चन्द्रशेखर: डायनामिक्स आॅफ चेंज

राजेंद्र राठौड़  


चन्द्रशेखर: डायनामिक्स आॅफ चेंजु राजेन्द्र राठौड आजाद हिन्दुस्तान के महान चिन्तक और युवा तुर्क के रूप में विख्यात रहे राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर का भारतीय राजनीति में अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। भारत के आठवें प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर एक प्रखर मेधावी प्रवृत्ति के व्यक्तित्व थे। विधाता ने उन्हें अनेक योग्यताओं की सौगात प्रदान कर इस सृष्टि में भेजा था। आचार्य नरेंद्र देव जैसे मूधर्न्य चिन्तक और समाजवादी नेता के सान्निध्य में रहकर चन्द्रशेखर जी ने उनके व्यक्तित्व एवं जीवनचरित्र को आत्मसात कर लिया था। चन्द्रशेखर जी सही मायने में राजनीति के लिए नहीं बल्कि देश के उन्नति की राजनीति हेतु कार्य करने में विश्वास रखते थे। अपनी आत्मा की आवाज पर राजनीति करने वाले स्वर्गीय चन्द्रशेखर ने जीवनपर्यन्त देश को सही दिशा देने का हर सम्भव प्रयास किया। उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के ग्राम इब्राहीम पट्टी में 17 अप्रैल, 1927 को एक कृषक परिवार में चन्द्रशेखर का जन्म हुआ था। विद्यार्थी जीवन में ही चन्द्रशेखर का राजनीति के प्रति रुझान उत्पन्न हो गया एवं क्रान्तिकारी विचारों के कारण उनकी एक विशिष्ट पहचान बन गयी। वर्ष 1951 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर उपाध्ाि प्राप्त करने के बाद चन्द्रशेखर समाजवादी आन्दोलन से जुड़ गये। अपनी वक्तव्य शैली के कारण युवाओं में लोकप्रियता हासिल करने वाले प्रखर वक्ता श्री चन्द्रशेखर ने वर्ष 1962 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए चुनने के बाद राष्ट्रीय राजनीतिक परिदृश्य पर पदार्पण किया। राज्यसभा में उन्होंने वंचितों और दलितों के कल्याण की पैरवी करते हुए अपनी प्रभावी पहचान बनायी। गम्भीर मुद्दों पर सिंह के समान गर्जना करने वाले चन्द्रशेखर की वाणी की शक्ति का ही कमाल था कि संसद में शोर गुल के बीच जैसे ही वे बोलना प्रारम्भ करते, संसद में सन्नाटा पसर जाता और सभी सांसदगण एकाग्रचित्त चन्द्रशेखर: डायनेमिक्स आफ चेंज ध् 95 96 ध् राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर होकर उन्हें गम्भीरता से सुनते। उन्हें मुद्दों की राजनीति के लिए जाना जाता था। पक्ष-विपक्ष के सभी नेताओं के साथ मधुर संबंध रखने वाले श्री चन्द्रशेखर सभी दलों में समान रूप से लोकप्रिय रहे। विभिन्न अवसरों पर संसद में गतिरोध उत्पन्न होने की स्थिति में पक्ष-विपक्ष से परामर्श और मार्गदर्शन के लिए उन्हें ही याद किया जाता था। सशक्त लेखनी के धनी चन्द्रशेखर अपने विचारों की सुदृढ़ अभिव्यक्ति के लिए विख्यात थे। प्रारम्भ से ही उन्हें पत्रकारिता का शौक था और इस शौक को पूरा करने के लिए उन्होंने ‘‘यंग इन्डियन’’ नामक साप्ताहिक समाचार पत्र का सम्पादन-प्रकाशन किया। लेखन में उनका गहन चिंतन परिलक्षित होता था। ‘‘यंग इन्डियन’’ में चन्द्रशेखर द्वारा लिखे गये सारगर्भित और मर्मस्पर्शी सम्पादकीय पाठकों में अत्यन्त लोकप्रिय थे। एक चिन्तक के रूप में समस्याओं की बेबाकी के साथ समीक्षा करने के साथ ही वे अपने सम्पादकीय में समस्याओं के समाध्ाान भी सुझाते थे। उनका विश्लेषणात्मक लेखन बुद्धिजीवी पाठकों में गहराई तक उतर जाता था। आपात्काल घोषित होते ही लिखित वैचारिक अभिव्यक्ति पर पहरा लगते ही ‘‘यंग इन्डियन’’ का प्रकाशन बंद हो गया। आपात्काल के दौरान लेखक हृदय चन्द्रशेखर ने जेल में रहते हुए भी लेखन का कार्य निरन्तर जारी रखा। चन्द्रशेखर द्वारा जेल प्रवास के दौरान जेल के अनुभवों के आध्ाार पर किये गये लेखन को ‘‘मेरी जेल डायरी’’ के नाम से एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया। यह पुस्तक पाठकों के मध्य चर्चा का मुद्दा बनी और पाठकों ने इसे विशेष रूप से सराहा। चन्द्रशेखर की हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं पर प्रभावी पकड़ थी और उन्होंने दोनों ही भाषाओं में लिखा। उनके द्वारा देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लिखे गये लेखों का संग्रह ‘‘डायनामिक्स आॅफ चेंज’’ नामक पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया। इस पुस्तक को भी पाठकों की भरपूर सराहना मिली। भारत की आत्मा को समझने के लिए चन्द्रशेखर ने अनेक राज्यों की यात्राएँ कर व्यापक जनसम्पर्क किया। यात्राओं के द्वारा उन्होंने शिक्षा के बारे में जन चेतना जागृत करने के साथ ही पिछड़ों के उत्थान पर विशेष बल दिया। चन्द्रशेखर एक व्यक्ति नहीं बल्कि एक संस्था के रूप में प्रत्येक कार्य को पूर्ण समर्पण भाव से करते थे। सौभाग्य से मुझे व्यक्तिशः चन्द्रशेखर जी के सान्निध्य में रहने का सुअवसर प्राप्त हुआ। मुझे एकेडमिक वर्ष 1978-79 के लिए राजस्थान विश्वविद्यालय छात्रसंघ का अध्यक्ष चुना गया था एवं मेरे अनुरोध पर तत्कालीन जनता पार्टी अध्यक्ष चन्द्रशेखर जी जयपुर पधारे। शपथ ग्रहण समारोह में उनके आगमन पर विश्वविद्यालय में भारी संख्या में जन समुदाय उमड़ पड़ा। वर्ष 1983-84 से आयोजित भारतयात्रा के दौरान मुझे निकटता से उनके साथ रहकर भारत की आत्मा को समझने का अवसर प्राप्त हुआ। अत्यन्त सरल एवं सहज स्वभाव के धनी श्री चन्द्रशेखर कार्यकर्ताओं की गलती पर पल में गुस्सा हो जाते थे लेकिन दूसरे ही पल प्यार के साथ उन्हें दुलार लेते थे। उनके साथ बिताया समय मेरे जीवन की अमूल्य निधि है। चन्द्रशेखर ने 10 नवम्बर, 1990 को देश के आठवें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली। प्रधानमंत्री बनने के बाद चन्द्रशेखर ने बेहद संयमित रूप से अपने दायित्वों को निर्वाह किया। उस समय देश आर्थिक संकट का सामना कर रहा था। विदेशी मुद्रा का गम्भीर संकट उत्पन्न हो गया था। चन्द्रशेखर ने स्वर्ण के रिजर्व भण्डारों से इस समस्या को सुलझाया एवं कुछ ही समय में स्वर्ण के रिजर्व भण्डार भर गए और विदेशी मुद्रा का संतुलन भी बेहतर हो गया। प्रधानमंत्री के रूप में चन्द्रशेखर शानदार तरीके से सबको विश्वास में लेकर अच्छा काम कर रहे थे। काँग्रेस ने राजीव गांधी की गुप्तचरी का बहाना बनाकर 5 मार्च, 1991 को समर्थन वापस ले लिया। चन्द्रशेखर लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुसार ही कार्य करना चाहते थे, अतः उन्होंने राष्ट्रपति को संसद भंग करके नए चुनाव की अनुशंसा प्रेषित कर दी। इस प्रकार चन्द्रशेखर लगभग 4 माहप्रधानमंत्री के पद पर आसीन रहे। इस दौरान किसी भी विवाद में आए बिना उन्होंने निष्ठापूर्वक अपने कर्तव्यों को अंजाम दिया। नया प्रधानमंत्री चुने जाने तक उन्होंने 21 जून, 1991 तक प्रधानमंत्री का कार्यभार देखा। उनके कार्यवाहक प्रधन्मन्त्रित्व काल में ही आम चुनाव पूर्णतः निष्पक्ष तरीके से सम्पन्न हुए। राजनीति को सेवा का माध्यम समझने वाले चन्द्रशेखर ने भोंड़सी में एक चन्द्रशेखर: डायनेमिक्स आफ चेंज ध् 97 98 ध् राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर आश्रम की स्थापना कर समाज सेवा के कार्यों से अपने आपको सदैव जोड़े रखा। देश के लिए निष्ठापूर्वक कार्य करने का जज्बा लेकर राजनीति में प्रवेश करने वाले युवाओं के वे पथ प्रदर्शक और प्रेरणा के स्रोत हैं। सत्ता नहीं बल्कि सिद्धान्तों की राजनीति करने वाले चन्द्रशेखर जीवन पर्यन्त युवा तुर्क के रूप में युवाओं का मार्गदर्शन करते रहे। दुर्भाग्य से चन्द्रशेखर को प्लाज्मा कैंसर ने जकड़ लिया। गम्भीर बीमार होने पर उन्हें 3 मई, 2007 को नई दिल्ली के अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहाँ पर 8 जुलाई, 2007 को इनका निधन हो गया। आज चन्द्रशेखर भौतिक रूप से हमारे मध्य नहीं हैं, लेकिन समस्त भारतवासियों द्वारा वे एक कर्मठ एवं ईमानदार राजनीतिज्ञ के रूप में सदैव याद किए जाते रहेंगे। (लेखक राजस्थान सरकार में चिकित्सा, स्वास्थ्य एवं संसदीय कार्य मंत्री हैं)

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