जिन्हें भूल नहीं पाए राष्ट्रपुरुष

नए चश्मों की तलाश में

आचार्य नरेन्द्र देव ने कहा था- चन्द्रशेखर, छोडि़ये शोध्ा-कार्य, देश बनाने के लिए निकलिए। उसी एक वाक्य ने जीवन की ध्ाारा को सदा के लिए बदल दिया। मंजिल की तलाश में चलता रहा, देश बनाने की तमन्ना दिल में लिए, कितने जोखिम-भरे अवसरों से गुजरा, कितने ऐसे मुकाम आये जब मंजिल सामने आती दिखाई पड़ी, पर फिर वहीं उध्ोड़बुन, वही ईष्र्या द्वेष। विवादों से बचने के प्रयास का परिणाम निकला एक उलझन भरा जीवन। देश को निकट से देखा-समझा। उच्च स्थान

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बलिया में बतौर मंत्री पार्टी का काम

इलाहाबाद से 1952 के चुनावों की पराजय के बाद मैंने बलिया में पार्टी के मंत्री के रूप में काम किया। वही साध्ानविहीनता और वही बेबसी। पर कुछ लोग थे जिनके रहते अभाव का अहसास नहीं हुआ। विश्वनाथ तिवारी का होटल सब राजनीतिक कार्यकर्ताओं की शरणस्थली था। जगन्नाथ शास्त्री जी का व्यक्तित्व, उनकी आशावादिता, उनकी श्रम करने की शक्ति, उनकी स्पष्ट बातें, हर परिस्थिति में निरापद बने रहने की अद्भुद शक्ति स्वयं में हम सबके लिए सम्बल थी। पं.

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रघुपति सहाय फिराक का भाषण

रघुपति सहाय फिराक उसमें बोलने आए, मैं उस सभा की अध्यक्षता कर रहा था। फिराक साहब क्या बोल देंगे, इसका अनुमान लगाना कठिन था। मैं डर रहा था कि हम लोगों पर ही न बरस पड़ें। सभा शुरू हुई। दो-तीन लोग ही बोले थे कि अचानक फिराक साहब ने कहा- अब वे बोलेंगे। उन्हें भला कौन रोकता। उन्होंने अपनी तकरीर शुरू की। कहा, जनाब सदर और दोस्तों। आज मैं एक तारीखी तकरीर करने जा रहा हूँ। एक ऐतिहासिक बात कहूँगा- आप में से किसी को नहीं मालूम। सदर मोहतरम,

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अली सरदार जाफरी का प्रसंग

काशीनाथ मिश्र का निराला ढंग और लोगों को चिढ़ाने की अद्भुत शैली। काशीनाथ विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष थे। छात्रसंघ एक कवि सम्मेलन-मुशायरा आयोजित कर रहा था। उन्होंने अध्यक्ष की हैसियत से अनेक लोगों को पत्र लिखा। सम्मेलन में आने का न्यौता दिया। उन्होंने उसी सिलसिले में अली सरदार जाफरी को भी पत्र लिखा था। उसके उत्तर में उन्होंने लिखा कि वे सम्मेलन में आ सकते हैं, यदि उन्हें हवाई जहाज का टिकट भेजा जाए। उस समय बम्बई

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इलाहाबाद विश्वविद्यालय के मित्र

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के साथी भी अक्सर याद आते हैं। उनमें से अध्ािकांश अब नहीं रहे। उनमें था रामकिशोर दत्त। एक परिवार के एक सदस्य जैसा। जूनियर इंजीनियर हो गया था। उनके संघ का पदाध्ािकारी भी था। मेरे बिना जाने मुझे भी कई सालों तक अध्यक्ष पद पर बनाए रखा। जब तक रहा, एक समर्पित जि़न्दगी जी। ईमानदारी के साथ काम किया और साथ ही अपने साथियों का संगठन बना कर उस वर्ग में एक नई सामाजिक चेतना पैदा करने का काम किया। अपने सहयोगियों

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वृक्ष याद दिलाते हैं ब्रजबिहारी के

ब्रजबिहारी श्रीवास्तव रचनात्मक कामों में रुचि रखते थे, अच्छे पत्रकार थे। लेखक थे। इब्राहिम पट्टी में मेरे घर से लेकर अस्पताल के प्रांगण तक जितने भी वृक्ष लगे हैं, उनकी याद दिलाते रहते हैं। दिल्ली आए थे मुझे मिलने। दिल का दौरा पड़ा और चल बसे। एक सहारा टूट गया। कैसे भुला सकूंगा ऐसे लोगों को। बलिया में केशव सोशलिस्ट कार्यकर्ता थे-समर्पित व्यक्ति। एक विद्यालय में नौकरी करते थे। यहाँ से हटे तो ठेकेदार बने। पैसा कमाया और उ

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आन्दोलन के साथी महानन्द मिश्र जी

बलिया में समाजवादी आन्दोलन के दिनों में कितने ही ऐसे लोगों के सम्पर्क में आया जिनके जीवन से मैंने बहुत कुछ सीखा। उनका अनुकरण तो नहीं कर सका, करना भी नहीं चाहता था, क्योंकि आप बीती ने मुझे बहुत कुछ स्वयं अपने अनुभव से सीखने का मौका दिया। कुछ अजीब बात हैं कि जो लोग साध्ाारण जन की दृष्टि में भी अनजान से रहे, वही मुझे प्रेरणा दे सके। उनसे मैंने कई सीख ली। महानंद मिश्र जी उन्हीं लोगों में से एक थे। कम पढ़े-लिखे व्यक्ति, पर उनमें

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गाँव की बेटी, सबकी बेटी का भाव

मैं स्वभाव से बड़ा सहनशील जाना जाता था, और मैं था भी। पर एक बार मैं अपना आत्मनियंत्रण खो बैठा। गुजराती हरिजन मेरे पास आए और रोते-रोते कहा कि उनकी बेटी को कोई भगा ले गया है। मैं उस समय पढ़ाई समाप्त कर पार्टी में काम करता था। मुझे इस घटना से बहुत दुःख हुआ क्योंकि वह गाँव की मर्यादा का सवाल था। इसे सहन कर पाना मेरे लिए सम्भव नहीं हो सका। मैंने पता लगाना शुरू किया कि सही बात क्या है? कौन अपराध्ाी है? गुजराती ने किसी की ओर इंगित कि

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कोयरी की कोड़ार और परगन बाबा के पीपल के पेड़

बलिया के एक छोटे से गाँव-से आज तक की यात्रा एक ऐसी गाथा है जिसमें जि़न्दगी उतार-चढ़ाव के हिचकोलों से गुजरी है। कितने सहयोगी मिले, कितनों ने उन्मुक्त स्नेह दिया, कितनों ने उदासी के क्षणों में सहारा दिया। अपने ममत्व का सम्बल दिया। साथ ही उनसे भी पे्ररणा मिली जिन्होंने मार्ग में रोड़े अटकाए। अकारण आक्षेप लगाए। मेरे मनसूबों को तोड़ने की हर कोशिश की, पर ऐसे कम ही रहे। जो रहे भी, उनका मेरे मन पर कोई गहरा असर नहीं पड़ा। क्षणिक आक

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