हमें क्या-क्या काम करने ...

Read More

उपसभापति जी, आपके आदेश से मैं, इसके पहले कि इस बिल के बारे में कुछ कहूं, उस पुराने इतिहास की ओर इस सदन की नज़र ले जाना चाहूंगा जिसके चलते इस बिल की ज़रूरत पड़ी। 1957 में सरकार को यह अहसास हुआ कि बनारस हिन्दू यूनिवसटी में जो कुछ चल रहा है, वह ठीक नहीं है। उस समय मुदालियर कमेटी बनायी गयी और हमारे मित्र माननीय भूपेश गुप्ता जी ने उस तरफ इशारा किया। उस कमेटी की जो रिपोर्ट आयी, उसके बाद कोई भी व्यक्ति, जिसका उस विश्वविद्यालय से किसी भी प्रकार का सम्बंध रहा है, उसका सिर लज्जा से झुक जाता है। मैं इस तफ़सील में नहीं जांगा कि रिपोर्ट कहां तक जायज़ थी और कहां तक नाज़ायज थी। लेकिन मैं ऐसा समझता हूं ...

Read More

माननीय उपसभाध्यक्ष महोदय, माननीय भूपेश गुप्ता ने यह सच ही कहा है कि यह सवाल कानून का उतना नहीं है जितना राजनीति का प्रश्न है। मैं भी इसको राजनैतिक दृष्टि से ही लेना चाहूंगा। मैं आपके द्वारा माननीय भूपेश गुप्त से कहना चाहता हूं कि संसदीय जनतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा तब पैदा होता है जब जम्हूरियत का इस्तेमाल करके, उसमें बड़े ओहदे पर बैठे हुए लोग जम्हूरियत को खत्म करने की बात करते हैं। महोदय, माननीय त्रिलोकी सिंह ने अपने भाषण के प्रारम्भ में कहा कि मंत्रियों ने जो ऐलान करके कानून तोड़ने की बात की उससे वह सहमत नहीं हैं। लेकिन प्रश्न केवल असहमति का नहीं है। प्रश्न यह है, कि यह क...

Read More

उपसभाध्यक्ष महोदय, श्री भूपेश गुप्त जी ने आंकडे़ प्रस्तुत करके मेरा काम आसान कर दिया है। मैं केवल इस प्रश्न के व्यापक पहलू पर ही विचार व्यक्त कंरूगा। यदि हम एकाधिकारी को अपार धन संचय करने की पूरी छूट दे दें तो इसमें व्यक्ति का दोष नहीं, पह्ति का या प्रणाली का दोष है। बिड़लाओं की पृथक रूप से हम इसलिए आलोचना कर रहे हैं कि इस क्षेत्र में इनका कोई प्रतिद्वंद्वी ही नहीं है। संविधान के अनुच्छेद 39 (ख) तथा (ग) में स्पष्ट रूप से यह दिया गया है कि भौतिक साधनों के नियंत्रण तथा स्वामित्व का वितरण इस प्रकार किया जाना चाहिए जिससे सामान्य जनों के हित में सहायता मिले और आथक प्रणाली का क्रि...

Read More

उपाध्यक्ष महोदय, इस विषय पर बोलने में पहले मुझे थोड़ा संकोच था, क्योंकि विधान और नियम की जानकारी मुझे कम है। कानून का न तो मैं पंडित हूं और न इसका कोई विद्यार्थी रहा हूं, लेकिन खासतौर पर कानून मंत्री महोदय का भाषण सुनने के बाद मेरी झेंप कुछ कम हो गयी। मुझे अफ़सोस के साथ कहना पड़ता है कि हमारे विधि विधाओं ने, कानून के जानने वाले लोगों ने, इस सवाल को केवल एक पहलू से सोचा है। पालयामेंट में और सुप्रीम कोर्ट में थोड़ा फर्क होना चाहिए। दोनों के सोचने के तरीके में और दोनों जगहों पर विवाद करने के तरीके में भी फर्क होता है। मैं मानता हूं, जैसा कि हमारे याजी जी ने कहा कि देश की सुरक्षा के ल...

Read More

उपाध्यक्ष महोदय, मैं प्रारम्भ में ही यह प्रकट कर देना चाहता हूं कि मैं उन सब कदमों के साथ हूं जो कि जखीराबाजों और मुनाफाखोरी करने वालों के खिलाफ उठाए जाए लेकिन जिस प्रकार से यह अध्यादेश लाया गया और इसके पहले भी जिस तरह से नियमों का पालन किया गया जो कि सरकार ने खुद बनाये है, उससे संदेह होता है कि इन नियमों का पालन भी कहां तक होगा? इसी दृष्टिकोण से मैं माननीय अटल बिहारी वाजपेयी को बधाई देना चाहता हूं कि जनसंघ ऐसी पार्टी से ताल्लुक रखते हुए भी, उसके नेता होते हुए भी, कभी-कभी वे अच्छी बातें कहते हैं। मैं यह बात इसलिए कह रहा था कि मैं भी श्री वाजपेयी जी की तरह नहीं समझ सका कि यह अध्...

Read More

उपाध्यक्ष महोदय, प्रœति का प्रकोप और मानव की पीड़ा का किसी को दर्शन करना हो तो वह राजस्थान के उन पश्चिमी इलाकों में जाये जिनका ज़िक्र हमारे मित्र मिर्धा साहब और सुन्दर सिंह भंडारी जी ने किया है। यूं सारे देश में और सभी प्रदेशों में दूसरे क्षेत्र सूखे से पीड़ित है, लेकिन जो अवस्था आज राजस्थान की है, वैसी शायद अन्य प्रदेशों के किसी हिस्से में नहीं होगी। मुझे भी पिछले 10-15 वर्षों में प्राœतिक विपदाओं में जहां लोग पीड़ित हैं, वहां जाने का मौका मिला है। पिछले दिनों में जो अनुभव मैंने राजस्थान में किया, मेरे जीवन में वैसा अनुभव कभी नहीं हुआ था। मैं कभी सोच भी नहीं सकता था कि बीस वर्ष...

Read More

उपाध्यक्ष महोदय, मैं आपकी अनुमति से निम्नलिखित संकल्प सदन के समक्ष उपस्थित करता हूं। इस सभा की यह सम्मति है कि सरकार की निर्यात-आयात नीति पर विचार करके उस पर एक प्रतिवेदन देने के लिए संसद सदस्यों तथा विशेषज्ञों की समिति का गठन किया जाना चाहिए।’’ "The house is of opinion that a Committee consisting of Members of Parliament and experts should be constituted to examine the export-import policy of the Government and to submit a report thereon." महोदय, आज देश के सामने जो आथक संकट है और जिसका ज़िक्र इस सदन में और सदन के बाहर बार-बार हुआ है। उसको देखते हुए मैंने यह आवश्यक समझा कि इस विषय पर विचार करने के लिए सदन को प्रेरित करूं। इस बात की प्रेरणा कि इस प्रस्ताव को मैं आपके समक्ष और सदन के समक्ष रखूं,...

Read More

उपसभापति महोदय, मैं आपके माध्यम से श्री करमरकर को आश्वासन दिलाना चाहता हूं कि लोक लेखा समिति प्रत्येक व्यक्ति के लिए सद्भाव तथा विचारपूर्ण रूख रखती है और विशेषकर भारत सरकार के मंत्री अथवा सचिव का तो और भी ध्यान रखती है। लोक लेखा समिति के पचासवें तथा पचपनवें एवं छप्पनवे प्रतिवेदन में यह व्यक्त किया है कि इस मामले में माननीय मंत्री का निर्णय समझा नहीं जा सका। मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि वित्तीय अपराधों के इतिहास में इससे बुरा अपराधिक मामला दूसरा नहीं मिलेगा। जून, 1963 के आदेश के लिए श्री सुब्र२णयम बधाई के पात्र है। ये फर्में हिन्दुस्तान स्टील के लिए कुछ माल जापान से ...

Read More

उपसभापति महोदय, सर्वप्रथम मैं यह जानना चाहता हूं कि किस कारण से मंत्री ने उसे काम का आदमी समझा। मैं समझता हूं कि श्री दुरायराजन एक काम का आदमी है और सभी प्रकार की सहायता का पात्र है। यह तार की भाषा अंग्रेज़ी है लेकिन यह स्पष्ट है कि वह एक काम का आदमी है? किस प्रकार उसे काम का आदमी समझा गया? फाइल पर यह लिखने का क्या विशिष्ट कारण है कि वह एक काम का आदमी है। माननीय मंत्री को इस बात का स्पष्टीकरण देना चाहिए। महोदय, मैं जानना चाहता हूं कि क्या वह उसी रूप में काम के आदमी हैं, जिस रूप में श्री अमीनचंद प्यारेलाल थे? दूसरी बात यह है कि मंत्री के पी.ए. द्वारा एक अन्य पत्र दिनांक 16-9-62 को टाइप ...

Read More

उप सभापति महोदय, मुझे इस बात पर बहुत दुख है कि सरकार ऐसे-ऐसे सहयोग करारों की अनुमति देती है। यह केवल आथक प्रश्न या विदेशी सहयोग का प्रश्न नहीं है। यह तो मनोवैज्ञानिक प्रश्न है। हमें स्वदेशी पर बल देना चाहिए। बिस्कुट के निर्माण में सहयोग प्राप्त करने में क्या तुक है? आम आदमी जो बिस्कुट खाता है वह तो आज भी जगह-जगह पर स्थानीय तौर पर बना लिया जाता है। फिर यह कहा गया है कि यह विदेशी निर्यात के लिए है। परन्तु क्या हम खाद्य सामग्री का निर्यात करने की स्थिति में हैं भी। हमारे नेता बार-बार यह कह रहे हैं कि खाने की आदतें बदली जाएं। तो क्या उसमें बिस्कुट खाना शुरू करने की बात भी शामि...

Read More

महोदय, मेरा यह उद्देश्य कदापि नहीं है कि मैं इस गम्भीर विषय को विवाद और कटु आलोचना का विषय बनां, लेकिन यह जरूर कहना चाहूंगा कि खाद्य राज्य मंत्री ने वास्तविकता एवं भयावह स्थिति की परवाह न करते हुए कल सदन में जो कहा उसमें समझदारी का संकेत नहीं है। जब वह अपनी बात सदन में कह रहे थे तब इस देश की जनता के समक्ष यह छाप छोड़ रहे थे कि देश में सभी कुछ ठीक तरह से चल रहा है। उनके द्वारा देश को यह दिखाने का प्रयास किया गया क्योंकि विगत चार वर्षों में इस सदन में खाद्यान्न के विषय में कोई चर्चा नहीं की गई, खाद्यान्न के मोर्चे पर यह घटित होना आसाधारण बात है। मैं खेद के साथ कहता हूं कि मंत्री ज...

Read More

उपसभापति महोदय, मैं आपकी इजाजत से सदन में अपनी कुछ बातें रखना चाहता हूं। माननीय मंत्री महोदय बार-बार यह कह रहे हैं कि कम्युनिस्ट पार्टी एक प्रोपेगंडा के तहत उन्हें बदनाम करने का कुचक्र रच रही है। मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि माननीय मंत्री महोदय, ऐसा क्यों कह रहे हैं। मेरा मानना है कि कोई भी सरकारी उद्योग हो या निगम हो, वह तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक वहां काम करने का बेहतर माहौल नहीं बनाया जाता। अभी तक देखने में यह आया है कि सरकार अपनी सुविधा के अनुसार वहां पर सब कुछ करती है। मुझे बहुत खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि माननीय मंत्री महोदय बेवजह कम्युनिस्ट पार्टी का नाम लेकर उसे ...

Read More

उपाध्यक्ष महोदय, मैं माननीय मंत्री जी को बधाई देना चाहता हूं कि वह एक ऐसे प्रस्ताव को सदन में लाए हैं जिसे दस वर्ष पहले लोकसभा में डा. लंका सुन्दरम ने दिसम्बर 1953 में उठाया था। आज एक बार फिर दस साल बाद वही सवाल उठाया गया है और उस पर चर्चा की जा रही है। 1953 में लंका सुन्दरम ने इस सवाल को लोकसभा मे उठाते समय कई महत्वपूर्ण और प्रासंगिक बिन्दुओं की तरफ सदन का ध्यान आकषत किया था। महोदय, मैं आपकी अनुमति से लंका सुन्दरम के उस भाषण के कुछ अंश यहां प्रस्तुत करना चाहता हूं क्योंकि कल मेरे मित्र श्री कासलीवाल ने कई बिन्दुओं पर अपनी आपत्ति दर्ज करवाई थी। महोदय, अगर प्रधानमंत्री पंडित जवा...

Read More

मैडम, मैं क्षमा के साथ अपनी दाहिनी तरफ बैठे मित्रों के कहने पर अंग्रेज़ी में अपनी बात रखने जा रहा हूं। माननीय सदस्य श्री तारिक जी ने जो बिल पेश किया है, मैं उसका समर्थन करता हूं। जब यह बिल पेश हुआ था, तब कई सदस्यों ने इस पर संदेह जताया था। इस बिल पर सवाल उठाए गए थे। कि इससे भारतीय परम्पराओं को ठेस पहुंचेगी, एक सदस्य ने तो यहां तक कहा कि हमारे भारत के ग्रामीण इलाके रहने वाले लोग की जो वर्षों पुरानी आदत है, वह इससे प्रभावित होगी। कल प्रधानमंत्री जी ने कहा कि वह भारत के स्वाभाव को परिवतत करना चाहते हैं। मैडम, जब कोई समाज प्रगति की राह पर आगे बढ़ना चाहता है तो वह नए रास्ते पर चलने के ...

Read More

उपसभापति महोदय, मैं इस बिल पर अपनी बात रखने के लिए आपकी इजाजत चाहता हूं। इस बिल को संसद के दूसरे सदन में रखते हुए माननीय मंत्री जी ने कुछ इस तरह कहा था कि यह एक अनोखा बिल है। इसके समर्थन में किसी भी सदस्य ने सदन में कुछ नहीं कहा। यह राय है, माननीय मंत्री महोदय की जिन्होंने इस बिल को सदन में पेश किया। मैं नहीं जानता कि माननीय मंत्री जी ने सदन में ऐसा वक्तव्य क्यों दिया? यह बिल अभी संसद से पारित होने की प्रक्रया में है। पक्ष-विपक्ष इस बिल के विरोध और समर्थन में अपनी बात रखेगा। बिल पर लम्बी बहस होगी। उसके बाद ही यह बिल संसद से पास हो सकेगा। विपक्ष को छोडिए, इस पर कांग्रेस पार्टी क...

Read More

उपसभापति महोदय, मैं केवल एक मिनट में उत्तर प्रदेश की एक समस्या की ओर माननीय स्वास्थ मंत्री जी का ध्यान दिलाना चाहता हूं। तृतीय पंचवर्षीय योजना में यह निश्चित किया गया था कि उत्तर प्रदेश मे कुल 42 टी.बी. क्लीनिक्स खोले जाएं और जिनमें लगभग 28 टी.बी. क्लीनिक्स आज उत्तर प्रदेश में चल रहे है। आश्चर्य और दुःख की बात यह है कि 28 टी.बी. क्लीनिक्स में से 02 क्लीनिक्स ऐसे है, जिनमें एक्स-रे और लेबोरेटरीज की फैसिलिटीज जो हैं, वे प्राप्य हैं। बाकी 26 टी.बीक्लीनिक्स में डा.क्टर हैं, वहां पर सरकार की ओर से दवा है, लेकिन न वहां पर एक्स-रे की केाई सुविधा है और न वहां पर लेबोरेटरीज की कोई फैसिलिटी है...

Read More

Recent Posts

संपर्क सूत्र

फोन नम्बर: +91-9415905877
ई-मेल: mlcyashwant@gmail.com
Website: www.chandrashekharji.com

दारुल सफा 36/37 बी-ब्लाक,
विधानसभा मार्ग,
लखनऊ,
उत्तर प्रदेश

फोटो गैलरी

चंद्रशेखर जी

राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ - छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करनें लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों ? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है , लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।