रघुपति सहाय फिराक उसमें बोलने आए, मैं उस सभा की अध्यक्षता कर रहा था। फिराक साहब क्या बोल देंगे, इसका अनुमान लगाना कठिन था। मैं डर रहा था कि हम लोगों पर ही न बरस पड़ें। सभा शुरू हुई। दो-तीन लोग ही बोले थे कि अचानक फिराक साहब ने कहा- अब वे बोलेंगे। उन्हें भला कौन रोकता। उन्होंने अपनी तकरीर शुरू की। कहा, जनाब सदर और दोस्तों। आज मैं एक तारीखी तकरीर करने जा रहा हूँ। एक ऐतिहासिक बात कहूँगा- आप में से किसी को नहीं मालूम। सदर मोहतरम, आपको भी नहीं मालूम। मैं डरा कि मेरी शामत आई। पर उन्होंने जो भाषण दिया, वह सुन कर सब दंग रह गए। उन्होंने कहा कि पहली बार इस मुल्क की इन्टेलेक्चुअल वर्किंग क्लास की लड़ाई में उसकी हिमायत करने के लिए उतरे हैं। यह अलामत है इस बात की कि अब इस मुल्क में इन्कलाब नजदीक है और फिर उन्होंने इन विषय पर माक्र्स के विचारों के आध्ाार पर जिस योग्यता और वेग से भाषण दिया, उससे एक बार माहौल ही बदल गया। ऐसे थे वे दिन और वे थे सियासत के बारे में लोगों के ख्यालात। अब यह सब यादों में ही रह गया। उन दिनों इलाहाबाद में नेता थे शालिग्राम जायसवाल, छुन्नन गुरु, कुन्दन गुरु और नर्मदा प्रसाद। मजदूर-क्षेत्र में भी अनेक लोग थे, अब तो सब बदल गया।