मुश्किलों से गुजरी राजनीतिक जीवन की शुरुआत

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छात्र-जीवन की समाप्ति और सम्पूर्ण राजनीतिक जीवन की शुरूआत के दौर में अनेक प्रकार की मुश्किलों से गुजरना पड़ा नियमित खाने-पीने का इंतजाम नहीं था। अनेक शामें तो बिना भोजन के भी गुजरीं। इलाहाबाद में एक पावर हाउस था। उसके सामने मजदूरों के लिए खाना बनाने वाला ढाबा था। वहाँ मुझे चार आने में रोटी और कोहड़े या लौकी की सब्जी मिल जाती थी। वही खाकर मैं रहता था। पहले से ही मुझे पेट की तकलीफ थी। इस भोजन से वह और बढ़ गई। उसके बाद मैं बलिया जाकर काम करने लगा। तब भी वही खाना खाता था। हालांकि मेरे कई दोस्त वकील और शिक्षक थे। संबंध्ाी भी थे। लेकिन मैं किसी के यहाँ नहीं खाता था। पार्टी आॅफिस में रहता था। फुटपाथ पर दुकानें थीं। वहाँ तीन आने की रोटी और सब्जी मिलती थी। गौरीशंकर जी के यहाँ मेस चलता था। वे पूछते थे कि खाना खा लिया? मैं कह देता था खा लिया। दिन में कुछ भी सत्तू या चना आदि खा लेता था। शाम के भोजन का भी यही हाल था। कमल के पत्ते में तीन आने की रोटी और सब्जी पैक करा कर बलिया स्टेशन पर चला जाता था। वहाँ सीमेंट की बेंच पर बैठ कर खाता था। रेलवे के नल से पानी पीकर पार्टी आॅफिस में सो जाता था। हालांकि तब तक मैं आम लोगों के बीच जाने लगा था। सड़क पर इस तरह जि़न्दगी गुजारने का असर मेरी सेहत पर पड़ा। मैं बुरी तरह बीमार हो गया। पेट की तकलीफ काफी बढ़ गई। दोस्तों को लगा कि बचूँगा नहीं। वे घर पर खबर करने जा रहे थे। मैंने मना कर दिया। मैंने सोचा, जो कुछ होगा, देखेंगे। डिग्री काॅलेज हाॅस्टल के दो-तीन लड़कों ने मेरी सेवा की। मेरे चचेरे भाई ब्रजनन्दन सिंह कम्पाउंडर थे। किसी लड़के ने उन्हें बताया कि मेरी तबियत खराब है। फिर वह बब्बन लाल डाॅक्टर को लेकर आए और मेरा इलाज शुरू हुआ। डाॅ. गुरू हरख सिंह आए। बाद में दो-तीन और डाॅक्टर आ गए, क्योंकि गौरीशंकर और मुझे काफी लोग जानते थे। उन्होंने दवा दी। किसी तरह मैं ठीक हुआ। जि़न्दगी के ऐसे तकलीफदेह दिनों को मैंने हमेशा सहजता से लिया।

प्रतिपुष्टि