चन्द्रशेखर जी की अंगुली पकड़ आया राजनीति में

राजीव प्रताप रूड़ी  


आजाद भारत की वह अकेली शख्सियत जो आत्मबल, कर्मठता समर्पण और अपने जुझारूपन के कारण फर्श से अर्श वाली लोकोक्ति को चरितार्थ करते हुए बलिया के इब्राहिम पट्टी गाँव के गलियारों से निकल कर विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत का प्रधानमंत्री बना, दुनिया उसे चन्द्रशेखर के नाम से जानती है। इस नाम के आगे न कोई विरासत में मिला तमगा था और न ही इसके पीछे क्षत्रिय होने का गुरूर था। चन्द्रशेखर जी अपने नाम के अनुरूप ही इस राजनीति में भ्रष्टाचार, छलकपट, भाई-भतीजावाद आदि तमाम दुर्गुणों को भगवान शिव की तरह गले में ध्ाारण किये रहे, कभी अपने पर हावी नहीं होने दिया। मैं अपने को सौभाग्यशाली समझता हूँ कि मुझे अपने राजनीतिक गुरू के कतिपय व्यक्तित्व पर और संस्मरणों पर कलम चलाने का मौका मिला। सर्वाधिक सर्वश्रेष्ठ सांसद होने के सम्मान से नवाजे गये देश के पूर्व प्रधानमंत्री युवा तुर्क चन्द्रशेखर जी के बारे में लिखना और उनके साथ संपर्क को संक्षिप्त रूप से कागजों पर उकेरना मेरे लिए बड़ा कठिन है। मेरे जैसे व्यक्ति को उन्होंने छात्र जीवन में उंगली पकड़ कर राजनीति का ककहरा सिखाने की जो पहल की वो मेरे लिए सम्पूर्ण जीवन अविस्मरणीय रहेगा। चन्द्रशेखर जी को सभी लोग अध्यक्ष जी के नाम से ही सम्बोधित करते थे। सभी की देखा-देखी में मैं भी उन्हें अध्यक्ष जी के नाम से ही सम्बोधित करने लगा। सर्वप्रथम मेरी मुलाकात उनसे जब हुई तब मैं चंडीगढ़ गवर्मेंट काॅलेज की छात्र राजनीति में सक्रिय था। उस समय चन्द्रशेखर जी के निर्देश पर तत्कालीन युवा जनता के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री सुबोधकांत सहाय द्वारा मुझे छात्र जनता का अध्यक्ष बनाया गया। सन् 1986 में छात्र राजनीति के दौरान ही मुझे चन्द्रशेखर जी द्वारा बिहार के तरैयां विधानसभा क्षेत्र से पार्टी का प्रत्याशी बनाया गया। मुझे आज भी वह क्षण स्मरण है जब चन्द्रशेखर जी ने मेरे लिए तरैयां बाजार में पेट्रोमैक्स की रोशनी में एक लकड़ी के चैकी पर खड़े होकर जनसभाएं की थीं। इस यादगार पल की तस्वीरें मैने आज भी सहेज कर रखी है। हालांकि मैं अपना वह पहला चुनाव हार गया और मेरी जमानत जब्त हो गई, पर उस चुनाव ने मेरी राजनीतिक दिशा तय कर दी और मेरी राजनीति की नींव डाली। इसके पाँच वर्षों के उपरान्त संयुक्त जनता दल द्वारा मुझे तरैयाँ विध्ाान सभा क्षेत्र से दुबारा प्रत्याशी बनाया गया और मैं 28 वर्ष की उम्र में पार्टी का विधायक बन गया। सन् 1990 की बिहार के राजनीति की वह घटना मुझे आज भी स्मरण है जब मैंने रघुनाथ झा जी को मुख्यमंत्री बनाने के लिए हुए मतदान में अध्यक्ष जी की बात को न मान कर राम सुंदर दास को अपना मत दिया। इस मत विभाजन के कारण लालू प्रसाद यादव बिहार के मुख्यमंत्री बने। अपने संसदीय वार्तालापों के लिए चर्चित चन्द्रशेखर जी द्वारा सन् 1984 की सम्पूर्ण देश की पदयात्रा के दौरान मुझे दक्षिण में कई दिनों तक उनके संसर्ग में रहने का अवसर मिला। मुझे आज भी याद है जब वो मुझे ‘‘रूडीया’’ के नाम से संबोधित करते थे और भोजपुरी में ही कहते थे कि ‘‘देखऽअ रूडीया आ गईल’’ या ‘‘रूडीया हई बात कहता’’। अस्सी के दशक का मुझे आज भी वह दिलचस्प लम्हा याद है जब बिहार में रक्सौल के सर्किट हाउस में चन्द्रशेखर जी बाहर ध्ाूप में बैठे थे। वहीं बिहार ही नहीं बल्कि देश के जाने माने छाया चित्र पत्रकार दिवंगत श्री कृष्ण मुरारी जी, जिनका कुछ माह पूर्व ही देहान्त हुआ है, बैठे हुए थे। अध्यक्ष जी ने उनसे पूछा कि कृष्ण मुरारी तुमने अपने जीवन में अब तक कितनी फोटो खींची हैं? तब कृष्ण मुरारी जी ने तपाक से जवाब दिया कि करोड़ों फोटो खींची हैं। मैं वहीं बैठा उनकी बातों को सुन रहा था। मैने तुरन्त कृष्ण मुरारी जी की बात को काटते हुए अध्यक्ष जी से कहा कि यदि इन्होंने अपने जन्म के दिन से अभी पैंतिस वर्ष की उम्र तक प्रत्येक दिन पाँच हजार फोटों भी खिंची होंगी तब भी एक करोड़ की संख्या पूरी नहीं होती है। चन्द्रशेखर जी ने बड़े गौर से मेरी बातों को सुना और हिसाब करवाया। मेरी बातों कों तार्किक रूप से सही पाकर उन्होंने मेरे तर्क की प्रशंसा की। चन्द्रशेखर जी के कटनी आश्रम और हरियाणा के भोंडसी आश्रम में मुझे न जाने कितनी बार जाने का मौका मिला और मैंने देखा कि कभी भी उनका न तो स्नेह कम होता था और न ही हमारे जैसे छोटे कार्यकर्ता की पहचान कम होती थी। इनके बताये सतमार्गों पर चल कर ही आज विभिन्न राजनीतिक दलों चन्द्रशेखर जी की अंगुली पकड़ आया राजनीति में ध् 63 64 ध् राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर के सैकड़ों समाजसेवी देश की सेवा कर रहे हैं और हजारों लोग ऐसे हैं जो अपने आपको राजनीति में होने के पीछे चन्द्रशेखर जी के आशीर्वाद को मानते हैं। देश के प्रधानमंत्री के रूप में अनेक बार उनके साथ यात्रा करने का अवसर प्राप्त हुआ। बलिया के जयप्रकाश नगर से लेकर देश के कई कोनों में उनके साथ यात्रा की अनोखा अनुभव रहा है। उनका निवास स्थान एक ऐसा स्थान था जहाँ हम सब किसी ने किसी बहाने से रोज पहुँचते थे। आज भारतीय राजनीति के शीर्ष स्थानों पर पहुँचे कई ऐसे राजनेता हैं जिन्हें मैंने चन्द्रशेखर जी के आशीर्वाद को प्राप्त करते हुए देखा है। इनका आशीष सदैव मेरे साथ रहा और मुझे इस बात का गर्व है कि उनकी छत्रछाया में उनकी अंगुली पकड़ कर मेरा राजनीति जीवन आरंभ हुआ। (लेखक भारत सरकार में राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) हैं)

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