राष्ट्रपुरुष के उद्गार

Chandrashekhar

प्रधानमंत्री के रूप में राष्ट्र के नाम प्रथम संदेश

मेरेेे देशेे के लोगोेें! आप आज की शक्ति और कल की आशा हैं और इसीलिए आपसे निवेदन करने के लिए मैं आया हूँ। देश कठिनाई में है। सबसे बड़ी कठिनाई है कि हमारे लोगों का विश्वास टूट रहा है। देश की समस्याओं का समाधान अगर करना है तो इस विश्वास को फिर से पैदा करना होगा। लोगों में हमें एक नये उत्साह, एक नये साहस की आवश्यकता है। इसी के सहारे कल का हिन्दुस्तान बनेगा। अगर नया भारत बनाना है तो पहला काम यह है कि हमें आपस में लड़ना बंद करना होगा। गरीबी, भुखमरी, बेकारी, बेरोजगारी आज हमारे समाज को ग्रसित किये हुए है। कैसे हम इससे छुटकारा पा सकेंगे, यदि भाई- भाई से लड़ता रहेगा।

गैट समझौता : समर्पण का दस्तावेज (लोकसभा में भाषण, 30 मार्च, 1994)

इसलिए मैं कहता हूँ कि यदि भारत का भविष्य बनेगा तो आत्म- गौरव के आधार पर बनेगा। भारत का भविष्य बनेगा तो यहाँ की जनशक्ति, यहाँ के लोगों के मनोबल के आधार पर बनेगा। यहाँ जितनी प्राकृतिक सम्पदा है, उस पर जब करोड़ों लोगों के हाथ लगेंगे, उनके मन में इच्छा शक्ति होगी, तब भारत का भविष्य बनेगा। जिस तरह आज संसद में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की वकालत की गयी, मैं समझ नहीं पा रहा था कि भारत का वित्त मंत्री बोल रहा है या किसी बहुराष्ट्रीय कम्पनी का कोई प्रवक्ता बोल रहा है। मुझे समझना बड़ा मुश्किल हो रहा था।

पाँचवे सार्क सम्मेलन (मालदीव) में व्याख्यान (21 नवम्बर, 1990)

अपने मेजबान महानुभावों का, विशेषकर अपने मित्र राष्ट्रपति श्री गयूम का कृतज्ञ हूँ जिन्होंने हमारा भावपूर्ण सम्मान किया और शानदार खातिरदारी की। हम मालदीव में मिल रहे हैं जो सौंदर्य और शांति का धाम है। मुझे आशा है कि यहाँ के वातावरण का स्वस्थ प्रभाव पड़ेगा और हमारे इस सांझे प्रयास का फल रचनात्मक एवं और अधिक सार्थक होगा।

अध्यक्ष महोदय, मैं आपके यहाँ आये अन्य सभी राज्य तथा शासन प्रमुखों का कृतज्ञ हूँ जिन्होंने इस सम्मेलन को दो दिन के लिए स्थापित करने की हमारी प्रार्थना पर तत्काल ध्यान दिया। यह सकारात्मक पहल हमारे सहयोग की भावना की परिचायक है और यह भावना हम सब में बनी रहनी चाहिए।

सार्क सम्मेलनेे में समापन व्याख्यान (23 नवम्बर, 1990)

खुशी है कि आज तीन दिन रहने के बाद हम आपसे प्रसन्नतापूर्वक विदाई ले रहे हैं। दुःख इस बात का है हमने सोचा नहीं था कि तीन दिन इतनी जल्दी बीत जायेंगे। यहाँ कुदरत ने जो कुछ दिया है और आपके मन में जितना प्यार, मोहब्बत और आदर है उससे हम सब लोगों का दिल भरा हुआ है। हम सदा याद रखेंगे अपने जीवन में जो आपने इस्तकबाल किया है, जो आपने मोहब्बत दिखाई है, यह स्वागत, यह सत्कार, यह सद्भावना हमारे जीवन में हमेशा याद रहेगी।

भारत की सामर्थ्य (29 नवम्बर, 2000 त्रिवेणी सभागार, तानसेन मार्ग, नई दिल्ली)

समाजवाद को समझने के दृष्टिकोण के बारे में मेरी मान्यताएँ बहुत कुछ बदली हैं। मैंने जिस युग में राजनीति में प्रवेश किया था, उस समय मेरी मान्यताएं कुछ दूसरी थीं, जिसको इन्होंने समाजवादी मान्यताओं के रूप में परखा है, कहा है। धीरे- धीरे राजनीति की उथल-पुथल ने और जीवन की अनुभूतियों ने हमें बहुत कुछ सोचने को विवश किया और आज जो मैं कहने जा रहा हूँ उसमें कुछ लोगों को शायद अटपटा लगे, क्योंकि मुझे यह स्वीकार करने में जरा भी संकोच नहीं कि महात्मा गाँधी के व्यक्तित्व को हम समाजवादियों ने शायद उस रूप में नहीं समझा था जिस रूप में समझने की आवश्यकता थी।