इण्टरमीडिएट में बना छात्र काँग्रेस का सदस्य

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मैट्रिक पास करने के बाद मैंने नौकरी के लिए न्यायालय में अर्जी दी। मेरे चाचाजी के एक दोस्त कोर्ट में मुंशी थे। उन्हीं के कारण अर्जी दी। लेकिन उस नौकरी के लिए 18 साल की उम्र जरूरी थी। मेरी उम्र उससे थोड़ी कम थी। इसलिए संयोग से वह नौकरी मुझे नहीं मिली। वैसे मुझ पर कोई जिम्मेदारी नहीं थी। लेकिन मैंने इतना जरूर सोचा कि अगर पढ़ नहीं पाए तो नौकरी करनी ही होगी। जब नौकरी नहीं मिली तो मेरे चचेरे भाई ब्रजनन्दन सिंह ने इण्टरमीडिएट में मेरा नाम लिखवा दिया। आगे की शिक्षा में उन्होंने मेरी मदद की। उस समय हम सब लोग एक साथ रहते थे। बाद में छोटे भाई कृपाशंकर और हरिशंकर भी बलिया में ही पढ़े। मेरे बड़े भाई रामनगीना सिंह के ज्येष्ठ पुत्र गिरिजा शंकर भी वहीं पर पढ़ रहे थे और ब्रजनन्दन सिंह के बेटे राध्ोश्याम भी। बलिया के सतीश चंद्र कालेज का मैं छात्र था। गौरीशंकर राय वगैरह भी इस डिग्री कालेज में थे। इण्टरमीडिएट तक आते-आते मैं राजनीतिक दृष्टि से बहुत सक्रिय हो गया था। इलाके में सोशलिस्ट पार्टी का जोर था। जब इण्टरमीडिएट में पढ़ रहा था तभी से मैं छात्र काँग्रेस का सदस्य था। उस समय काँग्रेस और सोशलिस्ट, दोनों का एक ही युवा संगठन था।

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