बचपन में गाँव की चैपाल में लोग अक्सर राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर के बारे में चर्चा करते थे। खासतौर से 1967-68 में तो इन जनचर्चाओं के केन्द्र में केवल वही रहते थे। मेरे परिजन और आसपास के लोग यह कहते नहीं अघाते थे कि काँग्रेस में शामिल होने के बाद भी समाजवादी चन्द्रशेखर में कोई बदलाव नहीं आया है। वह अकेले देश की सियासत में पूँजीपतियों के बढ़ रहे प्रभाव को रोकने के लिए भिड़े हुए हैं। उनकी वजह से बिरला की नहीं चल पा रही है। उन्होंने अमुक को ठीक कर दिया। अमुक-अमुक गोल बना कर उनका विरोध कर रहे हैं। ये लोग चन्द्रशेखर का विरोध करने वालों के लिए अपशब्दों का भी प्रयोग करने में संकोच नहीं करते थे। मित्रों, मैं सच कहता हूँ कि गाँव की चैपाल में चलने वाली इस बहस का मेरे किशोर मन पर ठीक से प्रभाव पड़ा और मैंने मन ही मन चन्द्रशेखर को अपना नायक मान लिया। उनके बारे में अधिक से अधिक सुनने की कोशिश करने लगा कि आ गया 1969 का राष्ट्रपति का चुनाव। काँग्रेस के उम्मीदवार थे नीलम संजीव रेड्डी। निर्दल उम्मीदवार के रूप में मैदान में थे-वीवी गिरी। प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने इस चुनाव में अंतरात्मा के आधार पर वोट देने की अपील की। वीवी गिरी विजयी तो हुए लेकिन काँग्रेस का विभाजन भी हो गया। इस बँटवारे की उथल-पुथल में ही 1970 बीत गया और बज गयी 1971 के लोकसभा चुनाव की रणभेरी। और, मैं गाँव की चैपाल से चल कर आजमगढ़ के कचहरी चैराहे पर चल रही बहस को गौर से सुनने वालों में शामिल हो गया। आजमगढ़ शहर में सभा किसी दल की हो, मैं श्रोता के रूप में उसमें उपस्थित होने लगा। इस दौरान मैंने संगठन काँग्रेस के नेताओं की छोटी-छोटी सभाओं को भी देखा और काँग्रेस की लहर का बोध कराने वाली सभाओं को भी। इस चुनाव में श्रीमती इन्दिरा गांधी ने लोगों से कहा कि मैं गरीबी हटाना चाहती हूँ और विरोधी मुझे। फैसला आपको करना है। लोगों ने फैसला लिया और श्रीमती इन्दिरा गांधी की पार्टी को प्रचंड बहुमत प्रदान कर दिया। इसे लेकर काँग्रेस की एक विशाल जनसभा जजी मैदान में भी हुई। इस सभा में चन्द्रशेखर जी भी आए थे। मैं अपने नायक को सुनने को बेताब था। लेकिन, उन्हें बोलने के लिए नहीं बुलाया गया। मैं अगल-बगल बैठे लोगों से पूछ बैठा कि चन्द्रशेखर जी को क्यों नहीं बुलवाया गया। जवाब मिला कि वे बोलते तो वही छा जाते। इसलिए उन्हें किनारे कर दिया गया। इसे लेकर मुझे क्रोध भी आया लेकिन मैं कर क्या सकता था? यह सोचते हुए सभा से चल दिया कि भाषण नहीं सुन पाया तो क्या? अपने नायक को ठीक से देख तो लिया। गरीबी हटाओ के नारे के बल पर चुनाव जीतने के बाद काँग्रेस के नेता गरीबी हटाने के लिए प्रयास करने की जगह धन कमाने का प्रयास करने लगे। इनके कारनामे अखबारों में सुर्खियाँ बनने लगे। देश में बढ़ रहे भ्रष्टाचार को लेकर लोग कुलबुलाने लगे कि गुजरात में छात्र युवा आन्दोलन प्रारम्भ हो गया। स्थानीय भ्रष्टाचार से प्रारम्भ हुआ यह आन्दोलन देश के भ्रष्टाचार के विरोध का पर्याय बनने लगा। और, मैं वेस्ली इंटर कालेज के छात्र के तौर पर आजमगढ़ में इन आन्दोलनों का हिस्सा बनने लगा। देखने और सुनने लगा अपने अग्रज नेताओं को छात्र कुलपति और प्राचार्य बन कर यह संदेश देते कि दस से चार बजे के बीच कुर्सियाँ रिक्त रहीं तो इन्हें हम संभाल लेंगे कि आ गया आजमगढ़ जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव। 1974 में हुए इस चुनाव में काँग्रेस के उम्मीदवार थे बाबू राम कुंवर सिंह और विपक्ष के उम्मीदवार थे त्रिपुरारी पूजन प्रताप सिंह उर्फ बच्चा बाबू। श्री चन्द्रशेखर और श्री रामधन ने काँगे्रस के रहते हुए बच्चा बाबू का साथ दिया। इस चुनाव में बच्चा बाबू विजयी हुए तो मुझे भी लगने लगा कि देश में बड़ा बदलाव होने वाला है। इधर, गुजरात में प्रारम्भ हुआ छात्र युवा आन्दोलन पूरे देश में फैल गया। बिहार के पटना में इसे लेकर निकाले गए एक जुलूस का नेतृत्व खुद जय प्रकाश नारायण जी कर रहे थे। पुलिस ने इस जुलूस पर बल प्रयोग किया और उसकी लाठी ने जयप्रकाश जी को भी नहीं छोड़ा। इसे लेकर पूरे देश का माहौल गरम हो गया। जवानी सड़कों पर उतर कर गाने लगी कि अब यह सब ना चलने देंगे, हमने कसमें खायी हैं। इसे लेकर देश में दो कतारें बनने लगीं। एक तरफ हो गयीं प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी और उनकी सत्ता। सामने हो गए जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में देश के छात्र व युवा। इनके राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर ध् 131 132 ध् राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर पीछे खड़ा हो गया विपक्ष। देश में टकराव की स्थिति पैदा होने लगी। इधर, श्री चन्द्रशेखर के नेतृत्व में सांसदों का एक साफ-सुथरा छवि वाला गुट इस टकराव को टालने के प्रयास में लग गया। खासतौर से चन्द्रशेखर जी चाहते थे कि श्रीमती इन्दिरा गांधी खुद पहल करके जयप्रकाश जी से बात करें और देश की स्थिति को सामान्य करने की कोशिश करें लेकिन श्रीमती गांधी कुछ सुनने को तैयार नहीं थी कि आ गया 12 जून, 1974 का वह फैसला जिसमें इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने श्रीमती इन्दिरा गाँध्ाी के लोकसभा चुनाव को अवैध घोषित कर दिया। इस फैसले के आने के बाद लोग सीधे-सीधे श्रीमती इन्दिरा गांधी से इस्तीफे की माँग करने लगे। प्रेम का गीत परोसने वाले गोपाल दास नीरज जैसे गीतकार पढ़ने लगे- संसद जाने वाले राही कहना इन्दिरा गांधी से- बच न सकेगी दिल्ली तेरी जयप्रकाश की आंधी से। औरों को छोडि़ए, दिल्ली में हुई एक विशाल रैली में जयप्रकाश नारायण जी ने बोल दिया कि यह सरकार तानाशाह हो गयी है। अधिकारी, कर्मचारी, सेना और पुलिस के जवान इस सरकार का आदेश नहीं मानें। आप लोग भी भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रहे आन्दोलन में भाग लें। इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला और अपने खिलाफ उभरे जन विरोध को लेकर भयभीत प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने 25 जून, 1975 को देश में आपात्काल घोषित कर दिया। पूरे देश में विपक्ष के नेताओं और युवाओं की गिरफ्तारी शुरू हो गयी। जयप्रकाश जी जेल भेज दिए गए। काँग्रेस के बड़े नेता होने के बाद भी श्री चन्द्रशेखर जी गिरफ्तार कर जेल में डाल दिए गए। प्रेस की आजादी खत्म कर दी गई। श्रीमती इन्दिरा गांधी के इस फैसले से पूरे देश को सांप सूंघ गया। सड़क पर हो रहा विरोध भुनभुनाहटों में बदल गया लेकिन आपात्काल का विरोध जारी रहा। इसके विरोध में 1976 में आजमगढ़ रोडवेज पर हुए प्रदर्शन में मैं भी शामिल था। यहाँ से गिरफ्तार होकर मैं आजमगढ़ जेल पहुँचा तो वहाँ भी हर मुँह से सुनता रहा चन्द्रशेखर जी के साहस की प्रशंसा, जो मुझे बहुत अच्छी लगती थी। लोग तो यहाँ तक बोलते थे कि श्रीमती इन्दिरा गांधी केवल इतना चाहती हैं कि चन्द्रशेखर आपात्काल को देश की जरूरत बोल दें, जेल से बाहर आएँ और केन्द्र में मंत्री पद का ओहदा ग्रहण करें। और, चन्द्रशेखर जी ने श्रीमती गांधी के इस आमंत्रण को ठुकरा दिया। उन्होंने लोकतंत्र को धोखा देने की जगह जेल में रहना बेहतर समझा। इधर, जेल के बाहर चारों तरफ भय का माहौल था। आपात्काल नहीं पसंद करने वाले लोग भी आपात्काल के खिलाफ बोलने से बचने लगे। ऐसा लग रहा था कि लोगों ने आपात्काल को स्वीकार कर लिया है। चापलूस प्रवृत्ति के लोग तो आपात्काल का गुणगान भी करने लगे। आचार्य विनोबा भावे जैसे संत भी बोल दिए कि आपात्काल अनुशासन पर्व है। श्रीमती इन्दिरा गांधी को लगा कि जब माहौल उनके अनुकूल हो गया है और उन्होंने आपात्काल समाप्त कर लोकसभा चुनाव की घोषणा कर दी। इस चुनाव में चली जे.पी. की आंधी ने पूरे उत्तर भारत से काँग्रेस का सफाया कर दिया। खुद श्रीमती इन्दिरा गांधी और संजय गांधी को चुनाव में पराजय का मुंह देखना पड़ा। चुनाव के बाद श्री चन्द्रशेखर जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गये और आ गया विधानसभा चुनाव। इस चुनाव में उन्होंने एक सैकड़ा युवाओं को जनता पार्टी का टिकट दिया जिसमें 85 का टिकट तो दूसरों का काट कर दिया जिसे लेकर उन्हें जनता पार्टी के जातीय सरदारों का विरोध भी झेलना पड़ा लेकिन वह डिगे नहीं। उनके इस फैसले के बाद तो मैं केवल चन्द्रशेखर जी का होकर रह गया। जनता पार्टी के पराभव के बाद मैं छात्र जनता, युवा जनता और जनता पार्टी का पदाधिकारी बन सीधे चन्द्रशेखर जी के करीब आ गया। 1984 में उन्होंने मुझे जनता पार्टी का मुबारकपुर विधानसभा से उम्मीदवार बनाया। मैं मामूली वोटों से यह चुनाव हार गया। इसे लेकर उन्होंने कई अवसरों पर कहा कि मैं समय दे दिया होता या चुनाव खर्च ही भेजवा दिया होता तो यशवंत यह चुनाव नहीं हारता। बाद में मैं चुनाव जीता भी और सूबे का मंत्री भी बना लेकिन मेरे आदर्श केवल, केवल चन्द्रशेखर ही रहे। मुझे आज भी इस बात का गौरव है कि मैं एक ऐसे राष्ट्रपुरुष के साथ रहा जो देश और लोकतंत्र के हर संकट को समझता था, उसके निदान के लिए लड़ता था और सत्ता में कोई भी हो, उसे इस खतरे से आगाह करता था। पंजाब, आसाम और अयोध्या के मसले पर भी उन्होंने स्पष्ट राय दी। उन्होंने इस देश की पीड़ा को खुद पैदल चल कर समझा और कहा कि आने वाले दिनों में भारत को जल संकट से जूझना होगा। इससे बचने के लिए अभी से प्रयास होना चाहिए। वह साथ चलने वाले हर आदमी को अपना अंग समझते थे और संकट के समय एक बहादुर संरक्षक की तरह अपने लोगों के साथ खड़े हो जाते थे। इसके दो उदाहरणों से तो मैं सीधे जुड़ा रहा हूँ। पहला उदाहरण है, बहुजन समाज पार्टी और भारतीय राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर ध् 133 134 ध् राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर जनता पार्टी गठबंधन की सरकार की मुख्यमंत्री सुश्री मायावती के 2002 के कार्यकाल का। उनकी तानाशाह प्रवृत्ति और जनविरोध्ाी नीतियों के विरोध में प्रतापगढ़ कुण्डा क्षेत्र के निर्दलीय विरोधी रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया ने सूबे के राज्यपाल से मिल कर अपना तथा अपने साथियों का समर्थन वापस ले लिया था। सरकार अल्पमत में आ गयी तो सुश्री मायावती ने विरोध को दबाने के लिए राजा भैया को फर्जी मुकदमे में गिरफ्तार करा लिया। कुछ दिनों बाद उनके ऊपर पोटा लगा दिया गया। उन्हें बांदा जेल भेज दिया गया। चन्द्रशेखर जी को यह जानकारी मिली तो वह बांदा जेल पहुँच गए। उन्होंने राजा भैया से मुलाकात की और कहा कि अन्याय और तानाशाही की उम्र बहुत छोटी होती हैं घबराना नहीं, लोकतंत्र की रक्षा के लिए अडिग रहकर संघर्ष करना, इस संघर्ष में मैं तुम्हारे साथ हूँ। विरोध्ा से कुपित मुख्यमंत्री सुश्री मायावती ने मेरे खिलाफ भी फर्जी मुकदमा दर्ज करवाया। मेरी गिरफ्तारी के लिए पुलिस अफसरों को लगा दिया गया। मुकदमे की जानकारी होने पर मैं गिरफ्तारी देने जा रहा था कि मेरे कुछ शुभचिन्तकों ने मुझे गिरफ्तारी देने से रोक दिया। मुझे फरार रहने का अनुभव नहीं था। इसे लेकर मैं काफी परेशान था। इसी परेशानी में दिल्ली पहुँच गया। वहाँ चन्द्रशेखर जी से मिल कर पूरी बात बतायी तो उन्होंने गिरफ्तारी देने से मना किया और कहा कि चलो, भोड़सी में रहो। मैं छह महीने यहाँ रहा और मायावती सरकार के पतन के बाद लखनऊ आया। मित्रों, इन छह महीनों में मैंने पाया कि चन्द्रशेखर जी केवल अच्छे राष्ट्रपुरुष ही नहीं, कार्यकर्ताओं के लिए एक अच्छे पिता भी हैं। अति व्यस्ततम जीवन में भी वह हम लोगों का (मेरे साथ दो और साथी भी थे) विशेष ध्यान रखते थे। हम लोगों के बारे में पल-पल की जानकारी लेते रहते थे और जब रहते थे तो भोजन अपने साथ बैठाकर कराते थे। हम लोगों के कपड़ों पर भी ध्यान देते थे। कहीं जाने की इच्छा होती थी तो टिकट मंगवा देते थे और देते राह खर्च भी। बहुत बार तो इसकी भनक वह श्री ओमप्रकाश श्रीवास्तव जैसे करीबियों को भी नहीं लगने देते थे। इस दौरान वाराणसी, चिरईगाँव के लिए हो रहे उपचुनाव में भाग लेने के लिए मै चला आया तो वह हर रोज वाराणसी के लोगों से मेरा हालचाल लेते रहते थे। उनका यह व्यवहार केवल मेरे साथ नहीं रहा। संकट के समय किसी की मदद करना उनका स्वभाव था। खासतौर से कार्यकर्ताओं की मदद में तो उनका कोई सानी नहीं है। इस मामले में वह असाध्ाारण इंसान थे। उनकी इस इंसानियत और दरियादिली किसी सीमा की कायल नहीं थी। वह नेपाल में लोकतंत्र के संघर्ष करने वालों की आजीवन मदद करते रहे। बकौल नेपाली नेताओं, नेपाल में लोकतंत्र की स्थापना में उनका बड़ा योगदान रहा है। आज देश में जब कभी भारत रत्न की चर्चा होती है या उसके लिए आजादी के बाद के किसी जननेता के नाम का चयन किया जाता है या दिया जाता है तो मैं उससे सहमत नहीं हो पाता हूँ। फिर मैं बिना संकोच कहता हूँ कि आजादी के बाद के लोगों में भारत रत्न के सबसे पहले हकदार हैं, श्री चन्द्रशेखर। वह विचार, संघर्ष, त्याग और राष्ट्र को दिशा देने के मामले में अन्यों से काफी श्रेष्ठ हैं। वह इंसानियत को सबसे बड़ा ध्ार्म मानते थे और राष्ट्र को सर्वस्व। उनके लिए राजनीति सेवा का साध्ान थी साध्य नहीं। उनका सब कुछ भारत राष्ट्र के लिए समर्पित था। इसी वजह से मैं उन्हें कहता हूँ, राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर। (लेखक उत्तर प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री व वर्तमान में विधान परिषद के सदस्य हैं।)