अली सरदार जाफरी का प्रसंग

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काशीनाथ मिश्र का निराला ढंग और लोगों को चिढ़ाने की अद्भुत शैली। काशीनाथ विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष थे। छात्रसंघ एक कवि सम्मेलन-मुशायरा आयोजित कर रहा था। उन्होंने अध्यक्ष की हैसियत से अनेक लोगों को पत्र लिखा। सम्मेलन में आने का न्यौता दिया। उन्होंने उसी सिलसिले में अली सरदार जाफरी को भी पत्र लिखा था। उसके उत्तर में उन्होंने लिखा कि वे सम्मेलन में आ सकते हैं, यदि उन्हें हवाई जहाज का टिकट भेजा जाए। उस समय बम्बई से इलाहाबाद के लिए कोई वायु-सेवा नहीं थी। दिल्ली में भी जो जहाज आता था, वह ध्ाीमी गति से चलता था और फिर दिल्ली से इलाहाबाद ट्रेन से आना पड़ता था। काशी नाथ ने उन्हें पत्र लिखा कि ऐसा लगता है कि आपके पास समय की कमी नहीं है, केवल छात्रसंघ का अध्ािक पैसा खर्च कराना चाहते हैं। मेरी सलाह है कि आप एक बैलगाड़ी कर लें। दो बैलों की जोड़ी का प्रचार करते इलाहाबाद पहुँच जाएं। उतना ही पैसा लग जाएगा। छात्रसंघ का पैसा भी खर्च हो जाएगा और काँग्रेस का चुनाव-प्रचार भी हो जाएगा। 1952 के चुनाव होने वाले थे। अली सरदार जाफरी बहुत नाराज हुए और उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी के लोगों को नाराजगी में एक पत्र लिखा कि इलाहाबाद छात्रसंघ का अध्यक्ष किस किस्म का आदमी है? उन्होंने शायद उस पत्र का विवरण भी भेजा था। मेरे दो कम्युनिस्ट मित्र आर.के. गर्ग और आसिफ अंसारी मेरे पास आए और बड़ी नाराजगी से बोले कि काशीनाथ की गुंडई वे लोग अब सहन नहीं करेंगे। मुझे मालूम नहीं था कि बात क्या है? मैंने काशीनाथ को बुलाया कि ये लोग नाराज क्यों हैं? बात क्या है? काशीनाथ हँसते रहे और अत्यंत निर्दोष मुद्रा में कहा कि उन्होंने कोई गलती नहीं की। इन्हीं से पूछिए, नाराज क्यों हैं? मुझे यह जरूर लगा कि अपने स्वभाव के मुताबिक काशीनाथ ने कुछ शैतानी अवश्य की होगी। फिर बात आगे बढ़ी तो आसिफ ने कहा कि काशी से पूछो कि इसने जाफरी साहब को क्या पत्र लिखा है। इस पर काशीनाथ हँस पड़े और बोले कि उनका एक पत्र आया था, उसी का उत्तर दे दिया था। जब मैंने पूछा, तुमने उसमें क्या लिखा था तो उन्हांेने उस पत्र का सार बताया, मुझे भी हँसी आ गई। पर मैंने काशी को फटकारा और बात यों ही हँसी में उड़ गई गई। ऐसे हैं मेरे मित्र काशीनाथ। विश्वविद्यालय की शिक्ष के बाद इलाहाबाद में ही मैंने लगभग एक साल तक पार्टी का काम किया। पार्टी में अध्ािकतर वकील थे, उनमें से अध्ािकांश अपने क्षेत्र में प्रमुख अध्ािवक्ता थे। प्रकाशचंद्र चतुर्वेदी और सतीश खरे इलाहाबाद उच्च न्यायालय में ख्याति प्राप्त व्यक्ति थे। सरवर हुसैन, महानारायण मिश्र, आले हसन साहब- ये लोग पार्टी से जुड़े हुए थे। पं. महानारायण मिश्र इनमें सबसे अध्ािक सक्रिय थे। नेपाल के वासुदेव उपाध्याय बैरिस्टर बन कर इलाहाबाद आए थे। ये पार्टी में एक सामान्य कार्यकर्ता के रूप में काम करते थे। बड़े दिलचस्प व्यक्ति थे-हँसमुख और अत्यन्त सहज स्वभाव के। बाद में नेपाल के उच्चतम न्यायालय के मुख्य नयायाध्ाीश हो गए थे। एक बार मजदूर आन्दोलन के सिलसिले में पुलिस-हवालात में भी रहे। पार्टी के प्रचार में घोड़े पर सवार होकर माँडा का दौरा भी हम लोगों के साथ कर चुके थे। हर परिस्थिति में प्रसन्न और अपने हास-परिहास से सब लोगों को प्रसन्न रखने की उनमें अद्भुत क्षमता थी। समाजवादी आन्दोलन में उन दिनों उत्तर प्रदेश के पूर्वी जिलों में कितने ऐसे लोग समर्पित थे जिनका समाज में एक विशिष्ट स्थान था। पास के आजमगढ़ में विश्राम राय जैसा ईमानदार और सादगी की जिन्दगी बिताने वाला एक कर्मवीर बिरले ही मिलता है। इसके अलावा उस दौरे के कुछ प्रमुख लोगों के नाम हैं: उमाशंकर मिश्र, रामसुंदर पाण्डेय, दौलत लाल, दल सिंगार पाण्डेय और केदारनाथ, आदि। उसी दौर के लोची सिंह का अपने क्षेत्र में काफी प्रभाव और सम्मान था। बाद की पीढ़ी में बच्चो बाबू (त्रिपुरारि पूजन प्रताप सिंह) घर के सदस्य जैसे थे, पूरी तरह समर्पित। अचानक कम उम्र में चल बसे। उनके जाने की कसक सदा बनी रहेगी। गाजीपुर के सिद्धेश्वर प्रसाद सिंह, विश्वनाथ सिंह गहमरी, दल शृंगार दुबे, फागू चैध्ारी, बेनी माध्ाव राय, पण्डित राय आदि अनेक वरिष्ठ और सम्मानित समाजवादी नेता भी याद आ रहे हैं। देवरिया के गेन्दा सिंह, राजवंशी बाबू, रामजी लाल वर्मा, राम सुभग जी, कृष्णा राय, बांके लाल और रामायण राय जैसे वरिष्ठ साथी और अग्रणी लोगों ने मेरे जैसे लोगों को प्रभावित किया और सदा के लिए बिछुड़ गए। अली सरदार जाफरी का प्रसंग ध् 327 328 ध् राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर उन दिनों समाजवादी आन्दोलन से बहुत-से प्रतिभाशाली लोग जुड़े थे। एक बार समाजवादी युवक सभा की ओर से छात्रसंघ के हाॅल में एक सभा हुई। सभा बम्बई के सूती मिल के मजदूरों की हड़ताल के समर्थन में थी। विश्वविद्यालय के कई प्रोफेसर उसमें शामिल हुए।

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