भाजपा में जाने के बाद भी मिलता रहा स्नेह

हुक्मदेव नारायण यादव  


1962 में मैं प्रजा समाजवादी पार्टी के टिकट पर विध्ाानसभा का चुनाव लड़ा था तो श्री अशोक मेहता और श्री चन्द्रशेखर जी पार्टी के नेता थे। 1967 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से विध्ाायक बना तो वह काँग्रेस में युवा तुर्क के नाम से पुकारे जाते थे। वह काँग्रेस के प्रभावशाली नेता होने के बाद भी काँग्रेस के मंच से भी निर्बल, निधर््ान, मजदूर और किसान के हित की बात उठाते रहते थे। चन्द्रशेखर जी और उनके साथियों की क्रांतिकारी विचारध्ाारा के कारण ही काँग्रेस ने उस समय कई क्रांतिकारी कदम उठाए। बैंकों का राष्ट्रीयकरण उसमें बड़ी चीज थी। इसे लेकर बिहार में अक्सर उनकी चर्चा होती थी, समाजवादियों में। युवा समाजवादियों के लिए तो वह प्रेरणा स्रोत ही थे। 1977 में जब मैं लोकसभा का चुनाव जीतकर आया तो उन्हें करीब से जानने का अवसर मिला। चन्द्रशेखर जी उस समय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। मुझे बिहार जनता पार्टी का प्रदेश महासचिव बनाया गया था। वह निर्भय नेता थे। साहस और मिलनसारिता के कारण वह अपने साथियों में काफी लोकप्रिय थे। अपने विचार स्पष्ट रूप से रखते थे। इसे लेकर किसी बात की चिंता नहीं करते थे। उनकी निर्भयता, साहस और स्पष्टवादिता के पीछे कहीं न कहीं बलिया की माटी का प्रभाव था। वहाँ के लोगों ने उनका काफी स्नेह, सम्मान और समर्थन दिया। उन्होंने जनता पार्टी का विभाजन रोकने के लिए काफी प्रयास किया। इसके लिए अनावश्यक मुद्दों को प्रमुख मुद्दा बनाया। दोहरी सदस्यता की बात अप्रासंगिक थी। मेरा आज भी मानना है कि श्री देवीलाल जी, श्री कर्पूरी ठाकुर और श्री रामनरेश यादव को मुख्यमंत्री के पद से नहीं हटाया गया होता तो जनता पार्टी का विभाजन नहीं हुआ होता। मेरा आज भी मानना है कि चैध्ारी चरण सिंह को मन्त्रिमंडल से निकाला जाना भयंकर भूल थी। श्री चन्द्रशेखर ने इन घटनाओं को रोकने का प्रयास किया था परन्तु वह रोक नहीं पाए और एक ऐतिहासिक अवसर को जनता पार्टी के नेताओं ने निरर्थक बना दिया। 1985 के बाद श्री चन्द्रशेखर जी के साथ काम करने का ठीक से अवसर मुझे तब मिला जब मैं लोकदल छोड़कर उनकी जनता पार्टी में आ गया। उन्होंने मुझे बिहार प्रदेश जनता पार्टी का अध्यक्ष बनाया। वह अपने साथियों से खुलकर चर्चा करते थे। लोग उनसे बेहिचक और बेझिझक बात करते थे। वह अपने साथियों की चिंता करते थे। भौंड़सी आश्रम में इसे लेकर चर्चा होती रहती थी। उनकी विशेषता थी कि जिससे दोस्ती करते थे, खुलकर करते थे। अपने रिश्तों को सार्वजनिक रूप से स्वीकार करते थे। कई लोगों के बारे में भ्रान्त ध्ाारणा भी थी लेकिन चन्द्रशेखर जी का ऐसे लोगों से भी रिश्ता खुलकर था। वह वी.पी. सिंह के विचारों से सहमत नहीं थे लेकिन वी.पी. सिंह को पसंद करने वाले कई लोगों को उनका स्नेह मिलता रहता था। 1989 के चुनाव में उन्होंने अपने प्रभाव का उपयोग करके मुझे सीतामढ़ी से उम्मीदवार बनाया था। चुनाव बाद हम लोग चन्द्रशेखर जी को प्रध्ाानमंत्री बनाने के पक्ष में थे। काफी सांसद थे। लग रहा था कि चुनाव होगा। इस बीच एक षड़यंत्र रचा गया जिसमें सर्वसम्मति से चैध्ारी देवीलाल को प्रध्ाानमंत्री के लिए चुना गया। नाटकीय तरीके से देवीलाल ने वी.पी. सिंह के नाम का प्रस्ताव कर अपनी जिम्मेदारी वी.पी. सिंह को सौंप दी। उनके इस निर्णय से सभी विस्मय में पढ़ गए। होना यह चाहिए था कि देवीलाल जी के हटने के बाद फिर से नेता का चुनाव होता परन्तु निर्वाचन अध्ािकारी ने सामान्य प्रक्रिया का निर्वाह नहीं करते हुए वी.पी. सिंह को नेता घोषित कर दिया। आगे चलकर 1978 की घटना की पुनरावृत्ति हुई। 1979 में चैध्ारी चरण सिंह ने मुरारजी भाई देसाई के समर्थन में पत्र दिया था। जिस कारण वे प्रधानमंत्री बने। बाद में श्री देसाई ने चैध्ारी चरण सिंह को ही अपमानजनक तरीके से अपने मन्त्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया। ठीक उसी तरीके से देवीलाल के समर्थन के बल पर प्रध्ाानमंत्री बने वी.पी. सिंह ने अपमानजनक तरीके से देवीलाल को ही अपने मन्त्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया। चन्द्रशेखर जी देवीलाल के इस अपमान से दुखी थे। जनता दल में विघटन की प्रक्रिया प्रारम्भ हो गयी। हम लोग चन्द्रशेखर जी के नेतृत्व में देवीलाल के साथ हो गए और श्री चन्द्रशेखर काँग्रेस के समर्थन से प्रध्ाानमंत्री हो गए। मुझे भी मंत्री बनाया गया। चन्द्रशेखर सरकार रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद जैसे मसलों के हल की ओर थी कि काँग्रेस का विश्वासघाती चरित्र एक बार फिर प्रकट हुआ। काँग्रेस ने चैध्ारी चरण सिंह की सरकार की ही तरह चन्द्रशेखर भाजपा में जाने के बाद भी मिलता रहा स्नेह ध् 93 94 ध् राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर सरकार से अपना समर्थन वापस लेकर उसे गिरा दिया। मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि चैध्ारी चरण सिंह और श्री चन्द्रशेखर दोनों गाँव के साध्ाारण परिवार से निकले थे। अपनी ईमानदारी, क्षमता, संघर्षशीलता और राजनैतिक प्रतिभा के कारण गाँव, गरीब, किसान और मजदूर की आवाज को बुलंद करने के कारण राजनीति के शिखर तक पहुँचें। दोनों दीर्घकालीन तौर पर काँग्रेस के लिए खतरा थे। इस कारण दोनों के साथ छल कपट किया गया। मेरा आज भी मानना है कि काँग्रेस पर विश्वास करना अंध्ाकार में भटकने के समान है। कारण? वर्ग चरित्र और वर्ग हित काँग्रेस का अलग-अलग है। 1993 में मैं भारतीय जनता पार्टी में चला गया। समाजवादी ध्ाारा में बिखराव और दिशाहीनता के कारण ही मैंने यह निर्णय लिया। उसके बाद भी श्री चन्द्रशेखर से मेरा संबंध्ा बना रहा। उनके सहयोगी अलग-अलग दलों और संगठनों में थे। उनका सभी से आत्मीय संबंध्ा बना रहता था। वे हर अवसर पर हम लोगों को बुलाते थे, विभिन्न मुद्दों को लेकर विचार-विमर्श करते थे। सच कहूँ तो श्री चन्द्रशेखर एक मजबूत खम्भा थे जिसके सहारे हम एक जमात के लोग एक छत की तरह तने रहते थे। उनके जाने के बाद यह संगठन बिखर गया। मुझे यह कहने में आज भी कोई संकोच नहीं है कि वह उनका व्यक्तित्व भव्य था, महान था, आदर्श था। भारत के पूरब से पश्चिम तक, उत्तर से दक्षिण तक उनके समर्थक थे। उन्होंने भारत यात्रा के माध्यम से देश के कण-कण को जोड़ने का प्रयास किया। भारत यात्रा केन्द्र इस दिशा में संदेश देने वाला रहा है। वह वास्तव में राष्ट्रपुरुष थे। जिस ध्ारती ने, जिस माता पिता ने उन्हें जन्म दिया, पाला पोसा और संरक्षण देकर आगे बढ़ाया, उन सभी को शत-शत नमन। साथ ही कोटि-कोटि नमन करता हूँ अपने साथी, पथ प्रदर्शक नेता और राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर को। (लेखक संसद सदस्य और लोकसभा की कृषि संबंध्ाी स्थायी समिति के सभापति हैं)

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