मैैैदानेेे इंतहां सेेे घबरा केेे हट न जाना,
तकमील जिंदगी है, चोेेटों पेेे चोट खाना।
अब अहलेे गुलिस्ता कोे शायद न होे शिकायत,
मैंनेेे बना लिया है, कांटों में आशियाना।
ये शेर अक्सर चन्द्रशेखर जी अपने करीबियों और चाहने वालों को सुनाया करते थे। जिसमें उनका व्यक्तित्व दिखाई पड़ता है। वह जीवन भर समाज में बदलाव और एक नया भारत बनाने का संकल्प लिए थे। आन्दोलन और पदयात्राएँ इसी दिशा में कदमताल थे। बलिया के इब्राहिम पट्टी से देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी तक उनकी सादगी, और उस सादगी में चट्टान जैसा व्यक्तित्व चन्द्रशेखर जी का रहा। देश का स्वाभिमान और सम्मान उनके दोनों कंधे थे, तभी तो सोने की चमक उन्हें विचलित नहीं कर सकी थी।
चन्द्रशेखर जैसा व्यक्तित्व देश की थाती है। यह भारत की शक्ति और सामथ्र्य है कि कहीं भास्कराचार्य पैदा हुए तो कहीं बुद्ध। तुलसी हुए, तो कबीर। सामाजिक सरोकारों और देश की आजादी के लिए गाँधी पैदा हुए तो समाजवाद को जमीन पर लाने और नये भारत के निर्माण के लिए चन्द्रशेखर। ये उपलब्धियाँ जीवंत सामाजिक-सांस्कृतिक व्यवस्था की देन हैं। चन्द्रशेखर ताउम्र आम आदमी की आवाज थे। सबके दोस्त थे। मददगार थे। ये सब गुण एक संत में होते हैं। सही मायने में वह राजनीति के संत थे। जो उनसे एक बार मिला, उन्हीं का बन कर रह गया। चाहे उसकी विचारधारा अलग रही हो या दल की चैखट। ऐसे व्यक्तित्व की यादों को, विचारों को जन-जन तक पहुँचाने का संकल्प किया भाई यशवंत सिंह ने। भारतीय राजनीति में आज के दौर में माना जाता है कि उसे पूजो, जो है। लाभ-हानि का गणित बैठाया जाता है। उगते सूरज को प्रणाम किया जाता है। पर अपने देश में एक संस्कृति यह भी है कि डूबते सूरज को भी अध्र्य दिया जाता है। आस्था को प्रणाम किया जाता है। भाई यशवंत उसी आस्था के प्रतीक हैं। तभी तो चन्द्रशेखर उनके दिलोदिमाग में रचे-बसे हैं।
2014 में जननायक चन्द्रशेखर पुस्तक के जरिए उन्होंने चन्द्रशेखर के विचारों को लोगों तक पहुँचाया था। उनकी यादों और विचारों का इतना बड़ा खजाना है कि भाई यशवंत ने इस बार राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर के माध्यम से उस शृंखला को जारी रखने का महायज्ञ शुरू किया। इस महायज्ञ में छात्र राजनीति से पत्रकारिता में दखल रखने वाले कवि हृदयी भाई धीरेन्द्र नाथ श्रीवास्तव शामिल हुए। और फिर उन्होंने मुझे आवाज दी साथी साथ निभाना....। ‘राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर’ पुस्तक की परिकल्पना करते समय यह ध्यान रखा गया कि उनकी जिन्दगी के अनछुए पहलुओं को रेखांकित किया जाए। इस महायज्ञ में देश के जानेमाने राजनेताओं, पत्रकारों और विचारकों ने अपनी समिधा दी है।
चन्द्रशेखर जी अपनों को कभी भूलते नहीं थे। छोटा हो या बड़ा, उनके सुख-दुःख के साथी होते थे। चन्द्रशेखर जी के इस पक्ष को दो घटनाओं से समझा जा सकता है। एक भाई यशवंत सिंह का है, जब उनके पीछे यू.पी. की बसपा सरकार और उसकी पुलिस पड़ी थी। यशवन्त जी चन्द्रशेखर के पास पहुँचे तो उन्होंने अपने भांेड़सी आश्रम में खुद उनके रहने, खाने, पहनने तक की व्यवस्था का जिम्मा सम्भाला। जब बसपा सरकार गिर गई, तब यशवंत जी आश्रम से निकले। दूसरा गाजीपुर से है। चन्द्रशेखर यात्रा पर थे, उन्हें जानकारी मिली कि समाजवादी वीरेंद्र सिंह का निधन हो गया है। वह अपनी राजनीतिक- यात्रा स्थगित कर अन्तिम संस्कार तक वहाँ रुके रहे।
मुंशी प्रेमचंद और लमही का जिक्र करता चलूँ। जिस मिट्टी का मैं भी एक कण हूँ। चन्द्रशेखर प्रेमचंद के उस लड़ाकूपन के कायल थे, जो उन्होंने अपनी कहानियों में सामाजिक व्यवस्था, जात-पात, छुआछुत के खिलाफ लड़ा था। ‘यंग इंडिया’ का संपादन करते हुए चन्द्रशेखर जी ने मुंशी प्रेमचंद की उसी लकीर को आगे बढ़ाया था। ‘राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर’ पुस्तक को पाँच खंडों में रखा गया है। पहले खंड में राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर के उद्गार हैं, जो उन्होंने समय-समय पर प्रकट किए हैं। दूसरे खंड में उनसे जुड़ी यादें और विचार हैं। तीसरे खंड में राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर की कहानी, उनकी जुबानी हैं। इस खंड में उनके जीवन की वे बातें हैं, जिनसे आमजन अब तक अछूता रहा है। चैथे खंड में उन लोगों के बारे में है जिन्हें चन्द्रशेखर जी कभी अपनी यादों से निकाल नहीं पाए। पाँचवें खंड में इस बात को मजबूती से रेखांकित किया गया है कि चन्द्रशेखर राष्ट्रपुरुष क्यों हैं। और यही इरादा इस पुस्तक का शीर्षक है। जननायक से राष्ट्रपुरुष तक की जो तपस्या यशवंत जी की है, वह भी शक्ल लेती है। चन्द्रशेखर जी के पास जो आता था, उसका स्वागत गुड़ और पानी से होता था। भारतीय जन-संस्कृति की यह परम्परा चन्द्रशेखर जी की चैखट पर सदैव रही। इस पुस्तक में वही गुड़ और पानी की मिठास आपको मिलेगी।
इस पुस्तक के प्रकाशन के साथ एक और उपलब्धि बताना जरूरी है। चन्द्रशेखर के जन्म दिन (17 अप्रैल) पर उत्तर प्रदेश सरकार ने सार्वजनिक अवकाश की घोषणा की है। इसके लिए उत्तर प्रदेश सरकार और उसके मुखिया माननीय अखिलेश यादव को कोटि- कोटि साधुवाद!
अन्त में सभी लेखकों और सहयोगियों को नमन! जिनके समिधा से यह महायज्ञ पूर्ण हुआ है।
-दिनेश दीनू
आम राय है कि अप्रिय सत्य नहीं बोलना चाहिए। स्पष्ट और बेवाक राय रखने वाले लोग भी ऐसी स्थिति आने पर चुप रहना श्रेष्ठ समझते हैं। खासतौर से सियासी दुनिया में। मामला वोट के व्यापक नुकसान का हो या भीड़ के खिलाफ का तो बड़े- बड़े दिग्गज भी चुप रहने को ही सच मान लेते हैं। लेकिन, अध्यक्ष जी यानी पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर ऐसे राजपुरुषों में नहीं थे। उन्हें सच को लेकर किसी तरह का समझौता स्वीकार नहीं था।...