सिद्धान्तों की निष्ठा के लिए हमेशा याद किए जाएंगे

वशिष्ट नारायण सिंह  


मैं आज अपने को गौरवान्वित महसूस कर रहा हँ कि चन्द्रशेखर जैसे अद्वितीय व्यक्ति से मेरा घनिष्ठ संबंध्ा रहा और बहुत नजदीकी से देखने और एक लम्बे समय तक सामाजिक व राजनीति क्षेत्र में काम करने का मौका मिला। सही मायने में मैं चन्द्रशेखर जी के विचारों से छात्र जीवन से युवा तक प्रभावित था और जब बिहार में 1974 में छात्र आन्दोलन शुरू हुआ और जयप्रकाश नारायण ने छात्र आन्दोलन को एक नया आयाम दिया तो चन्द्रशेखर जी काँग्रेस के कार्यसमिति के सदस्य रहते हुए उन्होंने बिहार छात्र आन्दोलन के प्रति सिर्फ सहानुभूति ही नहीं बल्कि आगे बढ़ कर एक नैतिक, वैचारिक और सिद्धान्तिक रूप से समर्थन दिया। वह एक ऐसा दौर था कि श्रीमती इन्दिरा गाँध्ाी का काँग्रेस पर भारी दबदबा था। उनके खिलाफ बोलने का साहस किसी काँगे्रसी नेताओं में नहीं था लेकिन चन्द्रशेखर जी खुल कर आन्दोलन के समर्थन में आगे आये और वर्ष 1975 में उन्होंने काँग्रेस पार्टी छोड़ दी तथा आपात्काल के दौरान 19 महीना काल-कोठरी में बिताये। ये चाहते तो काँग्रेस में रहते और सत्ता सुख प्राप्त करते रहते लेकिन उन्होंने अन्याय के खिलाफ आवाज उठायी, त्याग किये और कष्ट उठाया व संघर्ष का रास्ता चुना। वर्ष 1977 भारत के लोकतंत्र के इतिहास में एक अहम वर्ष था। आपात्काल के बाद मार्च, 1977 में आम चुनाव हुआ और श्री मोरारजी देसाई के प्रध्ाानमंत्रित्व काल में गठबंध्ान सरकार का नेतृत्व किया। आम चुनाव से पहले काँगे्रस विरोध्ाी कई पार्टियों को मिला कर एक नयी पार्टी, जनता पार्टी का गठन हुआ और इस पार्टी की बागडोर चन्द्रशेखर जी को सौंपी गयी और वे पार्टी के अध्यक्ष बने। वे चाहते तो मन मुताबिक सरकार में पद को प्राप्त कर सकते थे लेकिन उन्होंने संगठन को मजबूत करने और जनता के सम्पर्क में रहने का निश्चय किया। यह एक विडम्बना थी जनता पार्टी की, आपसी मतभेद से पार्टी में टूट हो गयी, सिद्धान्तों की निष्ठा के लिए हमेशा याद किए जाएंगे ध् 153 154 ध् राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर सरकार भी गिर गई, लेकिन चन्द्रशेखर जी लम्बे समय जनता पार्टी के अध्यक्ष रहे और अपने समर्थकों व अनुयायियों के बीच वे ‘‘अध्यक्ष जी’’ के नाम से मशहूर हुए। चन्द्रशेखर जी एक जमीन से हुड़े हुए नेता थे। आम लोगों के साथ सम्पर्क स्थापित करने और जन-समस्याओं को नजदीक से देखने तथा समझने के उद्देश्य से उन्होंने वर्ष 1983 में कन्याकुमारी से राजघाट, दिल्ली की पदयात्रा की। यह पदयात्रा बहुत चर्चित रही और सामान्य जन-साध्ाारणों के बीच चन्द्रशेखर जी काफी लोकप्रिय हुए। इस पदयात्रा के दौरान राजनैतिक कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करने के लिए कई राज्यों में ‘‘भारत एकता केन्द्र’’ स्थापित किये। जनता को उनके कर्तव्यों व अध्ािकारों के प्रति जागरूक करने के लिए यह उनका एक अहम प्रयास था। भारत को विविध्ाताओं में एकता और शान्ति स्थापित करना उनके जीवन का एक मुख्य लक्ष्य था। एक छोटे से गाँव इब्राहिमपट्टी गाँव के (बलिया, उत्तर प्रदेश) में जन्म लेकर विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत देश का प्रध्ाानमंत्री बनने का गौरव चन्द्रशेखर जी को मिला। जो इतिहास में ऐसे उदाहरण नहीं के बराबर हैं। यह उनके नेतृत्व की कुशलता व काबिलियत को दर्शाता है। देश के प्रध्ाानमंत्री के रूप में उनका कार्यकाल बहुत ही छोटा रहा, लेकिन इस छोटे समय-काल में उन्होंने कार्यकुशलता की एक अमिट छाप छोड़ी। जब मैं संसद में निर्वाचित होकर आया तो चन्द्रशेखर जी को अत्यंत नजदीक से देखने का मौका मिला। उनका भाषण सशक्त, ध्ाारा-प्रवाह और मंत्रमुग्ध्ा कर देने वाला होता था। जब वे सदन में बोलने के लिए खड़े होते थे तो सभी सदस्य उनका सम्मान करते और ध्यानपूर्वक सुनते थे। उनका संसदीय भाषण अर्थपूर्ण और सार्थक होता था। आम आदमी की समस्याओं को बड़ी खुबी से उठाते थे। वे एक विशिष्ट वक्ता थे जब बोलते थे तो ध्ाारा-प्रवाह बोलते थे। विषय पर उनकी गहरी पकड़ थी। वर्ष 1995 में उन्हें उत्कृष्ट सांसद पुरस्कार से सम्मानित किया गया। भारतीय लोकतंत्र को सुदृढ़ बनाने का उन्होंने हमेशा प्रयास किया। वे सत्तालोलुप नहीं थे। जब वर्ष 1991 में उन्हें लगा कि बहुमत उनके साथ नहीं रहा तो तुरन्त बिना किसी हिचक व दबाव के प्रध्ाानमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया। चन्द्रशेखर जी राजनेता के अलावा एक विचारक, पत्रकार और लेखक भी थे। उन्होंने प्रगतिशील विचारध्ाारा के विकास में उल्लेखनीय योगदान दिया। वे ‘‘यंग इंडियन’’ के सम्पादकीय सलाहकार बोर्ड के संस्थापक सम्पादक और अध्यक्ष थे। यह पत्रिका हम लोग बड़े चाव से पढ़ते थे और उनके विचारों से अवगत होते थे। उन्होंने दो किताबें भी लिखी हैं। आपात्काल के समय जेल में रहते हुए उन्होंने ‘‘मेरी जेल डायरी’’ नामक किताब लिखी जो काफी चर्चित रही। उनकी एक अन्य किताब है ‘‘डायनाॅमिक्स आॅफ सोशल चेंज’’ जो उनके सामाजिक, मौलिक चिंतन के लिए जानी जाती है। संक्षेप में, चन्द्रशेखर जी का भारतीय राजनीति में लगभग पाँच दशक का लम्बा सफर रहा। वे पहली बार वर्ष 1962 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के सदस्य चुने गये। तीन बार राज्यसभा और आठ बार लोकसभा के लिए निर्वाचित होना यह दर्शाता है कि वे कितने लोकप्रिय व कट्टावर नेता थे। वे मूलतः समाजवादी विचारध्ाारा के प्रबल समर्थक थे और उन सिद्धान्तों के लिए हमेशा प्रतिबद्ध रहे। आचार्य नरेन्द्र देव के सच्चे अनुयायी थे। जयप्रकाश से काफी निकट का संबंध्ा था और विचारध्ाारा को आगे बढ़ाने का अथक प्रयास किया। जब वे काँग्रेस में थे तो ‘‘युवा तुर्क’’ कहे जाते थे। वे एक निर्भीक और सशक्त नेता थे। अपने सिद्धान्तों से उन्होंने कभी समझौता नहीं किया। जुलाई, 2007 में उनका निध्ान हुआ तब वे 14वीं लोकसभा के अपनी पार्टी के एकमात्र सदस्य थे। इस महान दिवंगत अपने प्रिय राजनेता को मैं अपनी श्रद्धांजलि देता हूँ। जो अपने सिद्धान्तों के प्रति निष्ठा और समर्पित समाजवादी के तौर पर हमेशा याद किये जायेंगे। (लेखक जनता दल यू, बिहार के प्रदेश अध्यक्ष हैं।)

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