इलाहाबाद विश्वविद्यालय के मित्र

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इलाहाबाद विश्वविद्यालय के साथी भी अक्सर याद आते हैं। उनमें से अध्ािकांश अब नहीं रहे। उनमें था रामकिशोर दत्त। एक परिवार के एक सदस्य जैसा। जूनियर इंजीनियर हो गया था। उनके संघ का पदाध्ािकारी भी था। मेरे बिना जाने मुझे भी कई सालों तक अध्यक्ष पद पर बनाए रखा। जब तक रहा, एक समर्पित जि़न्दगी जी। ईमानदारी के साथ काम किया और साथ ही अपने साथियों का संगठन बना कर उस वर्ग में एक नई सामाजिक चेतना पैदा करने का काम किया। अपने सहयोगियों की आशा का केन्द्र चला गया- सबको रोता-बिलखता छोड़ कर। उसका हँसमुख भोलाभाला चेहरा आज भी आंखों के सामने रहता है। उन दिनों के कितने ही साथी-सहयोगी सदा के लिए बिछुड़ गए-उरई के जमींपाल सिंह सेंगर, बांदा के ललन सिंह, भिण्ड के वृहदबल कुशवाहा, महोबा के सोमनाथ शर्मा। कितने उल्लास भरे थे इलाहाबाद विश्वविद्यालय के वे दिन, जब हम सबने मिल कर एक नये समाज के निर्माण का सपना देखा था। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के दिनों की याद आती है तो उससे जुड़ा हुआ है सन्तबक्श का नाम, जो कभी भुलाया नहीं जा सकता। कितना शिष्ट, साथ ही कितना मेध्ाावी। समाजवादी आन्दोलन में आए तो फिर अपनी उस राजशाही की जेहनियत को छोड़ कर, जिससे मुक्त होना बहुतों के लिए कठिन हो जाता है। एक सामान्य साथी-सा व्यवहार, छोटे-बड़े का ख्याल-उम्र के नाते, ध्ान और सम्पदा के आध्ाार पर नहीं। जब बाद में संसद सदस्य बने तो उस समय भी वहीं चिरपरिचित मुस्कान, वही मृदुल स्वभाव। जनता दल के दिनों में वे चुनाव नहीं लड़ सके जिसका उनके मन पर सदमा रहा। जिसके सम्पर्क में भी सन्तबक्श आए, उसे आकृष्ट कर लिया। ताया जिकिन्स उनके प्रशंसकों में थीं। 1965 में जब हम लोग इंग्लैण्ड के दौरे पर गए थे तो उन्होंने एक सवाल पूछा था कि यदि जयप्रकाश जी और विनोबा भावे जैसे लोग कश्मीर में लोगों को अपने भविष्य का निर्णय करने का अध्ािकार देना चाहते हैं तो आप इसे क्यों नहीं स्वीकार कर लेते? मेरे एक मित्र इन दोनों महापुरुषों की आलोचना करने लगे। बीच में ताया जिंकिन्स ने टोक कर कहा कि इस प्रश्न का उत्तर वे मुझसे चाहती हैं। जय प्रकाश जी के प्रशंसक के रूप में वे मुझे जानती थीं। 1955-56 में मुझसे लखनऊ प्रजा सोशलिस्ट पार्टी कार्यालय में मिली थीं। यह मुलाकाता सन्तबक्श ने ही कराई थी। वे उस समय लीवर ब्रदर्स में काम करते थे। सवाल अंग्रेजी में था। मैं प्रायः ऐसे अवसरों पर चुप ही रहता था, पर प्रश्न सीध्ाा मुझसे था और जे.पी. के बारे में था, इस कारण उत्तर देना आवश्यक हो गया। मैंने तुरंत अंग्रेजी में ही उत्तर दिया: ‘‘विनोबा भावे एण्ड जे.पी. आर ग्रेट संस आॅफ इण्डिया। दे टेक इन्सपीरेशन फ्राॅन गाॅड आल माइटी डायरेक्टरली। वी गेट आॅवर इन्सपीरेशन फ्राॅम पीपुल आॅफ इण्डिया। सो द डिफरेन्स इज आवियस।’ सारा हाॅल तालियों से गूंज उठा और ताया जिंकिन्स ने कहा, ‘वेरी क्लेवर’। बात समाप्त हो गई। सन्तबख्श के साथ और अनेक यादें जुड़ी हुई हैं। विश्वविद्यालय में रामअध्ाार पाण्डेय और पद्माकर लाल समाजवादी आन्दोलन के प्रमुख स्तम्भ रहे। पाण्डेय जी का संघर्षशील व्यक्तित्व और पद्माकर लाल की बैठकबाजी हम लोगों के संगठन को शक्ति देने में समर्थ थी। पद्माकर में लोगों को प्रभावित करने की अद्भुत क्षमता थी और रामआध्ाार में हर चुनौती के समय संघर्ष की शक्ति।

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