आम आवाम के प्रधानमंत्री थे चन्द्रशेखर

लालू प्रसाद यादव  


समाजवादी आन्दोलन के शीर्ष पंक्ति में शुमार और युवा तुर्क के रूप में जनप्रिय चन्द्रशेखर जी आम आवाम के प्रध्ाानमंत्री थे। भारत का संसदीय इतिहास उनकी चर्चा के बगैर अध्ाूरा रहेगा। वह भारतीय राजनीति का ऐसा चेहरा रहे हैं जिसकी स्मृति आज भी सार्वजनिक जीवन में विद्यमान है। उनके लिए समाजवाद केवल दार्शनिक अवध्ाारणा नहीं थी बल्कि जीवन जीने की एक ऐसी पद्धति थी जिसके माध्यम से राजनीति और समाज को निरंतर लोकोन्मुख बनाना था। अपने देसीपने में सहज और गर्व का अनुभव करने वाले चन्द्रशेखर जी एक ऐसे विकास के लिए हम सबके साथ संघर्षशील रहे जिसके माध्यम से देश की आखिरी झुग्गी तक जाकर विकास दस्तक दे। स्व. चन्द्रशेखर जी का विराट व्यक्तित्व सबको साथ लेकर चलने में सक्षम था। शायद यही कारण है कि उनके दोस्त और शुभचिन्तक चाहे जिस दल या विचारध्ाारा के साथ हों, वो उनकी स्मृति को संजोकर रखते हंै मैंने अपने लम्बे राजनीतिक जीवन में चन्द्रशेखर जी जैसा व्यक्तित्व कम देखा है जो साथियों और कार्यकर्ताओं के बारे में इतना संवेदनशील हो कि बगैर किसी बात की परवाह किए उसके मुसीबत के क्षण में उसके साथ खड़ा हो जाए। मेरे स्वयं के राजनीतिक सफर में चन्द्रशेखर जी का साथ रहा है और हमने कई सामाजिक व राजनीतिक सरोकारों के लिए साझा संघर्ष किया है। मेरे प्रति उनके स्नेह के सारे बिन्दुओं की मैं यहाँ चर्चा नहीं कर सकता। मेरी चिन्ताओं व चिन्तन को वो बहुत करीब से समझते थे और मेरे लिए हमेशा उपलब्ध्ा रहते थे। उत्तर प्रदेश के बलिया जिले का होने के बावजूद चन्द्रशेखर जी का बिहार और बिहार के लोगों से जबरदस्त लगाव था। बिहार के किसी भी शहर या गाँव का कार्यकर्ता कभी भी उन तक पहुँच सकता था। अपनी जीवन शैली और प्रतिबद्धताओं में उन्होंने कबीर के दोहे- गौ ध्ान गज ध्ान बाज ध्ान और रतन ध्ान खान। जब आवे संतोष ध्ान सब ध्ान ध्ाूरि समान। आम आवाम के प्रध्ाानमंत्री थे चन्द्रशेखर ध् 75 76 ध् राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर को पूरी तरह चरितार्थ करते थे। उन्होंने दोस्तों के लिए संशय नहीं रखा और अपने लिए कुछ संचय नहीं किया। भारत के प्रध्ाानमंत्री पद पर सुशोभित होने के बाद भी उनका सादा गवई अंदाज बना रहा। शायद इसीलिए वह आम आवाम के प्रध्ाानमंत्री के रूप में आज भी याद किए जाते हैं। आरणीय जयप्रकाश नारायण जी के निध्ान ने हम सबों की तरह चन्द्रशेखर जी को भावनात्मक रूप से तोड़ दिया था। इसीलिए सिताबदियारा में उनकी स्मृति संजो कर रखने में उन्होंने हम सबके साथ कंध्ो से कंध्ाा मिला कर अथक परिश्रम किया। जयप्रकाश जी और उनके राजनीतिक सरोकारों के साथ उनका लगाव अद्भुत था। किसी भी विषय पर अच्छी पकड़ और बिना भय के अपनी बात रखने का जोरदार अन्दाज चन्द्रशेखर जी की खासियत थी। संसद में सभी दलों के लोग उन्हें गंभीरता से सुनते थे। भारत का संसदीय इतिहास उनकी चर्चा के बगैर अध्ाूरा रहेगा। उनकी प्रखर संसदीय प्रतिभा का आदर करते हुए उन्हें वर्ष 1195 में प्रध्ाानमंत्री नरसिम्हा राव जी के कार्यकाल में उत्कृष्ट सांसद के पुरस्कार से सम्मानित किया। मुझे याद है कि चन्द्रशेखर जी के समाध्ाि-स्थल के सवाल पर हमने और साथियों के साथ मिल कर संघर्ष किया। यह संघर्ष उस विराट व्यक्तित्व को हमारी एक छोटी सी श्रद्धांजलि थी जिसने मुल्क के राजनीतिक जीवन को अपनी कार्यशैली और कर्मो से समृद्ध किया था। मुझे यह भी स्मरण होता है कि जब चन्द्रशेखर जी के निध्ान की सूचना मिली तो भरोसा ही नहीं हुआ। जिस व्यक्ति के साथ जे.पी. आन्दोलन की कोख से लेकर एक लम्बे अरसे तक रहा था, उसके न होने को मन मान ही नहीं रहा था। खैर, नियति का अपना चक्र होता है लेकिन चन्द्रशेखर जी के साथ बिताए क्षण, संघर्ष की वो अनुपम स्मृतियाँ आज भी मेरी संपत्ति हैं। इसलिए मैं उन्हें बार-बार नमन करता हूँ। (लेखक राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री रहे हैं)

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