बड़े मजेदार आदमी थे मोहम्मद मुस्तफा

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उस समय के मेरे साथियों में कुछ का व्यक्तित्व बेहद दिलचस्प था। ऐसे ही थे एक मोहम्मद मुस्तफा। आजादी की लड़ाई में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे बड़े मजेदार आदमी थे। वे 1942 में जेल चले गए थे। इस बीच उनके पिता का निध्ान हो गया। मुस्तफा का घर लगभग बिखर गया। लेकिन किसी तरह पैसा जुटा कर उन्होंने एम.ए. के प्रथम वर्ष में दाखिला लिया। वे मुस्लिम छात्रावास में रहते थे। एम.ए. अन्तिम वर्ष में वे तीन महीने तक क्लास से अचानक गायब रहे। वे अर्थशास्त्र के विद्यार्थी थे। उनके टीचर थे प्रोफेसर रूद्रा। रूद्रा साहब ने जब उन्हें काफी दिनों बाद देखा तो उन्हें टोका: मिस्टर मुस्तफा, विल यू प्लीज सी मी इन माई आॅफिस, आफ्टर दी पीरियड? साथियों के बीच सन्नाटा छा गया। हमने सोचा, मुस्तफा गया काम से। लेकिन मुस्तफा के चेहरे पर जरा भी परेशानी नहीं थी। उसने लगभग चुनौती भरे अन्दाज में कहा, देखिए, आज कैसे पटकी देता हूँ रूद्रा साहब को। वे रुद्रा साहब के पास गए। उन्होंने गंभीर आवाज में पूछा: ‘मिस्टर मुस्तफा, व्हाई डिड यू नाट अटेंड माई क्लासेस फाॅर थ्री मंथ्स?’ इस पर मुस्तफा ने दुःखी होने का अभिनय करते हुए कहा: ‘सर, माई फादर वाज सीरिअली इल।’ ‘व्हाट हैंप्पंड टू हिम? मुस्तफा ने लगभग रोनी-सी आवाज में कहा: ‘अनफाॅरचुनेटली ही डाइड।’ वर्षों पहले उनके पिता का निध्ान हो चुका था, लेकिन मुस्तफा ही उस मुत्यु को हाल में हुआ बता सकते थे। मुस्तफा के द्वारा यह दुःखद सूचना देने पर प्रोफेसर रूद्रा ने कहा: ‘वैरी साॅरी, माई सीरियस कंडोलेंस, प्लीज आस्क दी क्लर्क टू ब्रिंग रजिस्टर।’ क्लर्क रजिस्टर ले आया। प्रोफेसर रुद्रा ने अपने हाथ से उनकी अनुपस्थिति को उपस्थिति में तब्दील किया। प्रोफेसर रूद्रा से यह काम कोई देवता भी नहीं करा सकते थे। लेकिन जब प्रोफेसर रूद्रा अपनी कुर्सी से उठने लगे तो उन्होंने बड़े मजेदार आदमी थे मोहम्मद मुस्तफा ध् 297 298 ध् राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर मुस्तफा से कहा: ‘मिस्टर मुस्तफा, नाउ बी पंक्चुअल, लेट योर फादर नाट डाई अगेन।’ इससे मुस्तफा साहब बहुत लज्जित हुए और हम लोग सारी जि़न्दगी इस बात पर चिढ़ाते रहे। मेरे मित्र काशीनाथ मिश्र और उनके बीच गाली-प्रतियोगिता होती थी। मुस्तफा की जुबान पर हमेशा गाली रहती थी। मजाक में वे कहते थे, हमारी रगों में चंगेजी खून बहता है। हमने ही सोमनाथ को लूटा था। व्यंग्य और अभिनय में न मालूम और क्या-क्या बोलते थे! हम लोगों को बहुत मजा आता था। काशीनाथ मिश्र उनसे गाली-प्रतियोगिता में हार जाते थे। प्रतियोगिता के दौरान मुस्तफा ने एक बार कहा: पत्तलचट्टू पंडित! तुम लोगों के पास है ही क्या? भिखमंगे हो! भीख से तुम्हारा पेट चलता है। बेचारे काशीनाथ पंडित निरुत्तर हो जाते थे। हार जाते थे। एक दिन मुस्तफा ने कहा कि आज काशीनाथ मिश्र मुसलमान बनेंगे और मैं ब्राह्मण बनूँगा। काशीनाथ ने कहा- ठीक है, मैं तैयार हूँ। गाली-प्रतियोगिता शुरू हुई। काशीनाथ ने कहा: पहले मैं गाली दूँगा। मुस्तफा ने उत्तर दिया- ठीक है, पहले आप गाली दीजिए। काशीनाथ ने तो सारी गालियाँ मुस्तफा से ही सीखी थीं। उन्होंने उन्हीं से सुनी हुई गालियाँ उन्हीं को देनी शुरू कीं। कहा, मेरी नसों में चंगेजी खून बहता है. ...मैंने तुम्हारे सोमनाथ को लूटा....। वे मुस्तफा के सारे पुराने डायलाग बोलने लगे। मुस्तफा की तुरंत बुद्धि का कोई जवाब नहीं था। मुस्तफा ने पंडित काशीनाथ को अचानक बीच में टोका: ‘अरे मियाँ, तुम क्या बोलोगे! तुम मुस्लिम लोग तो रिश्ते में अपनी बहन से ही विवाह कर लेते हो।’ मुस्तफा की इस एक तर्कयुक्त गाली से काशीनाथ की बोलती बन्द हो गई। इसके बाद वे मुस्तफा को माँ-बहन की गाली देने लगे। वे भूल ही गए कि यह प्रतियोगिता एक अभिनय मात्र थी। वे अब भी पंडित हैं, मुस्लिम नहीं। हम लोग गाली-प्रतियोगिता की इस परिणति पर देर तक हँसते रहें। मोहम्मद मुस्तफा को भारत से गहरा लगाव था। पाकिस्तान से उनको आॅफर आया कि उन्हें पाकिस्तान पुलिस सर्विस से पूर्वी पाकिस्तान (बंगलादेश) से सीध्ो सुपरिंटेंडेंट बना दिया जाएगा। इस प्रस्ताव की जानकारी देने वे मेरे पास आए और बोले: मैं सर जाऊँगा लेकिन पाकिस्तान नहीं जाऊँगा। उनके घर की माली हालत अच्छी नहीं थी। लोगों से पैसा इकट्ठा करके हम उनके घर अनाज पहुँचाते थे। एक दिन हमने तय किया कि मुस्तफा की नौकरी के लिए जयप्रकाश जी से कहा जाए। मैंने जयप्रकाश जी से कहा तो उन्होंने लाल बहादुर शास्त्री के लिए एक सिफारिश पत्र लिख दिया। वे रेलमंत्री थे। लालबहादुर जी ने मुस्तफा के आवेदन पत्र की कापी रेल मंत्रालय को भेजी होगी। साल-डेढ़ साल बीत गए। बाद में मुस्तफा के परिवार की हालत और भी खस्ता हो गई। इसी दौरान जयप्रकाश जी विश्राम राय के चुनाव में आजमगढ़ आए। हमने वहाँ जे.पी. से मिल कर कहा कि मुस्तफा साहब का काम नहीं हुआ। उनको अब तक नौकरी नहीं मिली। जे.पी. थोड़े विस्मित हुए, फिर उन्होंने अपना पैड निकाला और रफी अहमद किदवई को एक पत्र लिखा: माई डिअर रफी साहब, इफ वी कैन नाट गिव हिम ए जाब, टू ए मैन लाइक मुस्तफा, फ्रीडम हैज नो मीनिंग टू दिस कंट्री। मुझे जे.पी. का यह वाक्य आज भी याद है। फिर अन्त में लिखा: प्लीज लेट मी नो, इफ यू आर नाट एबल टू डू एनीथिंग, आई शैल राइट टू भाई साहब (जवाहरलाल जी)। चिट्ठी लेकर मुस्तफा साहब रफी अहमद किदवई के यहाँ गए। रफी अहमद ने चिट्ठी पढ़ी। उन्होंने मुस्तफा साहब से पूछ आपने क्या पढ़ाई की है? मुस्तफा ने कहा: एम. ए. तक पढ़ा हूँ। रफी साहब ने फिर उनसे कुछ औपचारिक बातें कीं, कहाँ ठहरे हैं, आदि। उनके सामने ही जे.पी. की चिट्ठी फाड़ कर फेंक दी। इसके बाद रफी साहब मुस्तफा से यह कहते हुए चले गए कि आते रहिए। मिलते रहिए। थोड़े दिनों के बाद मुस्तफा फिर उनसे मिलने गए। फिर वही बात: मिलते रहिए, आदि। ऐसी ही एक मुलाकात के दौरान उन्होंने अपने सेक्रेटरी को कुछ इशारा किया। जब रफी साहब चले गए तो उनके सेक्रेटरी ने मुस्तफा को सौ-दो सौ रुपए दिए। दो-चार दिन बाद मुस्तफा फिर रफी साहब से मिलने गए। उन्होंने सेक्रेटरी से कहा कि मुस्तफा साहब का सामान यहीं ले आओ। वे अब हमारे साथ ही रहेंगे। वे रफी साहब के घर में रहने लगे। रफी साहब उन्हें खाने के समय साथ बिठा कर खिलाते थे। थोड़े दिन इसी तरह गुजरे। एक दिन मुस्तफा ने अचानक रफी साहब से कहा कि मैं खाना खाने के लिए यहाँ नहीं आया हूँ। मेरे लिए नौकरी की व्यवस्था हो जाए तो आप मुझे खबर दे दीजिएगा। मैं आ जाऊँगा। रफी साहब बोले: अरे मुस्तफा साहब, आप नाराज हो गए। मैं सोचता था कि इण्डियन एयरलाइन्स नेशनलाइज होने वाली है। इसमें कोई अच्छा जाॅब दिला दूँगा। लेकिन आप नाराज क्यों होते हैं? मैं कुछ और करता हूँ। वहीं देवबन्द शुगर फैक्टरी का मालिक बैठा था। रफी साहब ने उनसे कहा: मुस्तफा साहब हमारे दोस्त हैं। इन्हें ले जाइए और बड़े मजेदार आदमी थे मोहम्मद मुस्तफा ध् 299 300 ध् राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर फिलहाल कोई नौकरी दे दीजिए। उस समय वे 150 रुपए महीने पर फैक्ट्री में रख लिए गए। कुछ समय बाद रफी साहब नहीं रहे। मुस्तफा साहब ने मुझे चिट्ठी लिखी कि रफी साहब के न होने से देश का जो नुकसान हुआ सो हुआ लेकिन मैं तो उजड़ ही गया। रफी साहब के गुजर जाने के एक महीने के अन्दर देवबन्द शुगर मिल के मालिक ने मुस्तफा साहब को नोटिस दे दिया कि आपके लिए अब यहाँ कोई काम नहीं है। आपको बिना पद के ही रख दिया था। मुस्तफा ने मुझे फोन किया। फिर चिट्ठी लिखी कि उन्हें नोटिस मिल गया है। मुस्तफा के लिए मैंने कोई और व्यवस्था करने की सोची। निजी तौर पर सी.बी. गुप्ता से मेरा परिचय नहीं था, फिर भी मैंने उन्हें फोन किया। मैंने उनसे कहा, मुस्तफा साहब फ्रीडम फाइटर हैं। रफी साहब के जरिए देवबन्द शुगर फैक्टरी में इनको नौकरी लगी थी। मिल के मालिक ने उनके मरने के बाद मुस्तफा को निकालने का नोटिस दे दिया है। गुप्ता जी बोले: अच्छा, निकालने का नोटिस दिया! ठीक है, देखता हूँ। इसके बाद सी.बी. गुप्ता ने शुगर फैक्टरी मालिक को फोन करके कहा कि तुमने रफी साहब के आदमी को नौकरी से क्यों निकाला? उन्हें तुरन्त वापस लो वरना तुम्हारी फैक्टरी बन्द हो जाएगी। इस तरह मुस्तफा साहब की अनेक दिलचस्प कहानियाँ हैं...।

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