सदी का महान सपूत: चन्द्रशेखर

अहसन अंसारी  


हजारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पे रोती है हजारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पे रोती है हजारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पे रोती है बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदवर पैदा संसार में लाखों लोगों का जन्म होता है और लाखों लोग इस संसार से चले जाते हैं, किन्तु करोड़ों लोगों में दो-एक ही ऐसे होते हैं जो अपने पीछे ऐसी यादें छोड़ जाते हैं जिन्हें न केवल देश के लोग याद करते हें, वरन् सारा संसार उनके कमों को याद करता है बल्कि विश्व इतिहास स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाता है। ऐसे ही एतिहासिक लोगों में हमारे पूर्व प्रध्ाानमंत्री श्री चन्द्रशेखर भी थे। देश का यह महान सपूत जिसका जन्म 17 अप्रैल, 1927 को बलिया के एक गाँव इब्राहीम पट्टी के एक क्षत्री घराने में हुआ था, उनका घराना एक साध्ाारण किसान घराना था। आप के पिता का नाम सदानन्द सिंह तथा माता का नाम द्रौपदी था। उस समय देश अंग्रेजों की गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था। समूचे देश में पढ़ाई का माहौल न होने के बराबर था। उनके बड़े भाई नगीना सिंह ने एक दिन उन्हें लेकर गाँव के प्राथमिक पाठशाला में दाखिल करा दिया जहाँ पर उनकी शिक्षा लकड़ी की पटरियों से शुरू हुआ। कक्षा पाँच पास करने के बाद उन्हें मिडिल स्कूल में दाखिल करा दिया गया। मिडिल तक शिक्षा प्राप्त करने के बाद हाई स्कूल तथा इन्टर की परीक्षा के लिये उन्हें मऊ आना पड़ा, यहाँ उन्होंने डी.ए.वी. इन्टर कालेज में प्रवेश लिया और पढ़ाई में लीन हो गये। बचपन से ही वह गम्भीर तथा शान्त स्वभाव के व्यक्ति थे। उनका पहनावा साध्ाारण ध्ाोती-कुर्ता हुआ करता था। वह कभी वस्त्रों की ओर ध्यान नहीं देते थे। वह हमेशा चुप और शान्त रहा करते थे तथा समाज और देश की स्थिति पर शुरू से ही उनकी नजर थी। पढ़ाई के साथ-साथ उनकी नजर देश तथा जनता की स्थिति पर गहरी थी। मऊ से इन्टर की परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने बलिया के सतीश चन्द्र डिग्री कालेज में बी.ए. करने के लिये प्रवेश लिया। यहाँ बी.ए. करने के बाद आगे की शिक्षा के लिये वह स्वयं इलाहाबाद चले गये। उन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से 1951 में एम.ए. (राजनीति शास्त्र) की परीक्षा पास की। उनकी रुचि राजनीति में शुरू से ही थी तो यहाँ भी जारी रही। उन्हें पुस्तकें पढ़ने में बड़ी रुचि थी। वह रात-दिन पुस्तकों से अध्ययन में लीन रहा करते थे। इन पुस्तकों से उन्हें राजनीतिक दिशा का भी मार्ग-दर्शन मिला। आचार्य नरेन्द्र देव के विचारों से बहुत प्रभावित थे। चन्द्रशेखर के राजनैतिक जीवन की शुरुआत उनकी मातृभूमि से हुई। छात्र जीवन व आन्दोलन के बाद उन्हें प्रजा सोशलिस्ट पार्टी का जिला सचिव बनाया गया। इस दौरान उन्होंने राजनीति के साथ पत्रकारिता की ओर भी ध्यान दिया। उनका मानना था कि जो हम इस कलम से काम ले सकते हैं वह हम तलवार से नहीं ले सकते। कलम की मार ऐसी होती है जिसका घाव जीवन भर टीसता रहता है, उन्होंने कहा कि- कलम के सिपाही अगर सो गये तो कलम के सिपाही अगर सो गये तो कलम के सिपाही अगर सो गये तो वतन के सिपाही वतन बेच देंगे वतन के सिपाही वतन बेच देंगे वतन के सिपाही वतन बेच देंगे इसी भाव से चन्द्रशेखर जी ने साप्ताहिक पत्रिका ‘‘यंग इडियन’’ का सम्पादक पद संभाला और उनका सम्पादकीय लेख विद्वानों को बहुत प्रभावित किया। इध्ार प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने उनके कार्यो को देखते हुये उन्हें प्रदेश का सचिव बना दिया। अब राजनैतिक क्षेत्र में उनकी भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो गयी। राजनैतिक क्षेत्र में उनके कदम तेजी से बढ़ते देख प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने उन्हें 1962 में राज्यसभा के लिये चयनित कराया। अब उनकी आवाज देश के सबसे बड़े पंचायत घर में गूंजने लगी। वह दो बार काँग्रेस की ओर से राज्यसभा सदस्य रहे। इस दौरान की उनकी भूमिका ने देश की अगली कतार का प्रखर नेता बना दिया। 1974 में मऊ परदहाँ काटन मिल का शिलान्यास हुआ तो चन्द्रशेखर भी इन्दिरा गाँध्ाी के साथ मऊ शिलान्यास में आये थे और उन्होंने जो भाषण दिया उससे लोग बहुत प्रभावित हुये। उस समय समूचे देश में काँग्रेस सरकार के सदी का महान सपूत: चन्द्रशेखर ध् 127 128 ध् राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर खिलाफ आन्दोलन चल रहा था, पूरे देश में तोड़फोड़ तथा आगजनी का वातावरण बना हुआ था। जयप्राकश इसका नेतृत्व कर रहे थे। पटना में उनके भाषण करने पर उन पर जो लाठी बरसायी गयी उससे चन्द्रशेखर को बहुत दुःख हुआ। चन्द्रशेखर को यह बात मालुम थी कि इन्दिरा जी और जय प्रकाश के बीच लोग नफरत की दीवार खड़ी कर रहे हैं, उन्होंने पत्रों के माध्यम से इस झगड़े को सुलझाना चाहा, किन्तु उन्हें निराशा हाथ लगी। दिनों दिन देश की स्थिति बिगड़ते देख जून 1975 में इमर्जेंसी की घोषणा होते ही समूचे देश में हाहाकार मच गया तथा देश के बड़े से बड़े नेताओं से लेकर पार्टी के छोटे-छोटे कार्यकर्ता तक को जेल की सलाखों के पीछे कर दिया गया। चूंकि काँग्रेस को अलविदा कहने वाले चन्द्रशेखर को भी जेल में कैद कर दिया गया, मगर जेल में जाने के बाद उन्होंने कहा कि- मुझे कैद करो या मेरी जुबाँ को बन्द करो। मेरे सवाल को बेड़ी कभी पहना नहीं सकते। वह जेल में डेली अपनी जेल डायरी लिखा करते थे। जेल से बाहर आने पर उन्होंने अपनी जेल डायरी का प्रकाशन कराया जिसे पढ़कर इस बात का एहसास होता है कि जेल में बन्द रहते हुये भी उनकी सोच देश तथा जनता के प्रति क्या थी। उनका कहना था कि जब राजनीति को जाति के आध्ाार पर चलाने का प्रयास होगा तो ध्ार्म की राजनीति उस पर भारी पड़ेगी और मात खानी पड़ेगी। यह हकीकत है कि यदि चन्द्रशेखर सत्ता के लिये राजनीति करते तो इन्दिरा गाँध्ाी के शासनकाल में ही मंत्री का पद बड़ी आसानी से पा जाते। वह तो इस देश के जीवन को सुध्ाारने के लिये राजनैतिक मैदान में उतरे थे और जीवनपर्यंत उसके लिए प्रयास करते रहे। आपात् काल की समाप्ति के बाद चुनाव की घोषणा हुई तो दिल्ली में जंतर-मंतर पर देश की सभी पार्टियों का मिलाजुला कार्यक्रम चला जिसमें काँग्रेस को छोड़ कर सभी पार्टियों का विलय होकर 1977 में जनता पाटी का गठन हुआ और चन्द्रशेखर जी आल इण्डिया अध्यक्ष बनाये गये। चुनाव हुआ जनता पार्टी भारी बहुमत से विजयी हुई मोरार जी प्रध्ाानमंत्री बने किन्तु जल्द ही सारी पार्टियाँ पुनः अपने-अपने स्थान पर चली गयीं। इस प्रकार जनता पार्टी का शीराज़ा बिखर गया। इसे लेकर कुछ ऐसे मोड़ राजनीति में आये जिसकी कल्पना भी नहीं थी। वइ इस हालात से जूझते हुए पदयात्रा को निकले और एक ऐसे जन नेता के रूप में उभरे जो दलों से बड़ा था। 10 नवम्बर, 1990 को उन्होंने देश के आठवें प्रध्ाान मंत्री की शपथ ली। उन्होंने देश की बागडोर संभालते ही देश को प्रगति के मार्ग की ओर बढ़ाने का कार्यक्रम चलाया कि काँग्रेस समर्थन वापसी की सियासत करने लगी। और उन्होंने शर्तों के आध्ाार पर प्रध्ाानमंत्री रहने की जगह इस्तीफा दे दिया। इसके बाद भी वह रुके नहीं। चलते रहे देश सेवा के उस पथ पर। उनका राजनैतिक जीवन चार दशकों तक देश पर छाया रहा। 1962 से 2007 तक उनके ऊपर जो भी जिम्मेदारी का बोझ डाला गया उसको फर्ज समझकर निभाया। दूसरों को भी निभाने के लिए प्रेरित किया। सदी का यह महान सपूत 6 जुलाई, 2007 को हमसे जुदा होकर चला गया मगर उसकी यादें हमारे दिलों में हमेशा ताजा रहती हैं। (लेखक उर्दू लेखन के लिए राष्ट्रीय एवार्ड से सम्मानित हस्ताक्षर हैं)

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