जमाने से पंजा लड़ा, राह बनाने वाला वाहिद आदमी

इलियास आज़मी  


अंग्रेजों के जाने के बाद चन्द्रशेखर जी अकेले ऐसे आदमी हुए हैं जो न तो किसी राजा या नेता के घर पैदा हुए, न ही कभी बड़े पूँजीपतियों ने उन्हें अपने काम का आदमी समझ कर उन पर अपनी दौलत लुटायी और न ही कभी वह जमाने के पीछे चले। उन्होंने जमाने की आंख में आंख डाल कर और उससे पंजा लड़ा कर अपनी राह बनायी। मुझे याद है, जिस समय श्रीमती इन्दिरा गाँध्ाी ने अपनी कुर्सी बचाने के लिए आपात्काल लगा कर पूरे देश को एक बड़े जेल में बदल दिया था, उस समय चन्द्रशेखर जी काँग्रेस से ही राज्यसभा के सदस्य थे। काँग्रेस में ऐसे बहुत से लोग थे जो श्रीमती गाँध्ाी के इस फैसले के विरुद्ध थे लेकिन चुप रहे। केवल चन्द्रशेखर जी में ही इतना साहस था कि उन्होंने श्रीमती गाँध्ाी की तानाशाही के विरुद्ध आवाज उठाने में एक मिनट की भी देर नहीं लगाई। उनके इस फैसले ने मेरे जेहन में अल्लामा इकबाल के शेर को ताजा कर दिया बेखबर कुछ पड़ा आतिशे नमरूद में इश्क, अक्ल है महवे तमाशाए लबे बाम अभी। मैं आजमगढ़ का रहने वाला हँू और चन्द्रशेखर जी का गाँव इब्राहिम पट्टी बलिया जिले में जरूर था लेकिन हमारे जिले की सरहद के करीब था। उन्हें राज्यसभा में जाने की जमीन भी आजमगढ़ के ही सपूत बाबू विश्राम राय ने तैयार की थी, इसलिए आजमगढ़ वाले हमेशा चन्द्रशेखर को अपना और चन्द्रशेखर आजमगढ़ को अपना मानते रहे। इस बात को लेकर हमें बराबर गर्व होता है कि चन्द्रशेखर जी और उनके साथी रामध्ान जी काँग्रेस का सांसद होते हुए भी आपात्काल का विरोध्ा करते हुए 18 महीने जेल में रहे लेकिन हालात से समझौता नहीं किया। मैंने तकरीबन 60 साल पहले सरायमीर कस्बे के भीतर वाले चैराहे पर देखा था। वह सोशलिस्ट लीडर की हैसियत से वहाँ भाषण करने आये थे। इस सभा में उन्होंने कहा था कि ध्ार्म एक दुध्ाारी तलवार है जो केवल काटती है, जोड़ती नहीं है। राम ने शम्बूक वध्ा ध्ार्म को बचाने के नाम पर तथा यजीद ने हुसैन की हत्या ध्ार्म को बचाने के नाम पर की थी। उस समय मैं सोशलिस्ट पार्टी का एक कार्यकर्ता था। उनके ओजस्वी भाषण के बाद मैं उनसे मिलने गया तो उनसे कहा कि चन्द्रशेखर जी, आपको यह भी कहना चाहिए था कि स्टालिन ने जब बेटियों की हत्या, की तो कहा कि समाजवाद को बचाने के लिए यह आवश्यक था। चन्द्रशेखर जी मेरे प्रश्न पर मुस्कराए। उन्होंने कहा कि आजमगढ़ का आदमी ही मुझसे यह सवाल कर सकता है। उन्होंने पूछा कि तुम किस गाँव के रहने वाले हो? मैंने बताया कि फूलपुर के पास स्थित बरौली का। फिर पता चला कि वह मेरे गाँव से पहले से वाकिफ थे। चन्द्रशेखर जी के दिमाग का सीध्ाा रिश्ता उनकी जुबान से जीवन भर रहा। जो वह सत्य समझते थे, बोलते थे। इसके लिए कभी राजनीतिक लाभ-हानि की परवाह नहीं की। मुझे याद है एक चुनाव में कुछ मुसलमान नेता उनसे मिले और कहा कि वह इस बार मुसलमानों को अध्ािक टिकट दें। इन लोगों ने उनसे मुसलमानों की समस्याओं पर भी बात की। चन्द्रशेखर जी तपाक से कहा, अच्छा! मुसलमानों की कुछ समस्याएं भी हैं। मैं तो समझता था कि मुसलमानों की समस्या केवल भाजपा है। जो पार्टी भाजपा को हराने की पोजीशन में हो, मुसलमान उसी को वोट देते हैं, चाहे भाजपा को हराने वाली पार्टी भाजपा से भी बुरी हो। मुझे याद है जिस समय पंजाब में आतंकवाद का बोलबाला था, उसी समय अयोध्या आन्दोलन भी प्रारम्भ हुआ था। हिन्दू युवा सोच उससे प्रभावित हो चुकी थी। एक बार इस सोच के कुछ युवा लखनऊ में चन्द्रशेखर जी से मिले। ये लोग अयोध्या पर उनसे अपने अंदाज में बात करने लगे। उन्होंने तेज बात करने वाले युवक को अपने पास बुलाया। देश में सिक्खों की संख्या बहुत कम है। उनमें से भी थोड़े ही नवजवान आतंकवाद के रास्ते पर चल पड़े हैं जो संभाले नहीं संभल रहे हैं, जिससे पूरा देश परेशान है। मुसलमान तो देश के हर भाग में हैं। कुछ लोग चाहते हैं कि मुसलमान भी बागी हो जाएँ। मुझे समझ में नहीं आता है कि ये लोग चाहते क्या हैं? यही वजह है कि चन्द्रशेखर जी जब चार-पाँच महीने के लिए प्रधानमंत्री बने तो सबसे अध्ािक समय अयोध्या समस्या को बातचीत से सुलझाने में लगाए। मुझे 11वीं और 14वीं लोकसभा में चन्द्रशेखर जी के साथ काम करने का अवसर मिला। दोनों बार वह पार्टी के अकेले सदस्य रहे। बावजूद इसके वह लोकसभा के सबसे अध्ािक प्रभावशाली सदस्य रहे। संसद में कोई फैसला तर्क या सच्चाई जमाने से पंजा लड़ा, राह बनाने वाला वाहिद आदमी ध् 113 114 ध् राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर के आध्ाार पर नहीं होता है। संख्या की गिनती के आध्ाार पर होता है। फिर भी चन्द्रशेखर जी जैसे ही खड़े हो जाते थे, पूरी लोकसभा श्रोता हो जाती थी। जब वह काँग्रेस पर हमला करते तो सारे गैर काँग्रेसी मेज थपथपाते थे, जब वह भाजपा की ओर मुड़ते थे तो सारे गैर भाजपाई मेज थपथपाने को तैयार मिलते थे। संसद के नियमों के अनुसार संसद में बोलने का अवसर पार्टी की सदस्य संख्या के आध्ाार पर तय होता है। परन्तु चन्द्रशेखर जी हर नियम से ऊपर थे। उन्हें समय के आध्ाार पर कभी किसी ने नहीं टोका। वैसे चन्द्रशेखर जी ने बतौर सांसद लोकसभा में कभी लम्बी तकरीर भी नहीं की। अपनी बात पूर्ण रूप से रख देने के लिए उन्हें पाँच-दस मिनट ही काफी होते थे। चन्द्रशेखर जी एचडी देवगौड़ा की सरकार से काफी खुश थे। जब काग्रेस के समर्थन वापस लेने के कारण देवगौड़ा जी को लोकसभा से विश्वास मत लेना पड़ा तो वह काफी बेचैन थे। इस अवसर पर प्रध्ाानमंत्री देवगौड़ा ने कहा था कि मुझे मेरा कसूर बता दिया जाय, मैं तुरन्त त्यागपत्र देने को तैयार हँू। कसूर काँग्रेस को बताना था। उसी के कारण सदन की बैठक हो रही थी लेकिन काँग्रेस की ओर से कोई कसूर बताने को तैयार नहीं था। बाकी सभी पार्टियों के सदस्य बारी-बारी से कमोवेश यही कहते रहे कि आपका कोई कसूर नहीं है, आपकी सरकार बहुत अच्छी है। लोकसभा अध्यक्ष पी.ए. संगमा बार-बार काँग्रेसियों को बुलाते रहे और कहते रहे कि जब काँग्रेस में सदन का सामना करने की हिम्मत नहीं थी तो समर्थन वापस क्यों लिया? चन्द्रशेखर जी खड़े हुए और एक ऐतिहासिक भाषण देते हुए कहा कि इस सरकार का कसूर यही है कि यह बहुत अच्छी सरकार है। इसका अपराध्ा यह है कि पूरा देश इस सरकार से संतुष्ट क्यों है? आज एक सौ वर्ष की पार्टी इस हाल को पहुँच गई है कि समर्थन वापसी के पक्ष में उसके पास बोलने के लिए एक आदमी नहीं है। उन्होंने अटल जी की ओर मुखातिब होते हुए कहा कि गुरू जी! मैं आपसे ही कहँूगा कि आप ही प्रस्ताव का समर्थन करके काँग्रेस के चेहरे का नकाब उतार दीजिए। इसके बाद काँग्रेस के प्रियरंजन दास मुंशी सदन में आये। उन्होंने केवल इतना कहा कि समर्थन इसलिए वापस लिया जा रहा है कि सरकार हम चला रहे थे और हमी को समाप्त किया जा रहा था। इतना कह कर वह सदन से निकल गए। चन्द्रशेखर जी फिर खड़े हुए। उन्होंने अटल जी से कहा कि गुरू जी, आप काँग्रेस का खेल देखिये। तब अटल जी ने कहा कि इस सरकार से हमें कोई शिकायत नहीं है। सरकार अच्छी है, लेकिन हमें तो विपक्ष के ध्ार्म का निर्वाह करना है। चैदहवीं लोकसभा चल रही थीं। मैंने लोंगों से पूछा कि चन्द्रशेखर जी नजर नहीं आ रहे थे तो पता चला कि वह बीमार चल रहे है। दूसरे दिन ही उन्हें उठाए हुए चार आदमी आए। मैं सदन में दौड़ कर उनके पास पहुँचा तो समझ गया कि वह अंतिम बार सदन को देखने आए हैं। फिर चंद दिनों के बाद वह खबर आयी जो हर उस आदमी के लिए आनी है जो दुनिया में आया है। उनसे बिछड़ने को लेकर पेश है जिगर मुरादाबादी का एक शेर- जानकर मिजुमल, खासाने मयखाना मुझे, मुद्दतों रोया करेंगे जामो पैमाना मुझे। (लेखक पूर्व सांसद और वर्तमान में आम आदमी पार्टी के नेता हैं)

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