एक प्रणाम

इसलिए कहता हूँ उन्हें राष्ट्रपुरुष

आम राय है कि अप्रिय सत्य नहीं बोलना चाहिए। स्पष्ट और बेवाक राय रखने वाले लोग भी ऐसी स्थिति आने पर चुप रहना श्रेष्ठ समझते हैं। खासतौर से सियासी दुनिया में। मामला वोट के व्यापक नुकसान का हो या भीड़ के खिलाफ का तो बड़े- बड़े दिग्गज भी चुप रहने को ही सच मान लेते हैं। लेकिन, अध्यक्ष जी यानी पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर ऐसे राजपुरुषों में नहीं थे। उन्हें सच को लेकर किसी तरह का समझौता स्वीकार नहीं था।...